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बाल साहित्य : चटपटे समोसे की अटपटी कहानी

- शिखा पलटा

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दोस्तो, मेरा नाम समोसा है और यह मेरी कहानी है। मुझे बग्गू की मम्मी ने बड़े प्यार से अपने हाथों से बग्गू के जन्मदिन पर बनाया। मुझे बनाने के लिए सबसे पहले मेरे दोस्त आलू को उबाला गया। फिर उसमें मटर, काजू, हरा धनिया, नमक डालकर मेरा मसाला तैयार किया गया।

मैदे का आटा गूंधकर उसमें मसाला और अपना ढेर सारा प्यार मिलाकर बग्गू की मम्मी ने मुझे तला। मेरे ऐसे कई समोसे दोस्तों को उन्होंने बनाया, लेकिन उन्हें तो बग्गू के सारे दोस्त खा गए। मैं पहुंचा बग्गू की एक फ्रेंड गिन्नी के पास। उसने बग्गू की मम्मी से कहा कि 'आंटी मुझे जल्दी घर जाना हैं, मैं घर जाकर खा लूंगी।'

घर पहुंच कर गिन्नी मुझे उस कार में ही भूल ही गई और मैं ड्राइवर भइया के साथ कार मैं ही रह गया। ड्राइवर भइया ने रास्ते मैं मुझे सीट पर रखा हुआ देखा। उसी समय लाल सिग्नल पर कार के बाहर एक आंटी ड्राइवर भइया से कुछ खाने को मांग रही थी।

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ड्राइवर भइया ने मुझे देखा और मुझे उठाकार उन आंटी को दे दिया। वह आंटी मुझे लेकर बहुत खुश थी, तो आखिर में ये आंटी मुझे खाएंगी। अ र रे नहीं, अभी ये आंटी तो मुझे अपने साड़ी के पल्लू मैं बंद कर कहीं और ले चली थी आखिर कौन खाएगा मुझे? मैं सोच मैं था।

घर पहुंचा तो देखा बग्गू जैसा बच्चा अपनी मां का इंतजार कर रहा था। उसकी मां ने अपनी साड़ी के पल्लू से मुझे निकाला और उस बच्चे के हाथ में दे दिया। मुझे देते हुए वह बोली- 'गुड्डू बेटा, जन्मदिन मुबारक हो।'

खुशी से गुड्डू अपनी मां के गले लग गया और गुड्डू ने मुझे खुशी-खुशी खा लिया। सच बोलूं दोस्तो, मुझे बहुत दुख हुआ था, जब गिन्नी मुझे कार मैं छोड़कर चली गई थी। लेकिन प्यारे से हाथों से बने मुझको किसी प्यार से खाने वाले की तलाश थी। दोस्तो, सही कहा गया है- 'दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम'।

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