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बाल कविता : गौरेया के हक में

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राकेशधर द्विवेदी

गांव के चौपाल में चहकती गौरेया
मीठे-मीठे गीत सुनाती गौरेया
गुड़िया को धीरे से रिझाती गौरेया
याद आज आती है
 

 
हरे-भरे पेड़ों पर फुदकती गौरेया
घर के मुंडेर पर थिरकती गौरेया
स्मृति में बस जाती है
 
घर के चौखट पर नन्ही-सी गुड़िया
पास में फुदकती प्यारी-सी चिड़िया
लुका-छिपी का यह खेल क्रम-दर-क्रम बढ़ना
यादों के झरोखे से एक मधुर संगीत सुनाती है
 
धीरे-धीरे यादें अब अवशेष रह गईं
लुका-छिपी का खेल स्मृति-शेष रह गया
ना रहा गांव, न रहा मुंडेर
गौरेया कहानी के बीच रह गई
 
गुड़िया अब बड़ी होकर सयानी हुई
उसके एक मुनिया रानी हुई
जिसे उसने गौरेया की कहानी सुनाई
मुनिया मुस्कराई फिर चिल्लाई 
मां गौरेया तो दिखाओ
कहानी की वास्तविकता तो समझाओ
 
मुनिया के प्रश्नों पर गुड़िया झुंझलाई
दिल का दर्द आंखों में छलक आया
मुनिया को मोबाइल टावर दिखाया
फिर उसको धीरे से समझाया
 
इसमें बैठा है एक भयानक दरिंदा
जिसने छीना हमसे एक प्यारा परिंदा
गौरेया का दुश्मन हमने बनाया
उसे छाती-पेट से लगाया
 
उसने छीना है हमारी प्यारी गौरेया
रह गई स्मृतियों में न्यारी गौरेया
गौरेया को यदि बचाना है
तो दरिंदे को मिटाना है
नहीं तो कहानियों में रह जाएगी गौरेया
मुनिया के प्रश्नों का उत्तर ना दे पाएगी दुनिया
 
 

लेखक का पता 
5/58, विनीत खंड, गोमती नगर, लखनऊ (उप्र)
मो. 94798-87966
 
लेखक परिचय : संप्रति कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के क्षेत्रीय कार्यालय, इंदौर में लेखाधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। त्रिवेदी ने 40 से ज्यादा कविताएं लिखीं, जो स्पू‍तनिक इंदौर, सच्ची-मुच्ची व अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। संप्रति रसायन शास्त्र में लखनऊ, विश्वविद्यालय से परास्नातक हैं। 



 
 

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