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बाल कविता : टेढ़ा आंगन...
मार-मारकर लगा नचाने
पर भालू न नाचा,
उसके गाल तमाचा।
भालू बोला नाच नहीं है
होता लड्डू-पेड़ा,
नहीं देखते यह आंगन है
कितना टेढ़ा-मेढ़ा।
हंसा मदारी, बोला बच्चू
क्यों यह व्यर्थ बखेड़ा,
नाच जिन्हें न आता वे ही,
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