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'हमारे लिए यह दिल्ली के कुतुब मीनार ढहने जैसा'

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काठमांडू , सोमवार, 4 मई 2015 (23:54 IST)
काठमांडू। काठमांडू में रहने वाले लोगों के लिए ऐतिहासिक धरहरा टॉवर का ढहना किसी ढांचे का महज नष्ट होना नहीं है बल्कि इससे राष्ट्र के सांस्कृतिक इतिहास को भी नुकसान पहुंचा है। 180 साल पुराना ऐतिहासिक ढांचा 25 अप्रैल को करीब 200 लोगों के साथ जमींदोज हो गया।
पशुपतिनाथ मंदिर के पास तिलगंगा में रहने वाले 18 साल के बेन कुमार श्रेष्ठ ने बताया कि इस टॉवर का नष्ट होना, उसके बचपन की यादों के नष्ट होने के जैसा है।
 
उसने बताया, मुझे याद है कि पिछली बार मैं वहां गया था। आप उस पर से सारा शहर देख सकते थे। काठमांडू घाटी के विश्व धरोहर स्थल का हिस्सा रही इस पुरातात्विक इमारत का निर्माण 1832 में नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री भीमसेना थापा ने कराया था और 1934 के विनाशकारी भूकंप में इसे भारी नुकसान भी पहुंचा था, जब शीर्ष से इसका एक हिस्सा गिर गया था।
 
फिलहाल नई  दिल्ली में पढ़ाई कर रहे 20 वर्षीय छात्र दीपा बायजंकर ने कहा, दिल्ली में मैंने खूबसूरत कुतुब मीनार को और बड़ी संख्या में वहां लोगों को जाते देखा है। हम महसूस कर सकते हैं कि इस मीनार के ढहने पर भारतीय कैसा महसूस करेंगे। धरहरा (आधिकारिक रूप से भीमसेन टॉवर) का वास्तुशिल्प मुगल और यूरोपीय शैली का था।
 
इस टॉवर को 1934 के भूकंप में भी नुकसान पहुंचा था। सातवीं मंजिल पर इस पर एक पर्यवेक्षण स्थल था जहां से शहर का दीदार किया जाता था। शीर्ष पर दाईं ओर एक छोटा शिव मंदिर भी था जिसे नेपाल नरेश राणा बहादुर ने अपनी रानी के लिए बनवाया था। यह टॉवर लोगों के चढ़ने के लिए कुछ साल पहले ही खोला गया था। (भाषा)

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