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हिन्दी कविता : अच्छी वर्षा की कामना में....

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डॉ. रामकृष्ण सिंगी

नीले आसमान के भी लाल-लाल तेवर,
सूरज तो मानो एक विस्फोटक गोला है। 
हवाओं में झूलतीं लपटें निर्दय,
पवन के झोकों का वृक्षों से अबोला है।।1।। 
जीव-जगत बदहवास, वृक्ष/लता 
निर्जीव, शिथिल लपटों के जारे हुए। 
छाँव भी ढूँढती लगती है खुद के लिए छाँव,
छत्रधर पेड़ गुम सूरज के डर के मारे हुए।।2।। 
 
सीना धरती का फटा, जल स्तर भी 
उतर-उतर कर गया अकूत गहराइयों में। 
मालवा भी भूला सहज स्वभाव अपना,
बदले मौसम की इन चौतरफ पेशवाइयों में।।3।। 
 
जम गये सिंहस्थी अखाड़े गर्मी के 
हर दिशा में हठयोगी, निर्मोही। 
अच्छी वर्षा के लिये किये गये अनुष्ठान की तरह 
काटने होंगे अप्रैल/मई हमें यों ही।।4।।
 
सब कुछ सहन है/स्वीकार है ओ नियति के रचनाकार,
बढ़ते पारे से पल भर भले न त्राण मिले। 
लबालब, तृप्त हो जाय नर्मदा/क्षिप्रा अंचल,
भरपूर वृष्टि का ऐसा सुखद वरदान मिले।।5।।

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