पूर्व दिशा से उड़ती आई,
कलियों पर मंडराती है।
इन फूलों पर बैठ-बैठकर,
अपनी कला दिखाती है।
पीले-काले-लाल-बैंगनी,
पंख सुनहरे सजते हैं।
देखकर इनके रूप-रंग को,
हम बच्चे भी हंसते हैं।
अपनी झलक दिखाने हेतु,
दूर देश से आती है।
इन फूलों पर बैठ-बैठकर,
अपनी कला दिखाती है।
गगन-मगन में उड़ती रहती,
शोभा बड़ी निराली है।
प्रकृति सौंदर्य सहेजे संग में,
तितली रानी प्यारी है।
बच्चे इनको पास बुलाते,
आने में सकुचाती है।