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स्विट्‍जरलैंड, ऑस्ट्रिया : यूरोप के दो उजले प्रितिबिंब

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जयदीप कर्णिक

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स्विट्‌जरलैंड और ऑस्ट्रिया भौगोलिक रूप से एक-दूसरे के एकदम करीब हैं। यह दोनों देश यूरोप की दो संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं। यूं तो दोनों ही देश आल्पस पर्वत श्रृंखला साझा करते हैं लेकिन दोनों ओर की मिट्टी बिलकुल अलहदा किस्म के इंसानों को जन्म देती है। दोनों तरफ की फिजाएं अलग तरह की कला, संस्कृति और जीवन के अलग-अलग रंगों से महकती हैं। जहां एक ओर स्विट्‌जरलैंड आज भी अपने कस्बाई स्वरूप से प्यार करता है, वहीं ऑस्ट्रिया साम्राज्यों और युद्धों वाले पुराने यूरोप और तेजी से भागते, चमकते-दमकते आधुनिक यूरोप का सुंदर संगम है। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की हाल ही की स्विट्‌जरलैंड और ऑस्ट्रिया की यात्रा के माध्यम से वेबदुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक को दोनों देशों को करीब से जानने का मौका मिला। दोनों ही भारत के करीबी दोस्त हैं और दोनों ने ही भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए पूरे समर्थन का वादा किया है। ऐसा बहुत कुछ है जो भारत इन दो देशों से सीख सकता है। स्विट्‌जरलैंड और ऑस्ट्रिया से लौटकर पाठकों के लिए प्रस्तुत है इन दो देशों की झलक दिखलाती यह रिपोर्ट :

भारत की राष्ट्रपति महामहिम प्रतिभा पाटिल के साथ यूरोप के दो खूबसूरत देशों की यात्रा करना निश्चित ही एक विरला अनुभव रहा। रोजमर्रा के मीडिया कवरेज और दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मुलाकात के अलावा भी ऐसा बहुत कुछ था जो देखने और महसूस करने से ताल्लुक रखता है। इस देखे और महसूसे में से ऐसा भी बहुत कुछ है जिसे कंप्यूटर के की-बोर्ड की सहायता से लिख देने को उंगलियां बेताब हैं। बहुत कुछ कागज पर स्याही से छपकर पाठकों तक पहुंच भी जाएगा लेकिन उससे भी बड़ा ऐसा बहुत कुछ होगा जो अलिखा, अचीन्हा रह जाएगा, वह महसूसा हुआ सच है, शब्दों से परे।

देखने-सुनने और पढ़ने-लिखने से परे का अनुभव। जैसे स्विट्‌जरलैंड की फिजाएं - राज कपूर की 'संगम' से लेकर शाहरुख खान की 'डर' और 'दिल तो पागल है' तक में न जाने कितनी ही बार स्विट्‌जरलैंड की हसीन वादियों के दृश्य कितनी ही बार देखे और सराहे गए- पर जब राष्ट्रपति का विशेष विमान स्विट्‌जरलैंड की धरती के करीब आया और जो दृश्य दिखे, जेनेवा की धरती पर उतरकर जो महसूस किया वह सब फिल्मी दृश्यों से बहुत अलग है, उसमें से बहुत कुछ शब्दों से परे हैं। इसी तरह ऑस्ट्रिया भी बेहद खूबसूरत देश है। वहां तो आधुनिक चमक-दमक और प्रकृति का सौंदर्य दोनों ही बराबरी से देखे और महसूसे जा सकते हैं।

कस्बाई अपनत्व और अचूक दक्षता की अद्‌भुत मिसाल है स्विट्‌जरलैंड :
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स्विट्‌जरलैंड का नाम जेहन में आते ही सबसे पहले तो सुंदर वादियों के दृश्य उभरकर सामने आते हैं। खूबसूरत पहाड़ियां और दूर तक पसरी सुंदर झील, ये ऐसे दृश्य हैं जो स्विट्‌जरलैंड की खास पहचान है। जैसे-जैसे जेनेवा का हवाई अड्डा करीब आ रहा था, ये दृश्य साकार होते जा रहे थे। आठ घंटे की लंबी उड़ान की थकान और उसके पहले दो रातों की अधूरी नींद, पता नहीं कहां छू-मंतर हो गई। आंखें मानो विमान की खिड़की से ही चिपक गईं। जेनेवा की धरती पर कदम रखते ही दिल ने कहा - तो यह है स्विट्‌जरलैंड!

यूं हवाई अड्डे से हमारा होटल बहुत करीब था और दस मिनट में ही हम वहां पहुंच गए। रास्ते में बहुत कुछ देखने को नहीं मिला लेकिन हमें ज्यादा निराश नहीं होना पड़ा और बाद के तीन दिनों में सारी कसर पूरी हो गई। हमें जेनेवा के अलावा बर्न जो कि स्विट्‌जरलैंड की राजधानी है और लॉसान जाना था लेकिन बर्न में इतना बड़ा हवाई अड्डा ही नहीं है कि जहां एयर इंडिया वन यानी बोइंग-747 उतर सके। सो स्विट्‌जरलैंड की बाकी यात्रा सड़क मार्ग से ही हुई और इस दौरान उस सारी खूबसूरती से, स्विट्‌जरलैंड के कस्बाई सौंदर्य से और यहां के जनजीवन से रूबरू होने का मौका मिला।

ये सब इसलिए भी संभव हो सका कि स्विट्‌जरलैंड में सड़कों और रेलमार्गों का बहुत मजबूत और व्यापक जाल बिछा हुआ है। पहाड़ों के बीच 3-4 किलोमीटर तक की लंबी सुरंगें पूरी सफाई और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बनाई गई हैं। छोटी सुरंगें तो बहुतेरी हैं। दुर्गम पहाड़ी इलाकों में बनी ये सड़कें, सुरंगें और रेल मार्ग स्विस लोगों के परिश्रम की कहानी खुद कहते हैं। यूं स्विट्‌जरलैंड केवल 41,285 वर्गकिलोमीटर क्षेत्र में फैला है जो कि विश्व के कुल भू-भाग का मात्र 1.5 प्रतिशत है। इसमें उत्तर से दक्षिण तक की अधिकतम दूरी सिर्फ 220 किलोमीटर है और पूर्व से पश्चिम में ये दूरी 348 किलोमीटर है।

भारत में हजारों किलोमीटर सड़क मार्गों के बीच यह दूरी बहुत छोटी नजर आती है। हमारे यहां का हरियाणा राज्य ही इससे बड़ा भूभाग यानी 44,212 वर्गकिलोमीटर क्षेत्रफल घेरता है लेकिन अपने छोटे क्षेत्रफल में भी स्विसवासियों ने लगभग 5,100 किलोमीटर लंबी रेल लाइनें बिछा दी हैं, जो दुनिया की सबसे घनी बिछी रेल लाइनों में से एक है। यहां का 71,500 किलोमीटर लंबा सड़क नेटवर्क पूरे देश को मजबूती से जोड़ता है। इसे हमने अपनी पूरी यात्रा के दौरान पास से देखा।


बहुत महंगा है जेनेवा

कई बड़ी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का मुख्यालय होने से जेनेवा में हर दिन कई गतिविधियां एक साथ चलती हैं। इसी कारण जेनेवा बहुत महंगा भी है। यहां 150 स्विस फ्रैंक यानी कि लगभग 8 हजार रुपए प्रतिदिन में भी बस ठीक-ठाक होटल ही मिल पाएगा। यही स्थिति राजधानी बर्न की भी है जबकि दूसरे शहरों में यहां तक कि स्विट्‌जरलैंड की व्यावसायिक राजधानी ज्यूरिख में भी इससे कम दाम में अच्छे होटल मिल जाएंगे।

पर्यटन का महत्वपूर्ण केंद्र होने के साथ ही जेनेवा पिछले कुछ सालों में लगातार असुरक्षित भी होता जा रहा है। हालांकि यहां हत्या और डकैती जैसे बड़े अपराधों की संख्या तो बहुत कम है लेकिन राहजनी, जेबकटी और होटल के कमरों से सामान गायब होने जैसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। भारतीय पर्यटकों के लिए ध्यान रखने योग्य बात यह है कि कोई भी अनजाना आदमी आपसे - 'ओह यू आर फ्रॉम इंडिया, बॉलीवुड, शाहरुख खान' जैसे शब्द बोलकर आपसे लिपट सकता है और पता लगा आपका बटुआ गायब!

संयुक्त राष्ट्र का जेनेवा स्थित दफ्तर, न्यूयॉर्क स्थित मुख्यालय के बाद दूसरा सबसे बड़ा दफ्तर है। बड़ी बात यह है कि इसी दफ्तर के बाहर स्थित 'पीस एवेन्यू' में गांधीजी की प्रतिमा लगी है। अपनी यात्रा के दौरान 2 अक्टूबर को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल यहीं थीं और उन्हें यहां आकर गांधीजी को याद करना सबसे अविस्मरणीय क्षण लगा। इसी कार्यालय के बाहर चौक में तीन टांगों वाली कुर्सी का मशहूर स्तंभ है। लगभग 5.5 टन लकड़ी से बनी यह कुर्सी स्विस कलाकार डेनियल बर्सेट ने बनाई थी। इसकी चौथी टूटी हुई टांग बारूदी सुरंगों और क्लस्टर बमों के विरोध को दर्शाती है।

जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र के अलावा भी विश्व श्रम संगठन, वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन
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सहित कई संस्थाओं के मुख्यालय हैं लेकिन इन दोनों में सबसे अधिक चर्चा में है 'सर्न' (
CERN)। सर्न दरअसल स्विट्‌जरलैंड और फ्रांस की सीमा पर स्थित है। इस हिस्से में सर्न प्रयोगशाला का मुख्यालय है लेकिन उसकी परिधि 27 किलोमीटर में फैली है। लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर के साथ किए गए प्रयोग और प्रकाश से भी तेज गति से चल सकने वाले न्यूट्रीनो के कारण परमाणु भौतिकी की ये प्रयोगशाला इस वक्त काफी चर्चा में है। यहां पर 200 से अधिक भारतीय वैज्ञानिक कार्यरत हैं और भारत इसका अहम निगरानीकर्ता सदस्य है।

इतने सारे बड़े दफ्तरों की मौजूदगी के बाद भी जेनेवा न्यूयॉर्क या ब्रसेल्स या वियना जैसा बिलकुल नहीं है। इस शहर की कुल आबादी 2 लाख से भी कम है और पूरे जिले की लगभग 4.50 लाख। सोमवार से शुक्रवार तक सारी दुकानें शाम 6 बजे बंद हो जाती हैं और शनिवार को तो 4 बजे ही! रविवार को तो बहुत कम दुकानें खुली मिलती हैं। जेनेवा और फ्रांस की सीमा बहुत घुली-मिली है। जेनेवा के कुछ हिस्सों से फ्रांस का मशहूर पर्वत मों ब्लां आसानी से दिखाई देता है और वह यहां से महज डेढ़ घंटे की दूरी पर है। जेनेवा की झील यूरोप की सबसे बड़ी झील है और यहां का सबसे बड़ा आकर्षण भी। यह झील 73 किलोमीटर लंबी है और इसकी सर्वाधिक चौड़ाई 14 किलोमीटर है। विशाल और भव्य। इस झील के किनारे-किनारे सफर करना बहुत आनंददायक है।

एक तरफ सुंदर झील और दूसरी ओर सीढ़ीदार खेतों पर की गई अंगूर की खेती। अंगूर की ये खेती शराब बनाने के लिए की जाती है। नई ताजा शराब के लिए स्विट्‌जरलैंड का यह हिस्सा काफी मशहूर है। झील के किनारे बसे गांवों की अर्थव्यवस्था भी इसी से चलती है और उनका जनजीवन भी इसी से जुड़ा है। अंगूर की फसल ही सब तय करती है। सालभर मेहनत के बाद नई शराब चखना यहां का एक बड़ा उत्सव है।

जेनेवा, बर्न, बासेल और ज्यूरिख जैसे शहर हालांकि बहुत चर्चित हैं लेकिन स्विट्‌जरलैंड की असली खूबसूरती इन शहरों के बीच सड़क या रेल मार्ग से यात्रा करते समय बीच में पड़ने वाले गांवों में बसती है। पर्वतमाला की पार्श्वभूमि में दूर तक फैले अंगूर के खेत, फार्म हाउस और गौशालाएं मन मोह लेती हैं। जेनेवा के पास स्थित इंटरलाकेन झील तो फिल्मों की शूटिंग के लिए मशहूर है और यहां बड़ी संख्या में पर्यटक भी आते हैं। लंबे हरे मैदानों में चरती गायों को देखकर और उनके गले में बंधी घंटी के स्वर सुनकर स्विट़्‌जरलैंड की मशहूर चॉकलेट और चीज का स्वाद बरबस ही याद आ जाता है। प्रभावित करने वाली बात यह है कि इन सबको स्विट्‌जरलैंड ने कितनी खूबसूरती से संजोकर रखा है।

यहां के छोटे कस्बों और गांवों का जीवन भी बड़ा सुंदर है। अपने घरों के बाहर ही छोटे खेतों या बगीचों में यहां के लोग सब्जियां और सुंदर फूल उगाते हैं। ताजा सब्जियों को घर के बाहर ही सजा कर रख देते हैं और दाम लिख देते हैं। लोग दाम चुकाते हैं और सब्जी ले जाते हैं। ऐसा ही सुंदर फूलों के साथ होता है। जो फूल पसंद आए, उसका दाम चुकाओ और तोड़ लो। कितने व्यवस्थित तरीके से इनकी ये ग्रामीण अर्थव्यवस्था चलती है।

स्विट्‌जरलैंड कई वैज्ञानिकों, दार्शनिकों और विचारकों की कर्मस्थली भी रहा है। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर यहीं आकर रोम्यां रोलां से मिले थे। उनकी 150वीं जन्मशती के अवसर पर लॉसान विश्वविद्यालय में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया गया। इसी तरह बर्न में महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का घर देखना भी यादगार रहा। दो कमरों के इस छोटे से मकान में ही उन्होंने अपने मशहूर सिद्धांत E=mc2 का आधार खोजा था।


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चॉकलेट, चीज, चाकू और घड़ियों के लिए मशहूर स्विट्‌जरलैंड

यह देश जहां एक ओर अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और कस्बाई जीवन के लिए आकर्षित करता है वहीं दूसरी ओर इसके उद्यम और दक्षता का डंका भी सारी दुनिया में बजता है। दुनिया की सबसे मशहूर चॉकलेट निर्माता कंपनी लिंडेट का मुख्यालय यहीं है। मशहूर चॉकलेट और कॉफी निर्माता कंपनी नेस्ले का मुख्यालय भी स्विट्‌जरलैंड में ही है। यहां के पनीर और चीज का स्वाद सारी दुनिया में मशहूर है। स्विट्‌जरलैंड का अन्य उत्पाद जिसके साथ सारी दुनिया कदम मिलाती है वे है घड़ियां। रोलेक्स, ओमेगा, टैग ह्युअर और टिस्सो जैसी मशहूर घड़ियां दुनिया को स्विट्‌जरलैंड की ही देन है। इसी के साथ स्विट्‌जरलैंड मशहूर है 'स्विस नाइफ' यानी जेब में रखे जा सकने वाले बहुउपयोगी चाकू के लिए।

मूलतः स्विस सेना द्वारा प्रयोग में लाया जाने वाला यह चाकू अब काफी लोकप्रिय हो चुका है। इस छोटे से चाकू में चाकू के अलावा कैंची, छोटा चिमटा, बॉटल ओपनर, टूथपिक और यहां तक कि नेलकटर भी शामिल होता है। इन सभी उत्पादों के निर्माण में जिस तकनीकी दक्षता का परिचय स्विस लोग देते हैं और इनकी समय बताने वाली घड़ियां जितनी अचूक होती हैं उनका लोहा सारी दुनिया मानती है।

स्विट्‌जरलैंड अपने इन मशहूर उत्पादों के अलावा अपने बैंकों के लिए मशहूर है। यहां भी इनकी सुरक्षा इतनी भरोसेमंद है कि सारी दुनिया के लोग अपना पैसा यहां रखते हैं। हालांकि पिछले कुछ सालों में ये बैंक इनमें जमा होने वाले काले धन की वजह से चर्चा में हैं। दुनिया के सारे देश चाहते हैं कि यहां के बैंक अपने यहां जमा धन की जानकारी उन्हें दें। यहां के बैंकर इस बात को लेकर काफी चिंतित भी हैं। उनका मानना है कि ग्राहकों की जानकारी देना उनके व्यावसायिक हितों के खिलाफ है। इससे उनके व्यापार पर बुरा असर पड़ेगा।

वैसे इन चर्चाओं के बाद ग्राहकों द्वारा अपना पैसा स्विट्‌जरलैंड के ही पास स्थित लेकंटस्टाइन और मॉरीशस जैसे देशों में भेजे जाने की भी बात सामने आ रही है जो इसी तरह की सुविधाएं देते हैं। स्विट्‌जरलैंड के लगभग सभी बैंकों का मुख्यालय ज्यूरिख में है। इनमें यूबीएस सबसे बड़ा है। ज्यूरिख मुंबई की तरह यहां की व्यावसायिक राजधानी है। यह शहर भी खूबसूरत झील के किनारे बसा है। मुख्य बाजार की कुछ गलियों में तो बस बैंक ही बैंक दिखाई देते हैं। बैंक के साथ ही स्विट्‌जरलैंड का बीमा उद्योग भी बहुत बड़ा है। यहां हर चीज का बीमा करवाना अनिवार्य है। आम लोगों का सबसे बड़ा खर्च होता है स्वास्थ्य बीमा पर। हर व्यक्ति को कम से कम 500 फ्रैंक (लगभग 28 हजार रुपए) प्रतिमाह का बीमा तो करवाना ही पड़ता है।


इतिहास और आधुनिकता का संगम : ऑस्ट्रिया

जब राष्ट्रपति के विशेष विमान एयर इंडिया वन ने स्विट्‌जरलैंड की वायुसीमा को छोड़ा और ऑस्ट्रिया
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की वायुसीमा में प्रवेश किया तो एक अद्‌भुत नजारा देखने को मिला। ऐसा नजारा जिसे देखने के लिए विमान में बैठा हर व्यक्ति बच्चों की तरह उतावला हो रहा था। विमान की बाईं तरफ दो यूरो-हारपुन फाइटर जेट दिखाई दिए। ये अत्याधुनिक लड़ाकू विमान हैं जिनका इस्तेमाल हाल ही में लीबिया में गद्दाफी के ठिकानों पर हमले के लिए किया गया था। ये दोनों यूरोजेट दरअसल भारत की राष्ट्रपति की अगवानी के लिए सम्मानस्वरूप आए थे। बाद में एक विमान दाईं ओर चला गया और फिर वियना हवाई अड्डे पर उतरने तक ये हवाई जहाज साथ बने रहे।


ये विमान न केवल भारत के प्रति ऑस्ट्रिया के सम्मान को दर्शाते हैं बल्कि ऑस्ट्रिया की मजबूत सैन्य शक्ति का भी परिचायक है। 17 से 18वीं सदी में यहां के ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य का खूब बोलबाला था जो 1918 में पहले विश्वयुद्ध की समाप्ति तक चला। बाद में यहां नाजी जर्मनी का प्रभाव रहा जो 1945 में हिटलर के पतन और द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति तक रहा। यह भी एक विडंबना ही है कि जिस हिटलर ने ऑस्ट्रिया पर कब्जा किया और यहां यहूदियों के खिलाफ तगड़ा दमनचक्र चलाया, उसका जन्म ऑस्ट्रिया में ही हुआ था। न हिटलर ने कभी ऑस्ट्रिया को अपना माना और न ऑस्ट्रियावासी कभी अपने मन से उसके प्रति नफरत को निकाल पाएंगे। वैसे ऑस्ट्रिया महान संगीतकार मोजार्ट की भी जन्मस्थली है और इस पर उसे नाज है।

मोजार्ट की खूबसूरत जन्मस्थली :
ऑस्ट्रिया के उत्तर-पश्चिम की ओर एक और खूबसूरत शहर बसा है साल्जबर्ग। साल्जबर्ग महान संगीतकार मोजार्ट की जन्मस्थली है। आल्पस की खूबसूरत पहाड़ियों से घिरे इस शहर को देखकर ही यह पता लग जाता है कि मोजार्ट को इतना उम्दा संगीत रचने की प्रेरणा कहां से मिली होगी। वैसे आधुनिक समय में साल्जबर्ग हॉलीवुड की मशहूर फिल्म 'साउंड ऑफ म्यूजिक' के लिए भी जाना जाता है। पांच ऑस्कर पुरस्कार जीतने वाली इस फिल्म के अधिकांश हिस्से को साल्जबर्ग में ही फिल्माया गया है। उन स्थानों को देखने के लिए जहां इस फिल्म कि शूटिंग हुई है, पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। खूबसूरत मैदान और आल्पस की बर्फ ढंकी चोटियों को देखकर मन करता है यहीं ठहर जाओ।

आबादी एक बड़ा कारण :
हालांकि स्विट्‌जरलैंड और ऑस्ट्रिया दोनों का ही भूभाग बहुत बड़ा नहीं है लेकिन उनकी सबसे बड़ी ताकत है कम आबादी। जहां स्विट्‌जरलैंड की कुल आबादी 80 लाख से भी कम है, वहीं ऑस्ट्रिया की आबादी है 90 लाख। कम लोगों के कारण यहां न केवल जीवन की गुणवत्ता का स्तर बहुत ऊंचा है बल्कि प्रति व्यक्ति आय और प्रति व्यक्ति उत्पादन में भी वह काफी आगे हैं। दोनों ही देश प्रमुख मुद्दों पर जनमत संग्रह की प्रक्रिया अपनाते हैं। ऐसे ही एक जनमत संग्रह के कारण ऑस्ट्रिया में परमाणु ऊर्जा का प्रयोग नहीं किया जाता। कुल मिलाकर ये दोनों ही देश यूरोप के ऐसे उजले प्रतिबिंब हैं जो अपनी खूबसूरती, कौशल और मेहमाननवाजी से सारी दुनिया को आकर्षित करते हैं।


खूबसूरत है वियना

वियना यूरोप के सबसे खूबसूरत शहरों में से एक है। डेन्यूब नदी के किनारे बसा वियना प्राचीन और आधुनिकता का सुंदर संगम पेश करता है। वियना का मुख्य शहरी भाग जहां चहल-पहल और रौनक से भरा है, वहीं बाहरी किनारे सुंदर प्राकृतिक नजारे पेश करते हैं। मुख्य शहरी भाग के इर्द-गिर्द एक रिंग रोड बनी है और इस रिंग के इर्द-गिर्द ही यहां की शहरी जिंदगी घूमती है। ठीक मध्य में पुरानी ऐतिहासिक इमारतों को होटलों में तब्दील कर दिया गया है। यहां का राष्ट्रपति भवन भी पहले राजमहल था। यहां की संसद भवन की इमारत भी बहुत ही आकर्षक है। यहां मुख्य बाजार में अधिकतर दुकानें रात 9 बजे तक खुली रहती हैं।

कुछ बार और रेस्तरां तो रातभर भी खुले रहते हैं। सैर-सपाटे और व्यवसाय दोनों ही के लिए
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यहां पर्यटकों के आने का सिलसिला लगातार बना रहता है। यहां पर रेल और सड़क मार्गों का रखरखाव प्रभावित करने वाला है। ट्रैफिक जाम होना एक दुर्लभ घटना है। वियना ऑस्ट्रिया का सबसे बड़ा शहर है और इसकी आबादी 20 लाख है। यह ऑस्ट्रिया की कुल आबादी का 25 प्रतिशत है। 2005 में हुए एक सर्वे के मुताबिक दुनिया के 123 बड़े शहरों में वियना में जीवन की गुणवत्ता सर्वोत्कृष्ट पाई गई। इस सर्वे के लक्षण यहां की सड़कों पर घूमते हुए आसानी से मिल जाते हैं। तनाव या झगड़े के कोई निशान नहीं। शाम ढले रेस्तरां के अहाते बीयर की चुस्कियों, खिलखिलाहट और गपशप से गुलजार हो जाते हैं। यहां अपराध भी बहुत कम होते हैं। साल में 2 या 3 हत्या से अधिक का यहां आंकड़ा सामने नहीं आता। वियना से पास ही काहलनबर्ग की पहाड़ियों से वियना शहर का बहुत संदर दृश्य दिखाई देता है। वियना के पास से बह रही डेन्यूब नदी के प्रवाह को संचालित कर उसकी नहरों को बीच शहर की ओर मोड़ा गया है।


यूरोप की आर्थिक मंदी के बीच भी ऑस्ट्रिया शान से सिर उठाकर खड़ा है। वह यूरोप में जर्मनी के बाद दूसरा आर्थिक रूप से ताकतवर देश है। हालांकि ऑस्ट्रिया की हवाई सेवा ऑस्ट्रियन एयरलाइंस को जर्मनी की लुफ्थांसा ने खरीद लिया है फिर भी विज्ञान प्रौद्योगिकी और रेल तकनीक के क्षेत्र में ऑस्ट्रिया की धाक पूरी दुनिया में कायम है। ऑस्ट्रिया भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए भी पूरी दुनिया को एक करने में लगा हुआ है।


मंजीत के खाने ने दिल जीत लिया

यों जब भी इस तरह की यात्राओं पर जाते हैं तो विदेश मंत्रालय के प्रचार विभाग के अधिकारियों और स्थानीय दूतावास की पूरी कोशिश होती है कि भारतीय दल को और मीडियाकर्मियों को भोजन के लिए परेशान न होना पड़े और उन्हें भारतीय खाना भी मिले लेकिन वियना के रेडिसन होटल के शेफ मंजीत सिंह ने तो कमाल ही कर दिया। 4 दिन स्विट्‌जरलैंड में बिताने और लंबी सड़क यात्राओं और हवाई यात्रा से थका भारतीय दल जब होटल पहुंचा और वहां दाल मखनी, मटर पनीर, पंजाबी छोले, गरमा गरम नान, पूरियां और गुलाब जामुन देखे तो सभी भोजन पर टूट पड़े। मांसाहार में भी चिकन और मटन के कई लजीज व्यंजन बने थे। बस फिर क्या था, वियना में तो अगले दो दिन मंजीत की ही चर्चा होती रही। मंजीत ऊंची कद-काठी के तगड़े व्यक्ति हैं।

मैंने पूछा - 'भई कहां से हो।' मंजीत तपाक से बोले - 'साहब पंजाबी मुंडा हूं, फगवाडे से हूं।
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18 साल हो गए अब तो यहां। बस यहां आने वाले इंडियंस को जब खुश देखता हूं तो मेरी भी तबीयत खुश हो जाती है।' मैंने फिर कहा - 'पहलवान लगते हो?' कहने लगे, 'लगता क्या हूं, पहलवान हूं। पंजाब चैंपियन रहा हूं। कुश्ती मेरे खून में है। मिट्टी और गादी दोनों की कुस्ती लड़ी है मैंने।' मैंने कहा कि फिर तो मैंने ठीक पहचाना, पहलवानी से कुछ रिश्ता मेरा भी है सो काम आ गया। फिर तो मंजीत से खूब बातें हुईं। वह आज भी कुश्ती कला को दिल से चाहते हैं। कहते हैं अब न वह शौक रहा, न खिलाई-पिलाई इसीलिए जब भी भारत जाता हूं अपने खर्चे पर एक दंगल जरूर करवाता हूं। यहां से पहलवानों के संपर्क में सतत बना रहता हूं। चाहता हूं कि यह खेल और यह कला जिंदा रहे, बस।


मंजीत का पूरा परिवार अब यहीं बस गया है। हालांकि वह अलग - अलग व्यंजन सीखने के लिए यात्राएं करते रहते हैं। उनकी दो बेटियां और एक बेटा है। एक बेटा - बेटी तो जुड़वां हैं। मंजीत का भारत प्रेम और भारतीयों का उनके प्रति प्रेम इसी बात से जाहिर होता है कि रेडिसन होटल के डायरेक्टर ने उनके लिए खास तौर पर एक ड्रेस डिजाइन करवाई है। इसमें तिरंगे बटन लगे हैं और बांह पर ऑस्ट्रिया और भारत दोनों का ही ध्वज बना हुआ है। मंजीत के खाने की इतनी तारीफ हुई की आखिरी दिन संसदीय कार्य राज्यमंत्री राजीव शुक्ला और सांसद विजय दर्डा भी उनके भोजन का स्वाद चखने मीडिया होटल पहुंच गए। दोनों ने मंजीत के खाने का खूब लुफ्त उठाया और उनकी तारीफ की।


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