Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(नवमी तिथि)
  • तिथि- वैशाख कृष्ण नवमी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30, 12:20 से 3:30, 5:00 से 6:30 तक
  • व्रत/मुहूर्त-पंचक प्रारंभ दिन 11.26 से
  • राहुकाल-दोप. 1:30 से 3:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

गीता सार : सांख्यदर्शन का आधार-7

हमें फॉलो करें गीता सार : सांख्यदर्शन का आधार-7
- अनिल विद्यालंकार


 
यहां पर सांख्य दर्शन की पृष्ठभूमि का ज्ञान गीता के विचारों को समझने में हमारी सहायता कर सकता है। सांख्य दर्शन भारत के 6 आस्तिक दर्शनों में से एक है। योग और वेदांत भी सांख्य के मूल ढांचे को स्वीकार करते हैं। इस प्रकार यह दर्शन भारतीय चिंतन की एक प्रमुख आधारभूमि है। सांख्य दर्शन के अनुसार समूचा ब्रह्मांड केवल दो प्रमुख तत्वों से बना है- पुरुष (चैतन्य) और प्रकृति। इनमें से पुरुष चेतन किंतु निष्क्रिय तत्व है, जो जीवधारियों के शरीर में रहकर सुख-दु:ख का भोग करता है। अपने मूल रूप में पुरुष जो कुछ भी ब्रह्मांड में हो रहा है उसका साक्षीमात्र है। प्रकृति मूलतया अचेतन है, पर वह चेतन पुरुष से इस प्रकार गुंथी हुई है कि वह विश्व के प्रतीत होने वाले निर्माण में अपना भाग अदा करती है। (गहनतम स्तर पर विश्व की सृष्टि कभी नहीं होती।)
 
विश्व की इस प्रतीत होने वाली सृष्टि में सबसे पहले उत्पन्न होने वाला तत्व बुद्धि या महत् है। बुद्धि की अवस्था पर समस्त विश्व एक रूप रहता है, उसमें किसी भी प्रकार का विभाजन नहीं होता। उसके बाद असंख्य अहंकार उत्पन्न होते हैं जिनके कारण वही एक चैतन्य ऊपर से भिन्न प्रतीत होने वाली 'चेतनाओं' में बंट जाता है। यहां पर अहंकार शब्द सर्वथा मूल्य-निरपेक्ष है। इसका अर्थ घमंड नहीं है अपितु केवल 'मैं' का भाव है। यह केवल चैतन्य की विभाजित होने और दिशागत होने की प्रवृत्ति का संकेत करता है।

अहंकार के कारण ही प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने विशिष्ट दृष्टिकोण से दुनिया को देखता है और इसमें काम करता है तथा अपने-अपने अकेले के संसार में सुख और दु:ख का भोग करता है। यह बात संतों पर भी लागू होती है और पापियों पर भी, साथ ही पशुओं पर भी। हर व्यक्ति का अपना अहंकार है। जब मैं अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी का गिलास उठाता हूं तो यह कार्य मेरे अहंकार के द्वारा प्रारंभ किया जाता है और क्रियान्वित होता है। अहंकार के बिना मुझे यह पता ही नहीं चलेगा कि यह मेरी प्यास है और मेरे हाथों को पानी का गिलास उठाकर मेरे ओठों तक ले जाना है। इस प्रकार चेतना की एक विशेष दिशा में जाने की प्रवृत्ति ही अहंकार है। यदि चेतना की गति किसी विशेष दिशा में न हो तो उस अवस्था में वहां सक्रिय अहंकार नहीं होगा।
 
सांख्य दर्शन के इस विकास के सिद्धांत के अनुसार अहंकार के प्रभाव में और इसके उद्देश्य को पूरा करने के लिए ज्ञानेन्द्रियों का विकास होता है जिनसे बाहर के संसार की जानकारी मिलती है। उनके साथ ही कर्मेन्द्रियों का विकास होता है, जो शरीर के माध्यम से बाहर के जगत में गतिविधि करती हैं। जानने, कुछ करने और भोगने की इच्छा अहंकार के स्तर पर ही प्रारंभ होती है। बुद्धि के स्तर पर ऐसी कोई व्यक्तिगत इच्छा नहीं होती इसलिए संसार का निर्माण वास्तव में अहंकार में गति होने से प्रारंभ होता है। ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के बीच में उनके नियामक के रूप में मन का विकास होता है।

भारतीय दर्शन में मन को अणु आकार का माना गया है जिस कारण वह एक समय में एक ही ज्ञानेन्द्रिय से संयुक्त हो सकता है। साथ ही, वह एक समय में एक ही कर्मेन्द्रिय से काम कर सकता है। इस विकास की अगली प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाले पदार्थों में आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी की 5 तन्मात्राएं हैं जिनका संबंध 5 ज्ञानेन्द्रियों से है। सबके अंत में इन 5 तन्मात्राओं के स्थूल रूप में 5 महाभूतों का विकास होता है। सांख्य दर्शन के अनुसार विकास की इस प्रक्रिया को आगे दिए गए रेखाचित्र से समझा जा सकता है।

webdunia

 
शरीर के अंदर रह रहे चेतन तत्व को जीव कहा जाता है। यह विश्व चैतन्य का अंश है और उससे समानता रखता है, पर अपने अज्ञान और अहंकार के कारण जीव हमेशा बंधन में रहता है। यहां यह ध्यान देने योग्य है कि बुद्धि का स्तर अहंकार से ऊपर है। बुद्धि के स्तर पर व्यक्तियों में कोई भेद नहीं रहता। दूसरी ओर मन अहंकार के अधीन है और सदैव ही उससे प्रभावित रहता है। मनुष्य के दु:ख का मुख्य कारण यह है कि उस पर अहंकार की जकड़ है और उसका मन अशांत है।
 
रेखाचित्र में अहंकारों के बीच में छायांकित भाग दो अहंकारों के बीच के सामान्य अंश का संकेत करता है। कोई भी अहंकार सर्वथा अलग और स्वतंत्र नहीं है। अनेक अहंकार एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। किसी परिवार, समाज, व्यवसाय, धर्म, राष्ट्र आदि के सदस्यों के अहंकारों में सामान्य अंश होते हैं जिनके कारण उन सभी को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों में वे सामान्य रूप से सुख-दु:ख का अनुभव करते हैं। किसी मैच में किसी देश की टीम के जीतने पर उस देश के सभी निवासियों के अहंकार को संतोष मिलता है। परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु पर उस परिवार के सभी सदस्य दु:ख का अनुभव करते हैं। मनुष्य का मन जितना अशांत होगा और उसका अहंकार जितना प्रबल होगा उसके जीवन में दु:ख भी उतने ही ज्यादा होंगे। अनियंत्रित मन और प्रबल अहंकार की अवस्था से मनुष्य को शांत बुद्धि की अवस्था तक पहुंचना है, यह गीता का एक प्रमुख संदेश है। 
 
जारी
 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi