-इतिश्री सिंह राठौर
भला कब तक बहने से रोक पाती अपने अंदर के सैलाब को
कब तक ना फूटता धैर्य का बांध
बार-बार अस्वीकृत होने पर भी
कितनी बार सजकर लड़कों के सामने बैठतीं ये काली लड़कियां?
देखो मोहनदास!
गांव में बरगद के नीचे अक्सर उदास बैठी रहती हैं ये काली लड़कियां
पता नहीं क्यों? गोरी बहनों के बीच हर घर में होती हैं
ये मनहूस काली लड़कियां
इनकी उम्र अक्सर 25 के पार होती है
और यह नौकरी के साथ
घर के कामों में मां का हाथ भी बटाती हैं
बात-बात पर घर वालों से
गाली सुनने के लिए बदनाम होती हैं
ये काली लड़कियां
इन लड़कियों से शादी
नहीं करना चाहता कोई...
मगर
जब ये अपनी छाती फुलाकर
रात को चलती हैं सड़क पर
तो अपने नाचते हुए स्तनों के लिए मशहूर हो जाती हैं
ये काली लड़कियां
रिश्तेदारों को शर्म आती है, इन्हें अपने साथ कहीं भीड़ में ले जाने से
लेकिन
साठ साल के अंकल को भी अकेले सफर में खूब भाती हैं
ये काली लड़कियां
रोज कई बार अपमानित होती हैं
लेकिन
आंख के काजल को आंसुओं के समंदर में बहाने के लिए
अंधेरे में सुबकती और सिसकती नजर आती हैं
ये काली लड़कियां
दुनियाभर की कीमती से कीमती
फेयरनेस क्रीम के
गोरा बना देने के तमाम वायदों के बावजूद
काली ही बनी रहती हैं ये काली लड़कियां
अक्सर सोचती हूं मैं
कि यही कड़वा सच है
हमारी काली मानसिकता का नतीजा हैं