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हिन्दी कविता : दम तोड़ती संवेदनाएं

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राकेशधर द्विवेदी

शहर के व्यस्ततम चौराहे पर
एक व्यक्ति दम तोड़ रहा था।
पास ही के एक अस्पताल के
गेट पर एक वृद्ध व्यक्ति रो रहा था।


 
 
 
पर जिसे देखकर न था कोई हैरान
और न कोई परेशान
लोग दौड़ रहे थे, भाग रहे थे
इसे रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा
मान रहे थे।
 
कोई एक पल भी सुनने को
नहीं है तैयार
क्यों लुट गई है जिंदगी
क्यों लुट गया है प्यार।
 
क्यों‍कि संवेदनाएं अब
बीते जमाने की चीज हैं
वर्तमान में यह आउट डेटेड
कमीज है।
 
भावुकता, पीड़ा और सहृदयता
अब शब्दकोष के शब्द हैं
वर्तमान समय में यह
समझे जा रहे अपशब्द हैं।

 

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