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यकीन मानिए, कश्मीर आज भी उतना ही खूबसूरत है...

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सुरेश एस डुग्गर

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जब भी दिमाग में बर्फीली वादियों, झीलों और कल-कल बहते झरनों की तस्वीर उभरती है तो किसी का भी ध्यान बरबस कश्मीर की ओर ही खिंचा चला आता है। आप यकीन मानिए कश्मीर आज भी उतना ही खूबसूरत है, जितना कभी पहले था। और सबसे बड़ी बात यह कि यह अब सुरक्षित भी है। तभी तो पिछले दो सालों के भीतर 30 लाख के करीब पर्यटक कश्मीर आए थे।

कश्मीर आने के लिए कोई भी कारण दिमाग में रखा जा सकता है। धरती पर जन्नत देखनी है तो कश्मीर, अप्रैल-मई के अंत तक बर्फ देखनी है तो कश्मीर, झीलों के पानी पर तैरते हाउसबोटों और शिकारों में बैठकर चांदनी रात में चांद को निहराना है तो भी कश्मीर। और न जाने कितने कारण हैं जिनकी गिनती करते करते आप थक जाएंगे।

माना कि वर्ष 1989 के मध्य में शुरू हुए पाक प्रायोजित आतंकवाद ने कश्मीर को पर्यटन स्थलों की सूची से कभी दूर कर दिया था पर आंकड़े बताते हैं कि बमों के धमाकों और गोलियों की बरसात के बीच भी कश्मीर आने वालों के कदम कभी रुके नहीं थे। आखिर रुकते भी कैसे क्योंकि कश्मीर में आतंकवाद का जितना डर आज बाकी है उससे कहीं ज्यादा तो देश के बड़े-बड़े शहरों में है। अब इक्का दुक्का घटना को नजरअंदाज किया जाने लगा है सिर्फ स्थानीय लोगों द्वारा ही नहीं बल्कि कश्मीर आने वाले लाखों पर्यटकों द्वारा भी।

कश्मीर आने वालों का आकर्षण सिर्फ बर्फ ही नहीं है बल्कि सारा साल कश्मीर आने वालों का अब तांता लगा रहता है। देशभर में जब गर्मियां अपने यौवन पर होती हैं तो पहाड़ों की ठंडक लेने की खातिर कश्मीर वादी की ओर मुड़ने वाले पर्यटकों के कदम जल्द वापस जाने को तैयार ही नहीं होते। यही कारण है कि दो-चार दिन का कार्यक्रम बनाकर कश्मीर आने वाले अक्सर अपने कार्यक्रम में बदलाव कर इसे अब 7 से 8 दिनों तक ले जाने लगे हैं। कारण स्पष्ट है कि कश्मीर में सिर्फ राजधानी शहर श्रीनगर ही खूबसूरत नहीं है बल्कि खूबसूरत और रमणीक स्थलों की सूची बहुत लंबी है।

कश्मीर में अनेकों ऐसे स्थान हैं, जिनका चक्कर लगाए बगैर कश्मीर की यात्रा पूरी नहीं हो सकती। श्रीनगर शहर को ही अगर अच्छी तरह से देखना हो या फिर विश्व प्रसिद्ध डल झील में ही नौका विहार या हाउसबोट का मजा लेना हो तो दो दिन भी कम पड़ते हैं। ऐसे में कश्मीर आकर बर्फ का नजारा लेने के लिए गुलमर्ग की सैर किए बिना धरती के स्वर्ग की यात्रा कभी पूरी नहीं हो सकती।

विश्व के प्रसिद्ध हिल-स्टेशनों में गुलमर्ग एक माना जाता है। अगर सोनामर्ग को सोने की घाटी कहा जता है तो इसे फूलों की घाटी कहा जा सकता है और यहीं पर देश के सर्दियों की खेलें होती हैं क्योंकि यह अपनी बर्फ के लिए भी प्रसिद्ध है। हालांकि सारा साल आप जहां जा सकते हैं लेकिन अक्टूबर से मार्च का मौसम सबसे बढ़िया रहता है।

गुलमर्ग में अब तो बर्फ के नजारे लगभग सारा साल ही रहने लगे हैं क्योंकि गंडोला के कारण आने वाले पर्यटक भारत-पाक नियंत्रण रेखा के करीब तक जा सकते हैं जहां सारा साल बर्फ ही बर्फ होती है। यह तो कुछ भी नहीं, मौसम के बदलते मिजाज के कारण अक्सर जून में भी गुलमर्ग में बर्फबारी का नजारा लिया जा सकता है। एक समय था कि भयानक सर्दी के मौसम में गुलमर्ग आने वाले नाममात्र के ही होते थे पर अब तो भयानक बर्फबारी देखने के लिए एकत्र होने वाली भीड़ का आलम यह है कि दिसम्बर और जनवरी में भी गुलमर्ग में कमरों की कमी खलने लगी है।

मात्र एक गुलमर्ग ही नहीं है कश्मीर वादी अर्थात धरती के स्वर्ग पर पर्यटकों के लिए। बर्फ से लदी पहाड़ियां, फूलों से गुलजार बाग-बगीचे, दिल को मोह लेने वाला ट्‍यूलिप गार्डन, हरी भरी वादियां, झीलें और झने, यह सब धरती के स्वर्ग में बहुतयात में होने के कारण ही आज भी कश्मीर को जन्नत कहा जाता है। अगर वह सब कुछ आपको कश्मीर में मिल रहा है जिसकी तस्वीर आपके जहन में बसी है तो फिर देर किस बात की है। चले आईए कश्मीर में स्वर्ग सा आनंद और जन्नत का नजारा लेने की खातिर। बर्फ अभी भी है पहाड़ों पर। शायद आपका ही इंतजार कर रही है।

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कश्मीर वादी में देखने लायक पर्यटन स्थल

अच्छाबल: अनंतनाग से इस तक पहुंचने का रास्ता है जो श्रीनगर से 58 किमी दूर तथा 1677 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान कभी नूरजहां के पर्यटनस्थल के रूप में जाना जाता था। जहां मुगल उद्यान भी हैं जो अपनी खूबसूरती के लिए जाने जाते हैं।

मट्टन: पहलगाम मार्ग पर स्थित यह हिन्दुओं का पवित्र स्थल माना जाता है जिसमें एक शिव मंदिर है और खूबसूरत झरना भी। श्रीनगर से यह 61 किमी की दूरी पर है।

मार्तंड : मट्टन से तीन किमी आगे चल कर एक पठार पर मार्तण्ड में कश्मीर के इतिहास के कुछ खंडहर हैं जो सूर्य मंदिर के नाम से भी जाने जाते हैं। इसका निर्माण 7वीं व 8वीं सदी में ललितादित्य मुख्तापिद ने करवाया था जो कश्मीर का एक योद्धा था।

वेरीनाग : कश्मीर घाटी जिस दरिया झेलम के लिए जानी जाती है वेरीनाग उसी झेलम का स्रोत स्थल है। यह 80 किमी दूर और 1876 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

अवंतिपुर : 29 किमी की दूरी पर अंवतिपुर में अवंतिवर्मा के शासन काल के खंडहर हैं। यह भी पुराने और 9वीं सदी के मंदिरों के अवशेष हैं।

चरारे शरीफ : कश्मीर के प्रसिद्ध सूफी संत शेख नूर-उद्दीन जो नंद ऋषि के नाम से भी जाने जाते हैं, की यह दरगाह यूसमर्ग के रास्ते में है जो 30 किमी की दूरी पर है।

अहरबल : यह क्षेत्र अपने उस झरने के लिए प्रसिद्ध है जो 24.4 मीटर की ऊंचाई से गिरता है। यह 2400 मीटर की ऊंचाई तथा 51 किमी की दूरी पर स्थित है।

पहलगाम : श्रीनगर से 96 किमी की दूरी पर स्थित पहलगाम एक बहुत ही रमणीय पर्यटनस्थल है जो दरिया लिद्दर के किनारे पर स्थित है तथा अमरनाथ की वार्षिक यात्रा का बेस कैम्प भी है। पहलगाम जाने के लिए अप्रैल से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक का मौसम सबसे बढ़िया होता है।

वुल्लर झील : यह एशिया की स्वच्छ और ताजे पानी की सबसे बड़ी झील है। जो 125 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैली हुई है। यह करीब 60 किमी की दूरी पर है।

सोनामार्ग : जहां भी अक्टूबर से मार्च तक आने का मौसम बहुत बढ़िया है। यह श्रीनगर से लेह की ओर जाने वाले मार्ग में आता है तथा इस स्थान के बारे में प्रसिद्ध है कि इसका पानी अपने आप में सोने को समेटे हुए है और सभी को सोना बना देता है।

कोकरनाग : करीब 2020 मीटर की ऊंचाई पर और श्रीनगर शहर से 70 किमी की दूरी पर स्थित यह स्थान अपने लाभ पहुंचाने वाले झरनों के लिए जाना जाता है।

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श्रीनगर शहर में देखने लायक स्थान

जामिया मस्जिद : इसका निर्माण तो सुलतान सिकंदर ने 1400 एडी में करवाया था और बाद में उनके बेटे जेन-उल-अबीदीन ने इसके क्षेत्रफल को और बढ़ाया था। तीन बार आग इसको क्षति पहुंचा चुकी है और हर बार इसका निर्माण किया जा चुका है। वर्तमान में जो मस्जिद अपने पांवों पर खड़ी है उसका निर्माण डोगरा शासक महाराजा प्रतापसिंह ने करवाया था जो पांच किमी की दूरी पर है।

शाह हमदान मस्जिद : दरिया जेहलम के किनारे शहर से पांच किमी दूर स्थित यह मस्जिद शहर की सबसे पुरानी मस्जिद है। इसकी दीवारों पर पेपरमाशी की कारीगरी प्रस्तुत की गई है। इस तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग या फिर शिकारे से जेहलम से होते हुए जाया जा सकता है।

हरी पर्वत किला : श्रीनगर शहर के उत्तर पूर्व में शरीका पर्वत पर, जो हिन्दुओं के लिए पवित्र माना जाता है, स्थित इस किले का निर्माण अत्ता मुहम्मद खान ने 18वीं सदी में करवाया था। अत्ता मुहम्मद खान एक अफगान शासक था। इस किले की चारदीवारी का निर्माण मुगल बादशाह अकबर ने 1592-98 में करवाया था। इस किले के चारों ओर बादाम के बाग हैं। बसंत ऋतु में जब पेड़ों पर अंकुर फूटने लगते हैं तो यह बाग अपनी छटा से सभी का मन मोह लेते हैं। इस किले में जाने के लिए राज्य पुरात्तत्व विभाग की अनुमति लेनी आवश्यक है जिसका कार्यालय लालमंडी चौक में स्थित है।

परी महल : शहर से 11 किमी की दूरी पर स्थित यह महल कभी बौद्ध मठ था। मुगल बादशाह शाहजहां के बेटे दाराशिकोह ने इसे ज्योतिष के एक स्कूल के रूप में बदल दिया था।

डल झील : शहर के बीच में ही स्थित विश्वप्रसिद्ध डल झील शहर के पूर्व में स्थित है और श्रीधरा पर्वत के चरणों में है। वर्तमान में डल झील का क्षेत्रफल 12 वर्ग किमी रह गया है जबकि कभी यह 28 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में होती थी। इसके बीच में अनेकों द्वीप भी स्थित हैं जो अपने आपमें खूबसूरती के केंद्र हैं। इसके अतिरिक्त शहर में कई उद्यान भी हैं जो मुगल उद्यानों के रूप में जाने जाते हैं और वे सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुले रहते हैं।

शंकराचार्य मंदिर : यह मंदिर शहर से एक हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। जिस पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है उसे तख्त-ए-सुलेमान के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण महाराजा अशोक के बेटे जलुका ने 200 बीसी में करवाया था जबकि मंदिर के भीतर जो वर्तमान ढांचा है उसका निर्माण किसी अज्ञात हिन्दू श्रद्धालु ने जहांगीर के शासनकाल के दौरान करवाया था। इस मंदिर से पूरी पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला और शहर का प्रत्येक भाग देखा जा सकता है।

नगीन झील : इस झील को अंगुली में हीरे की तरह कहा जाता है जो शहर से 8 किमी की दूरी पर है। हालांकि यह डल झील का ही एक हिस्सा है, लेकिन अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। इस तक पहुंचने के लिए सबसे छोटा रास्ता हजरतबल की ओर से है। इसके नीले पानी तथा चारों और अंगूठी की तरह दिखने वाले पेड़ों के झुंड के कारण इसका नाम नगीन पड़ा है। इसमें वाटर-स्कीइंग तथा तैराकी की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।

हजरतबल दरगाह : यह दरगाह डल झील के पश्चिमी किनारे पर निशात बाग के बिलकुल सामने शहर से 9 किमी की दूरी पर है। एक ओर झील तथा दूसरी ओर पर्वत श्रृंखला होने के कारण यह बहुत ही खूबसूरत दृश्य पेश करती है। इसकी महत्ता कश्मीर के इतिहास में इसलिए है क्योंकि हजरत मुहम्मद साहब की निशानी के रूप में उनका एक पवित्र बाल इसमें रखा गया है। इसका प्रदर्शन विशेष अवसरों पर किया जाता है।

पत्थर मस्जिद : शहर से 6 किमी दूर यह मस्जिद पूरी तरह से पत्थर से बनी हुई है और शहर के बीचों बीच होने के साथ ही शाह हमदान मस्जिद के सामने है। इसका निर्माण नूरजहां ने करवाया था और इसमें तब सिर्फ शिया मुसलमान इबादत किया करते थे।

अब ट्यूलिप गार्डन हैं पहचान कश्मीर की : अगली बार जब आप कश्मीर में आएं तो डल झील, शिकारे, हाऊसबोटों, पहाड़, बर्फ के अतिरिक्त ट्यूलिप गार्डन को देखना न भूलें। अगर यह कहा जाए कि अगर पहले कश्मीर की पहचान डल झील के कारण हुआ करती थी तो अब ट्यूलिप के बगीचों के कारण ऐसा है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आखिर यह बात सच हो भी क्यों न। एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप गार्डन तो कश्मीर में ही है जिसे देख आने वाले पर्यटकों के मुंह से ये शब्द निकल ही पड़ते हैं ‘वाकई धरती पर अगर कहीं कोई स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है।’

अगली बार जब आप किसी बालीवुड फिल्म में ट्यूलिप यानी नलिनी के फूलों के विशाल मैदानों को देखें तो हालैंड के बारे में आपको सोचने की जरूरत नहीं है। जम्मू-कश्मीर में अगले कुछ दिनों के बाद ट्यूलिप रंग बिरंगे अवतार में दिखाई देने लगेंगे और अब यह एशिया के सबसे बड़े ट्यूलिप गार्डन से लैस हो गया चुका है।

डल झील का इतिहास सदियों पुराना है। पर ट्यूलिप गार्डन का मात्र तीन साल पुराना है। मात्र 3 साल में ही यह उद्यान अपनी पहचान को कश्मीर के साथ यूं जोड़ लेगा कोई सोच भी नहीं सकता था। डल झील के सामने के इलाके में सिराजबाग में बने ट्यूलिप गार्डन में ट्यूलिप की सैंकड़ों किस्में आने-जाने वालों को अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रहती।

सिराजबाग हरवान-शालीमार और निशात चश्माशाही के बीच की जमीन पर हजारों कनाल एरिया में फैला हुआ है। शुरू-शुरू में इसे शिराजी बाग के नाम से पुकारा जाता था। असल में महाराजा के समय उद्यान विभाग के मुखिया के नाम पर ही इसका नामकरण कर दिया गया था। पर अब यह शिराज बाग के स्थान पर ट्यूलिप गार्डन के नाम से अधिक जाना जाने लगा है।

कहा जाता है कि 1947 से पहले सिराजद्दीन नामक एक व्यक्ति घाटी का मशहूर फल उत्पादक था। उसके पास 650 कनाल से ज्यादा जमीन पर फैला फलों का एक बाग था, जिसमें वह सेब, अखरोट, खुबानी और बादाम का उत्पादन किया करता था। ये बाग जब्रवान पहाड़ियों के दामन में स्थित था (जहां आजकल बाटोनिकल गार्डन और ट्यूलिप गार्डन है)। इस बाग का नाम उसके नाम से ही मशहूर था।

पास ही रहने वाले एक 70 वर्षीय बुजुर्ग अहमद गनेई ने उन दिनों को याद करते हुए बताया कि हम इस बाग को सिराज बाग के नाम से जानते थे। जहां पर हर तरफ सेब, अखरोट, बादाम और खुबानी के पेड़ फैले हुए थे। इस बाग की देखरेख खुद मलिक सिराजद्दीन को बरसे में मिली थी। कहा जाता है कि 1947 में भारत-पाक विभाजन के दौरान मलिक सिराजद्दीन अपनी सारी संपत्ति को छोड़ परिवार सहित पाकिस्तान चला गया। उसके चले जाने के बाद स्थानीय लोगों ने इस बाग पर कब्जा कर लिया और तकरीबन 13 वर्षों तक उनके कब्जे में रहने के बाद 1960 में कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम मुहम्मद सादिक ने इस बाग को अपने कब्जे में ले लिया।

यह सच है कि अभी तक कश्मीर में डल झील और मुगल गार्डन- शालीमार बाग, निशात और चश्माशाही ही आने वालों के आकर्षण का केंद्र थे और कश्मीर को दुनिया भर के लोग इसलिए जानते थे, लेकिन अब वक्त ने करवट ली तो ट्यूलिप गार्डन के कारण कश्मीर की पहचान बनती जा रही है। चाहे इसके लिए डल झील पर मंडराते खतरे से उत्पन्न परिस्थिति कह लीजिए या फिर मुगल उद्यानों की देखभाल न कर पाने के लिए पैदा हुए हालत की कश्मीर अब ट्यूलिप गार्डन के लिए जाना जाने लगा है


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