Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(वरुथिनी एकादशी)
  • तिथि- वैशाख कृष्ण एकादशी
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00
  • व्रत/मुहूर्त- वरुथिनी एकादशी, नर्मदा पंचकोशी यात्रा, प्रभु वल्लभाचार्य ज.
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

Kabir Das Jayanti 2021 : कबीर पंथ की 12 खास बातें

हमें फॉलो करें Kabir Das Jayanti 2021 : कबीर पंथ की 12 खास बातें
webdunia

अनिरुद्ध जोशी

जगतगुरु स्वामी रामानंदाचार्य के बारह शिष्यों में से एक संत कबीर सभी से अलग थे। उन्होंने गुरु से दीक्षा लेकर अपना मार्ग अलग ही बनाया और संतों में वे शिरोमणि हो गए। कुछ लोग कबीर को गोरखनाथ की परम्परा का मानते हैं, जबकि उनके गुरु रामानंद वैष्णव धारा से थे। संत कबीरजी ने तो अपना कोई पंथ नहीं चलाया वे तो निर्गुर भक्ति धारा के कवि थे। बाद में उनके अनुयायियों ने कबीर पंथ चलाया। आओ जानते हैं इस के संबंध में 12 खास बातें।
 
 
1. संत कबीर ने जो मार्ग बनाया था वह निर्गुण ब्रह्म की उपासना का मार्ग था। निर्गुण ब्रह्म अर्थात निराकार ईश्‍वर की उपासना का मार्ग था। लेकिन जैसा कि होता आया है संत कुछ समझाते हैं और अनुयायी कुछ और समझ थे। उन्होंने तो मार्ग ही बनाया था लेकिन अनुयायियों ने पंथ बना दिया। कबीर के शिष्यों ने फिर उनकी विचारधारा पर एक पंथ की शुरुआत की।
 
2. संत कबीर के चार प्रमुख शिष्य थे- चतुर्भुज, बंकेजी', सहतेजी और धर्मदास। ये चारों शिष्यों चारों ओर गए ताकि कबीर की बातों को फैलाकर समाज को जागरूक किया जा सके।
 
3. चौथे शिष्य धर्मदास ने कबीर पंथ की 'धर्मदासी' अथवा 'छत्तीसगढ़ी' शाखा की स्थापना की थी। बाकी के तीन शिष्यों की परंपरा के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है। 
 
4. प्रारंभ में कबीर पंथ की 2 प्रमुख शाखाएं बताई जाती है। पहली शाखा का केंद्र 'कबीरचौरा' (काशी) है। दूसरा बड़ा केंद्र छत्तीसगढ़ के तहत आता है, जिसकी स्थापना धर्मदास ने की थी। वाराणसी में जहां कबीरदासजी रहते थे उसे अब कबीरचौरा कहा जाता है।
 
5. कबीरचौरा शाखा कबीर के शिष्य सुरतगोपाल ने शुरू की थी और ये सबसे पुरानी मानी जाती है। इसकी उपशाखाएं बस्ती के मगहर, काशी के लहरतारा और गया के कबीरबाग में हैं। कबीरचौरा जगदीशपुरी, हरकेसर मठ, कबीर-निर्णय-मंदिर (बुरहानपुर) और लक्ष्मीपुर मठ शामिल है। छत्तीसगढ़ की भी कई शाखाएं और उपशाखाएं हो चली है। छत्तीसगढ़ी शाखा की उपशाखाएं मांडला, दामाखेड़ा, छतरपुर आदि जगहों पर हैं।
 
6. छत्तीसगढी शाखा ने कबीर पर कई ग्रंथों और रचनाओं का निर्माण करके सभी से अलग एक नया मार्ग बनाया जिसमें कबीर के मूल सिद्धांत गायब होने की बात कही जाती है।
 
7. माना जाता है कि कबीर पंथ की अब 12 प्रमुख शाखाएं हो चली हैं, जिनके संस्थापक नारायणदास, श्रुतिगोपाल साहब, साहब दास, कमाली, भगवान दास, जागोदास, जगजीवन दास, गरीब दास, तत्वाजीवा आदि कबीर के शिष्य हैं।
 
8. शुरुआत में कबीर साहब के शिष्य श्रुतिगोपाल साहब ने उनकी जन्मभूमि वाराणसी में मूलगादी नाम से गादी परंपरा की शुरुआत की थी। इसके प्रधान भी श्रुतिगोपाल ही थे। उन्होंने कबीर साहब की शिक्षा को देशभर में प्रचार प्रसार किया। कालांतर में मूलगादी की अनेक शाखाएं उत्तरप्रदेश, बिहार, आसाम, राजस्थान, गुजरात आदि प्रांतों में स्थापित होती गई। 
 
9. गुजरात में प्रचलित रामकबीर पंथ के प्रवर्तक कबीर शिष्य 'पद्मनाभ' तथा बिहार पटना में 'फतुहा मठ' के प्रवर्तक तत्वाजीवा अथवा गणेशदास बताए जाते हैं जबकि मुजफ्फरपुर में कबीरपंथ की बिद्दूरपुर मठवाली शाखा की स्थापना कबीर के शिष्य जागूदास ने की थी। बिहार में सारन जिले में धनौती में स्थापित भगताही शाखा को कबीर शिष्य भागोदास ने शुरू किया था। 
 
10. इस पंथ के लोग पहले तो एकेश्वरवादी होकर निर्गुण ब्रह्मा की उपासना ही करते थे। उसी के अनुसार भजन गाकर उस परमसत्य का साक्षात्कार करने का प्रयास करते थे। प्रारंभ में कबीर पंथी मूर्ति की पूजा नहीं करके वेदों के अनुसार निकाराकर सत्य को ही मानते थे लेकिन बाद में ये मूर्ति पूजकों का विरोध भी करने लगे। इस प्रकार एक नई राह बनने लगी। दरअसल, कबीर पंथ निर्गुण उपासकों का पंथ है जिसमें किसी भी समाज का व्यक्ति सम्मिलित हो सकता है लेकिन वर्तमान में जातिगत राजनीति और राजनीति के चलते सबकुछ गड़बड़ हो चला है। हालांकि कबीरदासजी रामनाम की महिमा गाते थे। उन्होंने कभी कोई ग्रंथ नहीं लिखा। वे सभी धर्मों के कर्मकाण्ड के विरोधी थे। वो उपनिषदों के निर्गुण ब्रह्मा को मानते थे।
 
11. धीरे-धीरे अब कबीर पंथ का स्वरूप पूर्णत: बदल चुका है। कबीर-पंथ में प्रार्थना को बंदगी कहा जाने लगा है।सुबह और फिर रात में भोजन के बाद बंदगी की जाती है। कबीर पंथी मानव शरीर को पंचतत्वों से बना मानते हैं। इसीलिए वे पंच तत्वों से विजय प्राप्त करने के लिए पांच बार बंदगी करना जरूरी मानते हैं। पंथ में पूर्णिमा के व्रत का महत्व सबसे अधिक है।
 
12. कबीर-पंथ में कण्ठी दीक्षा दी जाती है जिसे "बरु' या कण्ठी धारणा करना करते हैं। तुलसी के डण्ठल से कण्ठी बनती है। आयोजन में शिष्य के कण्ठ में कण्डी बांधकर दीक्षा देते हैं। 

webdunia

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Bhaum pradosh vrat 2021 : भौम प्रदोष व्रत आज, जानें पूजन विधि एवं मुहूर्त