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काम से दूरी बना कर उसका रस लें – मोरारी बापू

हमें फॉलो करें काम से दूरी बना कर उसका रस लें – मोरारी बापू
खजुराहो , सोमवार, 22 सितम्बर 2014 (13:01 IST)
राम चरित मानस संत मोरारी बापू ने आज कहा कि आम आदमी को सत्संग करते काम को वश में करना सीखने भर की कोशिश करनी चाहिए। वह सत्संग करते हुए काम के साथ जीना सीख लें। उन्होंने राम चरित मानस के पात्रों के जरिए यह बताया कि कैसे काम को वश करना साधारण मनुष्य का काम नहीं है। यह शिव, महर्षि नारद और भगवान राम जैसों से ही संभव है। 
 
उन्होंने कहा कि शिव ने काम को अपने तीसरे नेत्र से जलाया और उसे भस्म कर दिया यानी काम को वश में कर लिया। फिर काम के भस्म को अपने शरीर में लेप लिया क्योंकि काम अब उनका कुछ नहीं कर सकता। नारद ने भी काम को वश में किया लेकिन जलाया नहीं। नारद ने काम को जीता। वहीं भगवान राम ने काम को नचाया। 
 
अब सवाल है हमारे लिए काम को लेकर इनमें से कौन आदर्श हों। उन्होंने यह सवाल श्रोताओं के लिए उछाल दिया। श्रोताओं ने जो जबाव दिए उनमें काम को नचाने और जीतने को आदर्श बताने वाले ज्यादातर थे। किसी एक ने काम को जलाने की बात भी कही। 
 
एक महिला ने जब- नचाने को आदर्श बताया तो मोरारी बापू ने विनोद करते हुए पूछा- नचाना किसे- पुरुष को या काम को।  मोरारी बापू ने कहा- ज्यादा जबाव काम को नचाने के पक्ष में आया। हां, काम नाचेगा, जरूर नाचेगा। साधक नचा सकता है लेकिन यह समझ लें काम की सवारी कठिन है। 
 
जिसे कभी घोड़े पर चढ़ने का अनुभव न हो तो घोड़ा उसे गिरा देता है। राम जैसा घुड़सवार होना चाहिए। हम राम नहीं बन सकते लेकिन राम को भज कर धीरे-धीरे काम को वश में करना सीख की कोशिश जरूर कर सकते हैं। 
 
उन्होंने कहा- हम आम आदमी गरीब है। धन नहीं है इसलिए गरीब हैं ऐसी बात नहीं बल्कि इसलिए गरीब हैं क्योंकि हम इंद्रियों के वश में हैं। हम गरीब हैं विकारों के कारण। समझने के बाद भी विकृतियां हमसे मनमाना करवा लेती हैं। वे हमें फुसलाती हैं और हम फिसल जाते हैं। 
 
श्रोताओं ने काम को जलाने, जीतने एवं नचाने को अपना आदर्श बताया। भाव ठीक है लेकिन क्या हम ऐसा कर सकते हैं। काम को जिसने जलाया, जिसने जीता, जिसने नचाया वे प्रणम्य हैं लेकिन हम काम को नचाने, जलाने या जीतने की कोशिश न करें तो बेहतर है। हम काम से एक सुरक्षित दूरी बना कर काम का रस लें। काम से पवित्र दूरी बना कर रहें। 
 
मोरारी बापू ने कहा- काम को वश में करना हमारे जैसों के बस की बात नहीं है। काम के वश में होना भी हमारे वश में नहीं है। हां, सत्संग करते-करते, सत्संग से प्राप्त विवेक, चिंतन से, समझदारी से वश में करना सीखें। 
 
मोरारी बापू ने आज काम को परमात्मा के स्तर पर रख कर उसकी व्याख्या की। उन्होंने कहा-  जैसे परमात्मा हर जगह व्याप्त हैं उसी तरह काम भी सर्वव्यापी है। कहीं भी कोई आग्रह है या आसक्ति है वह काम है। काम को केवल एक नजरिए से मत देखिए। मन में परमात्मा है, काम भी है। वे अलग हो कोई जरूरी नहीं। वह मन में साथ-साथ रहे तो क्या बुरा है। 
 


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