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रोमांचकारी पर्यटनस्थल लद्दाख

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- लेह से सुरेश एस डुग्गर

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बर्फीला रेगिस्तान लद्दाख उन सभी के लिए रोमांचकारी पर्यटन स्थल के रूप में उभरा है जो पर्यटन को रोमांच के साथ जोड़कर देखते हैं और ऐसे ही स्थलों की तलाश में रहते हैं। यही कारण है कि पिछले छः सालों में दो लाख से अधिक पर्यटकों ने बर्फीले रेगिस्तान की रोमांचकारी परिस्थितियों का आनंद उठाया है।

सरकारी आँकड़े एक और दिलचस्प हकीकत यह भी बयान करते हैं कि लद्दाख की रोमांचक यात्रा का लुत्फ उठाने में भारतीय पर्यटकों के मुकाबले विदेशी सैलानियों की संख्या तीन गुना ज्यादा रही।

पिछले कुछ वर्षों से लद्दाख के पश्चिम में स्थित हिमालय पर्वतमालाओं की सुरम्य घाटियाँ और पर्वत श्रृंखलाएँ विदेशियों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। हालाँकि लद्दाख के पूर्व में स्थित विश्व की सबसे बड़ी दो झीलें - पेंगांग और सो-मोरारी भी इन विदेशियों को अपनी ओर खींचती हैं जो कुछ वर्ष पूर्व तक प्रतिबंधित क्षेत्र में आती थीं,लेकिन फिलहाल वह सैलानियों की आवाजाही का अभिन्न हिस्सा बन गई है।

विदेशी सैलानियों के लिए लद्दाख के रोमांचकारी पर्यटन स्थल बनने का नुकसान यहाँ की कला-संस्कृति को भी झेलना पड़ रहा है। विदेशियों की जीवनशैली में पाई जाने वाली उन्मुक्तता यहाँ की नई पीढ़ी को आकर्षित कर रही है और वे अपनी सभ्यता और संस्कृति भुलाते जा रहे है
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हालाँकि आज यह बर्फीला रेगिस्तान भले ही पर्यटकों को बड़े पैमाने पर आकर्षित कर रहा हो, पर एक पर्यटन स्थल के लिए जरूरी संसाधन और तंत्र का अभाव भी यहाँ दिखता है। यहाँ तक पहुँचने के लिए सड़क मार्ग तो है और उससे यात्रा करना बेहद रोमांचकारी भी है, पर कुछ समय पूर्व तक इस मार्ग का करीब 20 किलोमीटर का हिस्सा पाकिस्तानी सैनिकों की तोपों की सीधी जद में रहा है इसलिए बहुत खतरनाक है।

इस पर्यटन स्थल के प्रति स्वदेशी सैलानियों की कमी के आर्थिक पहलू भी हैं। एक तो सड़क मार्ग की यात्रा बेहद महँगी है वहीं होटलों सहित अन्य खर्च भी सामान्य से बहुत ज्यादा है जिससे सामान्य सैलानियों के लिए यहाँ की यात्रा आसान नहीं है।

इधर विदेशी सैलानियों के लिए लद्दाख के रोमांचकारी पर्यटन स्थल बनने का नुकसान यहाँ की कला-संस्कृति को भी झेलना पड़ रहा है। विदेशियों की जीवनशैली में पाई जाने वाली उन्मुक्तता यहाँ की नई पीढ़ी को आकर्षित कर रही है और वे अपनी सभ्यता और संस्कृति भुलाते जा रहे हैं। करीब चार दशक पहले जब लद्दाख को विदेशियों के आवागमन के लिए खोला गया था, तब यहाँ के लोग बाहरी दुनिया से पूरी तरह अनभिज्ञ थे।

आज उनमें विदेशियों की अनुकृति का ऐसा प्रभाव पड़ा है कि लद्दाख की संस्कृति देखने की लालसा में यहाँ पहुँचे पर्यटक निराशा ही पाते हैं। ऐसे में इस सांस्कृतिक घुसपैठ से प्रभावित होकर अपना महत्व और अपनी निजता खोती जा रही स्थानीय संस्कृति सहित बौद्ध मंदिरों व अन्य ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षण प्रदान किए जाने की जरूरत है।

लद्दाख की पहचान माने-जाने वाले इन तत्वों के अस्तित्व का ही संकट खड़ा हो गया है। सारे संदर्भ गंभीर हैं, पर सरकार इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में प्रचारित करने में तो जुटी हुई है, लेकिन उसने उन सुविधाओं को उपलब्ध करवाने की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया, जिनकी एक पर्यटक को आवश्यकता होती है। साथ ही ऐतिहासिक धरोहरों आदि को बचाने का प्रयास भी नहीं किया जा रहा है।

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