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बाल कविता : करुणा दया प्रेम का भारत ‌

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

भारत मां का शीश हिमालय‌ 
चरण हैं हिन्द महासागर, 
मातुश्री के हृदय देश में 
बहती गंगा हर-हर-हर। 
  

 

 
अगल-बगल माता के दोनों 
लहराते हैं रत्नाकर, 
पूरब में बंगाल की खाड़ी 
पश्चिम रहे अरब सागर। 
  
मध्यदेश में ऊंचे-ऊंचे 
विंध्य, सतपुड़ा खड़े हुए, 
सोन, बेतवा, चंबल के हैं 
यहीं कहीं चरणों के घर। 
  
छल-छल छलके यहां नर्मदा 
यमुना-केन चहकती हैं, 
दक्षिण में गोदावरी, कृष्णा 
पार उतारें भवसागर। 
  
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई 
रहते हैं सब मिल-जुलकर, 
यहां चाहते देवता रहना 
स्वर्ग लोक से आ-आकर। 
  
कहीं भेद न भाव धर्म का 
न ही जाति का बंधन, 
करुणा, दया, प्रेम का भारत‌ 
पावन, निर्मल, मन निर्झर। 

 

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