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(संकष्टी चतुर्थी)
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  • व्रत/मुहूर्त- श्री संकष्टी चतुर्थी व्रत
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
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जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ

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अनिरुद्ध जोशी

, मंगलवार, 19 मई 2020 (10:52 IST)
जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ का जन्म ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भरणी नक्षत्र में इक्क्षवाकु कुल में कुरूजांगल प्रदेश के हस्तीनापुर नगर में हुआ था। शांतिनाथ अवतारी थे। उनके जन्म से ही चारों ओर शांति का राज कायम हो गया था। वे शांति, अहिंसा, करूणा और अनुशासन के शिक्षक थे।
 
शांतिनाथ के पिता हस्तीनापुर के राजा विश्वसेन थे और माता का नाम अचीरा (ऐरा) था। उनके भाई का नाम चक्रायुध था। उनके पुत्र का नाम नारायण था।
 
शांतिनाथ पांचवें चक्रवर्ती राजा और बारहवें कामदेव थे। जातिस्मरण से और दपर्ण में अपने मुख के दो प्रतिबिम्ब देखकर उन्हें वैराग्य भाव उत्पन्न हुआ था। वैराग्य के बाद उन्होंने ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी को आम्रवन में दीक्षा ग्रहण की। पौष शुक्ला दशमी को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्होंने ज्येष्ठ कृष्णा चौदस को श्री सम्मेद शिखर जी से मोक्ष प्राप्त किया था।
 
शांतिनाथजी के पूर्वजन्म की कथा : शांतिनाथ के संबंध में मान्यता है कि अपने पूर्व जन्म के कर्मों के कारण वे तीर्थंकर हो गए। पूर्व जन्म में शांतिनाथजी एक राजा थे। उनका नाम मेघरथ था। मेघरथ के बारे में प्रसिद्धि थी कि वे बड़े ही दयालु और कृपालु हैं तथा अपनी प्रजा की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहते हैं।
 
एक वक्त उनके समक्ष एक कबूतर आकर उनके चरणों में गिर पड़ा और मनुष्य की आवाज में कहने लगा राजन मैं आपकी शरण में हूं, मुझे बचा लीजिए। तभी पीछे से एक बाज आकर वहां बैठ जाता है और वह भी मनुष्य की आवाज में कहने लगता है कि हे राजन, आप इस कबूतर को छोड़ दीजिए, ये मेरा भोजन है।
 
राजा ने कहा कि यह मेरी शरण में है। मैं इसकी रक्षा के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं। तुम इसे छोड़कर कहीं और जाओ। जीव हत्या पाप है तुम क्यों जीवों को खाते हो?
 
बाज कहने लगता है कि राजन मैं एक मांसभक्षी हूं। यदि मैंने इसे नहीं खाया तो मैं भूख से मर जाऊंगा। तब मेरे मरने का जिम्मेदार कौन होगा और किसको इसका पाप लगेगा? कृपया आप मेरी रक्षा करें। मैं भी आपकी शरण में हूं।
 
धर्मसंकट की इस घड़ी में राजन कहते हैं कि तुम इस कबूतर के वजन इतना मांस मेरे शरीर से ले लो, लेकिन इसे छोड़ दो। तब बाज उनके इस प्रस्ताव को मान कर कहता है कि ठीक है राजन तराजू में एक तरफ इस कबूतर को रख दीजिए और दूसरी और आप जो भी मांस देना चाहे वह रख दीजिए।
 
तब तराजू में राजा मेघरथ अपनी जांघ का एक टुकड़ा रख देते हैं, लेकिन इससे भी कबूतर जितना वजन नहीं होता तो वे दूसरी जांघ का एक टुकड़ा रख देते हैं। फिर भी कबूतर जितना वजन नहीं हो पाता है तब वे दोनों बाजूओं का मांस काटकर रख देते हैं फिर भी जब कबूतर जितना वजन नहीं हो पाता है तब वे बाज से कहते हैं कि मैं स्वयं को ही इस तराजू में रखता हूं, लेकिन तुम इस कबूतर को छोड़ दो।
 
राजन के इस आहार दान के अद्भूत प्रसंग को देखकर बाज और कबूतर प्रसन्न होकर देव रूप में प्रकट होकर श्रद्धा से झुककर कहते हैं, राजन तुम देवतातुल्य हो। देवताओं की सभा में तुम्हारा गुणगान किया जा रहा है। हमने आपकी परीक्षा ली हमें क्षमा करें। हमारी ऐसी कामना है कि आप अगले जन्म में तीर्थंकर हों।
 
तब दोनों देवताओं ने राजा मेघरथ के शरीर के सारे घाव भर दिए और अंतर्ध्यान हो गए। राजा मेघरथ इस घटना के बाद राजपाट छोड़कर तपस्या के लिए जंगल चले गए।


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