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एक्‍स्‍पो मिलान 2015 : धरती के लिए आहार-जीवन के लिए ऊर्जा

हमें फॉलो करें एक्‍स्‍पो मिलान 2015 : धरती के लिए आहार-जीवन के लिए ऊर्जा
-मिलान से लौटकर राकेश मित्‍तल 
इटली के मिलान शहर में इन दिनों एक भव्‍य अंतरराष्‍ट्रीय प्रदर्शनी चल रही है, जिसकी थीम है- 'फीडिंग द प्‍लेनेट-एनर्जी फॉर लाइफ'। इस प्रदर्शनी (एक्‍स्‍पो) की शुरुआत 1 मई 2015 को हो चुकी है और यह 31 अक्‍टूबर 2015 तक जारी रहेगी।

 
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इस दौरान यहां दुनियाभर के लगभग डेढ़ सौ देश इस समय की सार्वजनिक महत्‍वपूर्ण वैश्विक चुनौती 'हर मुंह के लिए पर्याप्‍त स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक भोजन' के परिपेक्ष्‍य में अपनी नवीनतम योजनाएं, तकनीक एवं कार्यप्रणाली साझा करेंगे।
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'भोजन' जैसे विषय को लेकर इतिहास में पहली बार इतने वृहद पैमाने पर कोई आयोजन किया जा रहा है। ऐसा अनुमान है कि इन छह महीनों में पूरे विश्‍व से लगभग दो करोड़ से भी ज्‍यादा लोग इस एक्‍स्‍पो में शिरकत करेंगे। 
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इस पृथ्‍वी पर जीवन की शुरुआत के साथ ही समस्‍त जीव-जंतु अपनी क्षुधापूर्ति के लिए पृथ्‍वी का दोहन कर रहे हैं और इतनी सदियां बीत जाने के बाद भी यह धरती हमारा पेट भर रही है, किंतु पृथ्‍वी की भी अपनी एक सीमा है।
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यदि हम सिर्फ दोहन ही करते रहे और बदले में पृथ्‍वी की सेहत का, उसके पर्यावरण का, उसके पुनर्जीवन चक्र (रिसाइकलिंग) का ख्‍याल नहीं रखेंगे तो जल्‍द ही वह समय आ जाएगा जब यह पृथ्‍वी हमें कुछ भी देने के काबिल नहीं रहेगी।
 
 

आज भी यह प्रत्‍येक जीव-जंतु की आवश्‍यकता के अनुसार भोजन देने में सक्षम है और दे भी रही है, किंतु हमारे लालच की पूर्ति करना उसके लिए असंभव है।
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भोजन का घोर अपव्‍यय भी एक बहुत बड़ा मुद्दा है। प्रतिवर्ष करोड़ों टन भोजन का अपव्‍यय हो जाता है। वहीं दूसरी ओर लाखों लोग भूख से मर जाते हैं। इन्‍हीं सब चिंताओं को 'मिलान एक्‍स्‍पो' रेखांकित करता है और उनके समाधान के उपाय बताने की कोशिश करता है।
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दुनिया का सबसे पहला 'वर्ल्‍ड एक्‍स्‍पो' वर्ष 1851 में लंदन में हुआ था। उसकी सफलता से प्रेरित होकर बाद में अनेक देशों ने इस तरह के आयोजन किए।
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इस तरह की अंतरराष्‍ट्रीय प्रदर्शनियों को एक सुगठित एवं व्‍यवस्थित स्‍वरूप देने के लिए वर्ष 1928 में एक  अंतरराष्‍ट्रीय संधि के तहत 'ब्‍यूरो ऑफ इंटरनेशनल एक्‍स्‍पोजिशंस (बीआईई) का गठन किया गया, जिसका मुख्‍यालय फ्रांस के पेरिस में बनाया गया।
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दुनिया के 194 में से 167 देश इसके सदस्‍य हैं। भारत इस संगठन का सदस्‍य नहीं है और संभवत: इसी कारण 'एक्‍स्‍पो मिलान' में भारत का कोई पैवेलियन नहीं है। 
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इक्‍कीसवीं सदी की शुरुआत में 'बीआईई' के निर्णयानुसार प्रत्‍येक पांच वर्ष में एक बार विश्‍व के किसी प्रमुख शहर में इस तरह के बड़े एक्‍स्‍पो का आयोजन किया जाता है, जिन्‍हें 'रजिस्‍टर्ड यूनिवर्सल एक्‍स्‍पोजिशंस' कहते हैं।
 
 

प्रत्‍येक एक्‍स्‍पो किसी न‍ किसी वैश्विक रुचि के विषय पर आधा‍रित होता है और उसकी अवधि छह माह के लिए होती है। पिछला एक्‍स्‍पो वर्ष 2010 में चीन के शंघाई शहर में हुआ था, जिसमें लगभग सात करोड़ लोगों ने भाग लिया था। आगामी एक्‍स्‍पो वर्ष 2020 में दुबई में होगा।  
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ये एक्‍स्‍पो अत्‍यंत भव्‍य पैमाने पर आयोजित किए जाते हैं, इसलिए इनकी तैयारियों में वर्षों का समय लगता है। इनमें अमूमन दो से चार लाख लोग प्रतिदिन आते हैं। इतनी बड़ी जनसंख्‍या के लिए उचित सुरक्षा, परिवहन, आवास, भोजन आदि की व्‍यवस्‍था सुचारू रूप से बनाए रखना अत्‍यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है।
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इसके अलावा विशाल एक्‍स्‍पो क्षेत्र, जो कई हेक्‍टेयर भूमि में फैला होता है, के लिए उचित जगह की तलाश, विभिन्‍न ढांचागत निर्माण, उनके रखरखाव की व्‍यवस्‍था वेीअ तैयारियों में लंबा समय लगता है। 'मिलान एक्‍स्‍पो 2015' की तैयारियां वर्ष 2008 से शुरू हो गई थी। 
 
मिलान शहर में 15 किलोमीटर दूर उत्‍तर पश्चिम में फिएरा मिलानो फेयर ग्राउंड्‍स के पास लगभग ग्‍यारह लाख वर्गमीटर क्षेत्र में एक्‍स्‍पो पंडाल का निर्माण किया गया है, जो लगभग पौने तीन किलोमीटर चौड़ा और चार किलोमीटर लंबा है।
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इसमें विभिन्‍न देशों के बेहद खूबसूरत पै‍वेलियन बने हैं तथा कुछ थीम पार्क पैवेलियन हैं जो आहार संबंधी अलग-अलग विषयों पर केंद्रित हैं। इटेलियन क्षेत्र के पैवेलियनों के चारों ओर साढ़े चार किलो‍मीटर लंबी कृत्रिम नहर का निर्माण किया गया है जो उनकी खूबसूरती में चार चांद लगा रही है। पूरे क्षेत्र में पानी, भोजन, शौचालय, सूचना केंद्र एवं चिकित्‍सा सहायता की बेहतरीन सुविधाएं हैं। 
 
इस एक्‍स्‍पो में कुल 145 देश, 17 अंतरराष्‍ट्रीय संस्‍थाएं और 21 बड़े व्‍यापारिक समूह अपनी जान‍कारियां साझा कर रहे हैं। विश्‍व के अलग-अलग देशों में खाद्य और आहार संबंधी संसाधनों के अधिकतम उपयोग, न्‍यूनतम बर्बादी और उच्‍च तकनीकी गुणवत्‍ता को अपनाते हुए जो भी काम हो रहे हैं, उसकी झलक हमें इन पैवेलियनों में दिखाई पड़ती है।
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इसके साथ ही विभिन्‍न देशों की खाद्य संस्‍कृति, परंपराएं एवं रचनात्‍मकता का रोचक प्रदर्शन भी यहां दिखाई पड़ता है। एक सामयिक विषय पर सामूहिक चिंतन का यह अनूठा प्रयास है।    (सभी चित्र राकेश मित्तल)

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