गिलगित। जहां चीन की राजधानी बीजिंग में सोमवार से 'वन बेल्ट वन रोड' (सिल्क रोड योजना) सम्मेलन शुरू हो रहा है, जिसमें पाकिस्तान समेत 29 देशों के प्रमुख शामिल हो रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित-बाल्टिस्तान में इस योजना के अंतर्गत आने वाले चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) प्रोजेक्ट को लेकर विरोध-प्रदर्शन होने लगा है।
वन बेल्ट वन रोड (OBOR) के खिलाफ गिलगित, हुंजा, स्कर्दु और घिजेर में सैकड़ों छात्र और राजनीतिक संगठन विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। संगठनों में कराकोरम स्टुडेंट्स ऑर्गनाइजेशन, बलवारिस्तान नेशनल स्टुडेंट्स ऑर्गनाइजेशन, गिलिगित बाल्टिस्तान यूनाइटेड मूवमेंट और बलवारिस्तान नेशनल फ्रंट शामिल हैं। उन्होंने इस प्रोजेक्ट को गिलगित को कब्जे में लेने की एक अवैध कोशिश करार दिया। वे इसे गिलगित-बाल्टिस्तान के लिए 'रोड ऑफ गुलामी' के तौर पर देखते हैं।
पूरे गिलगित भर के प्रदर्शनकारी 'वन बेल्ट वन रोड' और चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर को चीन की एक चाल मान रहे हैं, ताकि वह उस क्षेत्र को अपने कब्जे में ले सके। लोगों ने 'चीनी साम्राज्यवाद रोको' के बैनर के साथ नारे लगाए और विश्व समुदाय से इस मामले में दखल देने का आह्वान भी किया। प्रदर्शनकारियों के मुताबिक CPEC गिलगित-बाल्टिस्तान की 'गुलामी की सड़क' है।
प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि पाकिस्तान की मदद से चीन ने अवैध रूप से गिलगित-बाल्टिस्तान में प्रवेश किया है। कहा जा रहा है कि इसका मकसद चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के माध्यम से चीनी सेना की पाकिस्तान में उपस्थिति बनाए रखना और अमेरिका एवं भारत को जवाब देना है।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति शी चिनफिंग के ड्रीम प्रोजेक्ट वन बेल्ट वन रोड पर चीन दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रहा है। इस प्रोजेक्ट के तहत चीन सड़क, रेल, जल और वायु मार्ग से यूरोप और अफ्रीका से संपर्क बढ़ाएगा। इससे वह दुनिया के सुदूर हिस्सों को अपनी व्यापारिक गतिविधियां से जोड़ेगा, कच्चा और तैयार माल भेजेगा व मंगवाएगा।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि गिलगित 1948-49 से ही विवादित क्षेत्र रहा है और चीन यहां पाकिस्तान की मदद से अवैध तौर पर घुस गया है। गिलगित बाल्टिस्तान थिंकर्स फोरम के संस्थापक वजाहत खान के मुताबिक चीन गिलगित-बाल्टिस्तान में अपने मिलिटरी बेस स्थापित कर रहा है। चीन और पाकिस्तान दोनों ने CPEC के उद्देश्य को हासिल करने के लिए क्षेत्र के लोगों का दमन किया है और उनकी वाजिब चिंताओं का ध्यान नहीं रखा है। तमाम राजनीतिक और मानवाधिकार संगठन गिलगित-बाल्टिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिंताएं जाहिर कर चुके हैं। (एजेंसी)