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महात्मा गाँधी

हमें फॉलो करें महात्मा गाँधी
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भूख या इसका विकल्प... 22श्वान का भोजन... कड़ाके की ठंड में ओढ़ने के लिए कुछ नहीं, खून के धब्बेयुक्त पहनने के लिए चिथड़े, रोगाणु उत्पीड़न, आततायी लोग, जेल में इन साधनों के साथ स्वागत के लिए तैयार हैं।

भविष्य के सत्याग्रहियों को चेतावनी देते हुए गाँधीजी ने उक्त बात कही थी। इस अपील का जनता पर निश्चित तौर पर गहरा असर पड़ा होगा, क्योंकि वे स्वयं इन कष्टों के आदि थे।

महात्मा गाँधी न केवल एक राजनीतिज्ञ थे बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं में उनका अच्छा खासा हस्तक्षेप था। वे एक सफल नीति निर्धारक, अच्छे समाज सुधारक, कुशल अर्थशास्त्री तो थे ही, उनका विशेष गुण था, उनका उत्कृष्ट जन संचारक होना।

आज भारत में जन संचार के विभिन्न माध्यम हैं। इनमें समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट प्रमुख हैं। आजादी के पूर्व बहुत सीमित संचार के साधनों के बाद भी गाँधीजी लोकप्रिय हुए।

वे तब लोकप्रिय हुए जब जन संचार की कोई अधोसंरचना उपलब्ध नहीं थी। ऐसे समय में जब मुद्रण माध्यम अँगरेजी हुकूमत की निगरानी में था, गाँधीजी ने अपनी वैचारिक लहर गाँव-गाँव और शहर-शहर तक पहुँचाई।

उनका सरल, सादी आम भाषा का प्रयोग और सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा के प्रयोग ने जनसामान्य को उनके संदेशों से जुड़ने में सहूलियत दी।

इंडियन ओपिनियन में गाँधीजी ने लिखा है-
व्यक्ति का प्रमुख संघर्ष आंतरिक है। वह आंतरिक शक्ति ही प्रेरणा देती है। यह कार्य समाचार-पत्र अच्छी तरह कर सकता है।

एक पत्रकार के रूप में उन्होंने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक विचार प्रस्तुत किए, जिसमें बुद्धिजीवी वर्ग यथा वकील, शिक्षक, विद्यार्थी, पत्रकार, ट्रेड यूनियन नेता आदि ने गाँधीजी को प्रेरणा का स्रोत बना लिया।

वे अपने समाचार-पत्रों के माध्यम से तो पहुँचाया ही करते थे, परंतु प्रेस स्वातंत्र्य और प्रसार संख्या की कमी के कारण पाठकों को भी प्रसार के लिए कहा करते थे। अहमदाबाद से प्रकाशित 'सत्याग्रही' में उन्होंने लिखा था- 'कृपया पढ़ें, कॉपी करें और अपने दोस्तों के मध्य प्रसारित करें और वे भी इसकी प्रतियाँ बनाएँ और प्रचार करें।'

'हरिजन' समाचार-पत्र का उद्देश्य ही ग्रामीणों की भलाई तथा उनके जीवन में सुधार लाना था। सामाजिक सुधार, शिक्षाप्रद लेखों के अलावा गाँधीजी के समाचार-पत्रों में आगामी राजनीतिक कार्यक्रम, रणनीति आदि का भी विवरण होता था।

भारत जैसे विभिन्न भाषा धर्म वाले देश में एक राष्ट्र की अवधारणा को बढ़ावा देने का कार्य एक कुशल संचारक ही कर सकता था और यह कार्य गाँधीजी ने किया।

गुलाम भारत में आजादी बिना किसी सुदृढ़ नेतृत्व के नहीं आ सकती थी। और सुदृढ़ नेतृत्व का आधार था एक सुदृढ़ जन संचार। ऐसे समय में गाँधीजी ने अपने व्यक्तित्व के प्रयास से स्त्री, पुरुष, शिक्षित, अशिक्षित, किसान, मजदूर, पूँजीपति, सभी को प्रभावित किया और देश की स्वतंत्रता के लिए सबको एक साथ पिरोने का कार्य किया।

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