बरसात का मौसम, आकाश में घुमडने वाले बादल, ठंडी हवाएँ और बारिश की बूँदे। तन-मन को भीगों देने वाली बारिश।बारिश के बारे में सोचकर ही मन रोमांचित होने लगता है, मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुशबू, पत्तियों पर मोतियों की तरह जमी पानी की बूँदे। ये सबकुछ कितना खुशनुमा और सुहावना लगता है। अब, जरा कल्पना कीजिए, कि आकाश में बादलों के छाते ही सरकार लोगों से घर में घुसने और सुरक्षित स्थानों पर जाने की अपील कर रही है, हल्की फुहार आने की आशंका होने पर ही लोग घर में घुसकर बैठे हैं। घर के पेड़-पौधों को सुरक्षित स्थानों पर रखा जा रहा है, ताकि उन पर बारिश का पानी ना लग जाए। गलति से कोई इंसान बाहर रह गया और उस पर बारिश की कुछ बूँदे गिर गई, तो उसे जलन हो रही है। हर तरफ बारिश के पानी से लोग डर रहे हैं। क्योकि बारिश ठंडक पहुँचाने की बजाए, आग बरसा रही है, लोगों को उल्लासित करने की बजाए उन्हें जला रही हैं। फिलहाल यह किसी साइंस फिक्शन फिल्म के अंश की तरह लग रहा है लेकिन एक दिन यह कल्पना सच में बदल सकती है। इस कल्पना ने धीरे-धीरे साकार होना प्रारंभ भी कर दिया है। हम यहाँ पर बात कर रहे है, एसिड रेन याने कि अम्ल वर्षा की। पर्यावरण में मौजुद सल्फर और नाइट्रोजन के ऑक्साइड जब बादल में उपस्थित जल के साथ क्रिया करते है, तो इस क्रिया के फलस्वरूप सल्फ्यूरिक एसीड और नाइट्रिक एसीड का निर्माण होता है। इसकी वजह से वर्षा का जल अम्लीय हो जाता है, और बादल पानी के बजाए अम्ल बरसाने लगते है। आप ही सोचिए कि जब पानी के बजाए अम्ल की बारिश होगी तो इसका असर कैसा होगा। हम विज्ञान की गहराई में ना जाते हुए, एक सतही स्तर पर इसके भयंकर परिणामों की कल्पना करते है।
बारिश की बूँदों में मिला अम्ल जब बार-बार पौधों की पत्तियों पर गिरेगा, तो पत्तियाँ नष्ट या कमजोर हो जाएगी, अगर पत्तियाँ नष्ट हो गई तो पौधों के लिए प्रकाश संश्लेषण (फोटो सिंथेसिस) के द्वारा भोजन कैसे तैयार होगा। कुल मिलाकर बड़ा पेड कमजोर हो जाएगा, अगर बारिश ज्यादा हुई तो छोटे पौधे और फसलें नष्ट हो जाएगी और यदि कम हुई तो विकृत हो जाएगी।
इनका क्या होगा यहीं पानी जब झीलों, झरनों, तालाबों में जाएगा, तो वहाँ के पानी की अम्लीयता को बढ़ाएगा। इसका सीधा असर इन स्थानों पर रहने वाले जीव जंतुओं के जीवन पर पडे़गा। कई मछलियाँ और अन्य जीव इस बढ़ी हुई अम्लीयता की वजह से मर जाएगे। जलीय वनस्पति को भी इससे बेहद नुकसान पहुँचेगा।
हमारा क्या होगा जब हमारे जल स्रोतों का पानी अम्लीय हो जाएगा और जलीय जीव जंतुओं की असमय मृत्यु की वजह से उनका पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ जाएगा, तब वह पानी बुरी तरह से प्रदूषित हो जाएगा और हमारे पीने योग्य नहीं रह जाएगा।
इन सभी खतरों की नींव रखी जा चुकी है, हमारे पर्यावरण में पेट्रोल, डीजल और कोयले के दहन से फैले वायु प्रदूषण की वजह से विश्व के कई हिस्सों में अम्ल वर्षा हुई है। अमेरिका, कनाडा जैसे देशों में जंगलों को इस अम्ल वर्षा की वजह से भारी नुकसान भी पहुँचा है। वहाँ के झील और झरने भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुए है।
पर्यावरणविदों का मानना है कि इन दिनों विकासशील देशों जैसे भारत और चीन में अम्ल वर्षा के संकट के बादल लहरा रहे है। इसकी वजह दोनों देशों में बढ़ता प्रदूषण और उर्जा की बढ़ती माँग के चलते अवशेषी ईंधन की बढ़ती हुई खपत है।
कोयले से चलने वाले बिजलीघरों, वाहनों और उद्योगों की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ में सल्फर और नाइट्रोजन की मात्रा बहुत अधिक होती है। हम यदि केवल भारत की बात करे तो प्रदूषण के नियंत्रण से बाहर होने की वजह से यहाँ पर अम्ल वर्षा का खतरा सबसे अधिक मंडरा रहा है। दरअसल वर्षा का जल आंशिक रूप से अम्लीय तो हो ही जाता है क्योकि पर्यावरण में मौजुद कार्बनडाई-ऑक्साइड वर्षा के जल से क्रिया कर के कार्बोनिक एसीड बनाती है, जिससे जल आंशिक रूप से अम्लीय हो जाता है, लेकिन आंशिक रूप से अम्लीय इस जल में यदि अम्ल की मात्रा बढ़ जाए तो यह हम सभी के लिए बेहद हानिकारक सिद्ध होता है।
सांस्कृतिक विरासत भी है, खतरे के निशान पर
ऐसा नहीं है, कि अम्ल वर्षा से होने वाला सारा नुकसान केवल जीव-जंतुओं या पौधों को होता है। ऐतिहासिक इमारते जैसे ताजमहल भी इस खतरे से बाहर नहीं है। दरअसल संगमरमर की क्रिया जब अम्ल के साथ होती है तो इनमें विकृतियां पैदा होती है, जैसे संगमरमर पीला पड़ जाता है, रासायनिक क्रिया से कैल्श्यिम सल्फेट बन जाता है। जिससे इमारत का क्षरण होता है। केवल भारत ही नहीं इस समस्या का सामना विश्व की कई ऐतिहासिक धरोहरों को करना पड़ रहा है। ग्रीस, अमेरिका और दक्षिण मैक्सिको की कई इमारतों और मूर्तियों को अम्ल वर्षा से क्षति पहुँच चुकी है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार मृदा की अम्लीयता बढ़ने से उसमें मौजुद विभिन्न तत्वों के बीच का संतुलन बिगड़ जाता है,जिसका सीधा प्रभाव मृदा की उर्वरकता और फसलों की गुणवत्ता पर पड़ता है। स्वभाविक है कि अम्ल वर्षा से मृदा की अम्लीयता भी बढ़ती है।
आपस में मिलकर खोजना होगा समाधान
वर्षा जैसी खूबसूरत प्राकृतिक परिघटना को अम्ल वर्षा जैसा हानिकारक रूप लेने से रोकने का फिलहाल एक ही समाधान नजर आता है, प्रदूषण को नियंत्रित करना। यह कैसे किया जाए, इसका उपाय विश्व के सभी देशों को मिलकर खोजना होगा। यह समस्या किसी एक देश की नहीं है, क्योकि अम्लीय बादल किसी देश या राज्य की सीमा को नहीं पहचानते है। इस विश्वव्यापी समस्या से निपटने के लिए सबको समन्वित रूप से प्रयास करने होंगे ताकि बारिश की बूँदे इंसान को रोमांचित करे, भयभीत नहीं।