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चटपटी कविता : जीवन का खेल

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शम्भू नाथ

चल रही है अपनी गाड़ी, 
उलटे-सीधे रेलमपेल। 


 
बैठे काम कहां चलेगा,
यही बड़ा जीवन का खेल।।
 
मुंह लटकाए बीवी बैठी,
बच्चे मांगे रसगुल्ला। 
बचपन हमको याद है भइया, 
जब मारा दूध का कुल्ला।
 
अब समझ में आ रहा है,
कैसे निकलता तिल से तेल। 
चल रही है अपनी गाड़ी,
उलटे-सीधे रेलमपेल।।
 
बैठे काम कहां चलेगा,
यही बड़ा जीवन का खेल।
 
भागमभाग में रहती है,
रात में सुनता ताने।
पत्नी कहती तुमसे अच्छे, 
बगल वाले फलाने।।
 
लालच में कहीं कर जाए,
उस बंदे से पत्नी मेल।
चल रही है अपनी गाड़ी, 
उलटे सीधे रेलम पेल।। 
 
बैठे काम कहां चलेगा,
यही बड़ा जीवन का खेल। 

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