चंदा चुपके
छुपके बैठा
छज्जे पे
उसको ढूंढ रहे हैं
चंदा चुपके
छुपके बैठा
हरे खेत में
उसको ढूंढ रहे हैं
तारे बालू रेत में
चंदा चुपके
छुपके बैठा
गाड़ी में
उसको ढूंढ रहे हैं तारे
उधर पहाड़ी में
चंदा चुपके
छुपके बैठा
घास में
उसको ढूंढ रहे हैं तारे
नदी बनास में।
(यह कविता हमें 'प्रभात' ने भेजी है जयपुर से।)