एक कुएं में बहुत से मेंढक रहते थे। उनके राजा का नाम था गंगदत्त। गंगदत्त बहुत झगड़ालू स्वभाव का था। आसपास दो-तीन और भी कुएं थे। उनमें भी मेंढक रहते थे। हर कुएं के मेंढकों का अपना राजा था।
हर राजा से किसी न किसी बात पर गंगदत्त का झगड़ा चलता ही रहता था। वह अपनी मूर्खता से कोई गलत काम करने लगता और बुद्धिमान मेंढक रोकने की कोशिश करता तो मौका मिलते ही अपने पाले गुंडे मेंढकों से पिटवा देता। कुएं के मेंढकों के भीतर गंगदत्त के प्रति रोष बढ़ता जा रहा था। घर में भी झगड़ों से चैन न था। अपनी हर मुसीबत के लिए दोष देता।
एक दिन गंगदत्त पड़ोसी मेंढक राजा से खूब झगड़ा। खूब तू-तू, मैं-मैं हुई। गंगदत्त ने अपने कुएं में आकर बताया कि पड़ोसी राजा ने उसका अपमान किया है। अपमान का बदला लेने के लिए उसने अपने मेंढकों को आदेश दिया कि पड़ोसी कुएं पर हमला करें सब जानते थे कि झगड़ा गंगदत्त ने ही शुरू किया होगा।