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हिन्दी कविता : सजा

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संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'

प्रसव वेदना का दर्द 
झेल चुकी मां 
खुशियों के संग पाती 
नन्हें शिशु को । 
 
होठों से शीश चूमती 
तभी कल्पनाएं भी जन्म लेने लगती
उसके बड़े हो जाने की । 
नजर न लगे 
अपनी आंखों का काजल 
अंगुली से निकाल
लगा देती है टीका 
बीमारियों के टीके के साथ ।
 
भ्रूण हत्यारों को 
सजा दिलाना जरुरी है 
क्योंकि, कई मां 
ममतामयी निगाहों से 
आज भी खोज रही अपनी बच्चियों को । 
 
किंतु वे बेगुनाह   
मां के दूध का कर्ज 
कैसे अदा करेंगे ? 
जो इस दुनिया में 

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