Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

जानिए क्या है होलाष्टक एवं कैसे मनाएं...

हमें फॉलो करें जानिए क्या है होलाष्टक एवं कैसे मनाएं...
पौराणिक शास्त्रों में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहा गया है। होलाष्टक के दिन होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किए जाते हैं। जिनमें एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है।


 

शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। 
 
इस वर्ष होलाष्टक 26 फरवरी से शुरू होकर 5 मार्च तक रहेगा। इस आठ दिनों के दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। इसके अंतर्गत 5 मार्च को होलिका दहन और 6 मार्च को धुलेंडी खेली जाएगी।
 
कैसे मनाएं होलाष्टक...
 
होलिका पूजन करने हेतु होलिका दहन वाले स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है। फिर मोहल्ले के चौराहे पर होलिका पूजन के लिए डंडा स्थापित किया जाता है। उसमें उपले, लकड़ी एवं घास डालकर ढेर लगाया जाता है। 

webdunia

 
होलिका दहन के लिए पेड़ों से टूट कर गिरी हुई लकड़‍ियां उपयोग में ली जाती है तथा हर दिन इस ढेर में कुछ-कुछ लकड़‍ियां डाली जाती हैं। इन दिनों शुभ कार्य करने पर अपशकुन होता है। 
 
प्रचलित मान्यता के अनुसार शिवजी ने अपनी तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था। कामदेव प्रेम के देवता माने जाते हैं, इनके भस्म होने के कारण संसार में शोक की लहर फैल गई थी।
 
जब कामदेव की पत्नी रति द्वारा भगवान शिव से क्षमा याचना की गई, तब शिवजी ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया। इसके बाद लोगों ने खुशी मनाई। होलाष्टक का अंत धुलेंडी के साथ होने के पीछे एक कारण यह माना जाता है।
 
ऐसी और खबरें तुरंत पाने के लिए वेबदुनिया को फेसबुक https://www.facebook.com/webduniahindi पर लाइक और 
ट्विटर https://twitter.com/WebduniaHindi पर फॉलो करें। 

 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi