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पृथ्वी पर मंगल ग्रह की यात्रा...

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राम यादव

बॉन, जर्मनी , सोमवार, 7 नवंबर 2011 (11:32 IST)
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एक अनोखी यात्रा जो 3 जून 2010 को मॉस्को में शुरू हुई थी। ठीक 520 दिन बाद मॉस्को में ही समाप्त भी हुई। चार देशों के छह मंगल-यात्री मंगल ग्रह पर तो कभी नहीं पहुँचे, पर 17 महीनों तक उन्हें वह सब झेलना पड़ा, जो मंगल ग्रह की किसी सच्ची यात्रा के समय उन्हें सचमुच झेलना पड़ता।

किसी भावी मंगल-यात्रा का पृथ्वी पर यह एक रेकॉर्ड-तोड़ अनुकरण (सिम्युलेशन) अभियान था। पाँच मॉड्यूलों वाले एक बनावटी 'अंतरिक्षयान' में रूस के दो और इटली, फ्रांस तथा चीन का एक-एक 'मंगल ग्रह यात्री' 520 दिनों तक स्वेच्छा से बंद रहा। न धूप। न ताज़ी हवा। न ताजा़ पानी। बाहरी दीन-दुनिया से अलग- थलग। देश-दुनिया से बेख़बर। ऐसे में स्वाभाविक ही था कि इस एकांतवास से छुटकारा पाने की खुशी में हर चेहरे पर उस समय मुस्कान बिखर गयी, जब शुक्रवार 4 नवंबर को, मॉस्को के समय के अनुसार, दिन में ठीक दो बजे (भारत में दिन के साढ़े चार बजे) उनके कथित अंतरिक्षयान का दरवाज़ा खुला।

खुली हवा में पहली साँसः खुली हवा में पहली साँस लेने के तुरंत बाद सबसे पहले वे डॉक्टरों, अपने परिजनों और घनिष्ठ मित्रों से मिले। टीम के इतालवी सदस्य दीयेगो उर्बीना ने कहा, ''आप सब को फिर से देख कर बहुत अच्छा लग रहा है। 'मार्स500' मिशन के द्वारा हमने धरती पर अंतरिक्ष की अब तक की सबसे लंबी यात्रा पूरी की है, तकि मनुष्यजाति बहुत दूर के, फिर भी हमारी पहुँच के भीतर के एक ग्रह पर एक नये सवेरे का स्वागत कर सके। ...मैं उन सब का सदा आभारी रहूँगा, जो दूर से ही सही, इस कष्टदायक अंतरिक्षयात्रा में हमेशा मेरे पास रहे।''

उर्बीना ने कुछ दिन पहले अपनी डायरी में लिखा था, ''कभी-कभी तनावपूर्ण, नीरस दिन हमें अपने जीवन के सबसे एकाकीपूर्ण दिन लगे।'' मंगल ग्रह पर जाने की तैयारी के इससे पहले के ऐसे ही प्रयोगों में, जो इतने लंबे नहीं थे, उन में भाग लेने वाले मानसिक तनाव और एकाकीपन के कारण कभी-कभी अपना आपा इस तरह खो बैठे कि एक-दूसरे से मारपीट भी कर बैठे।

बड़ा सवाल
क्या वैश्विक तापमानवृद्धि पर सबसे पहले विजय पाना, चंद्रमा या मंगल ग्रह पर विजय पाने की अपेक्षा, हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं होनी चाहिये?
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मँहगा अभियान : इटली के दीयेगो उर्बीना और फ्रांस के रोमौं चार्ल्स इस अनुकरण अभियान के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष अधिकरण ESA द्वारा चुने गये थे। दोनो रूसी सदस्यों का चुनाव रूसी अंतरिक्ष अधिकरण रोसकोस्मोस ने किया था। ESA और रोसकोस्मोस के करोड़डॉलर मँहगे इस साझे अभियान के साथ, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, 40 देशों के क़रीब 6 हज़ार लोग जुड़े हुए थे। बर्लिन के सबसे बड़े अस्पताल 'शारिते' सहित चिकित्सा विज्ञान के चार जर्मन संस्थानों और जर्मन अंतरिक्ष अधिकरण DLR की छह विशेषज्ञ टीमों का भी उसकी सफलता में योगदान रहा है, जो अभी समाप्त नहीं हुआ है।

धरती पर रहते हुए मंगल ग्रह की यात्रा से लौटे सभी छह यात्रियों का काम भी अभी पूरा नहीं हुआ है। अगले दिनों में उनकी सघन डॉक्टरी और मनोवैज्ञानिक जाँचें होंगी। दिसंबर में उनके अनुभवों और अनुभूतियों की लंबी पूछतांछ होगी। उन्हें कई परीक्षणों और प्रयोगों से गुज़रना होगा। उद्देश्य होगा, ऐसी सभी चीज़ें मालूम करना, जो किसी भावी, सच्ची मंगल ग्रह यात्रा के समय प्रासंगिक हो सकती हैं।

मंगल ग्रह यात्रा की हूबहू नकलः 'मार्स 500' मंगल ग्रह पर मनुष्य को भेजने के किसी भावी अभियान वाली परिस्थितियों और चुनौतियों की हूबहू नकल का अब तक का सबसे लंबा और पूर्णकालिक प्रयास था। मंगल ग्रह पृथ्वी से इतना दूर है कि वहाँ पहुँचने और वहाँ से लौटने के लिए कोई उड़ान सिर्फ़ तभी हो सकती है, जब सूर्य की परिक्रमा करते हुए मंगल ग्रह और पृथ्वी एक-दूसरे के आमने-सामने व एक-दूसरे के सबसे निकट हों। इस कारण वहाँ पहुँचने, दोनो ग्रहों के दुबारा निकटतम आने तक वहाँ ठहरने और तब वहाँ से पृथ्वी पर लौटने में ठीक 520 दिन लगेंगे।

इसी को ध्यान में रखते हुए 'मार्स 500' अभियान कुल 520 दिन चला। एक सच्ची यात्रा में 3 जून 2010 को चला मंगलयान, 240 दिन बाद, एक फ़रवरी 2011 को वहाँ पहुँचता। ठीक इसी दिन इटली के दीयेगो उर्बीना और रूस के अलेक्सांदर स्मोल्येव्स्की विशेष अंतरिक्ष सूट पहन कर उस मॉड्यूल में गये, जो मंगल ग्रह की नकल था। पहली बार उन्हें 'मंगल ग्रह की खुली ज़मीन पर' केवल एक घंटा 12 मिनट बिताना था। 'मंगल ग्रह के खुले आकाश के नीचे' उन्हें कुल तीन बार विचरण करना था।

महीने भर बाद वापसीः वहाँ एक महीना बिताने के बाद 2 मार्च 2011 को पृथ्वी की दिशा में वापसी शुरू हुई। वापसी के दौरान 18अप्रैल को ऐसा नाटक रचा गया, मानो यान का पृथ्वी पर के उड़ान नियंत्रण केंद्र के साथ संपर्क अचानक टूट गया है। अब 'मार्स 500' के मंगल ग्रह यात्रियों को सारे निर्णय अपने विवेक से खुद करने थे। वास्तव में भले ही वे पृथ्वी पर ही थे, पर इस प्रयोग के दौरान नियंत्रण केंद्र के साथ उनका संपर्क जान-बूझकर भंग कर दिया गया था। उन्हें सचमुच पता नहीं था कि यह सब एक अभ्यास है। 1999 में ऐसे ही एक प्रयोग के समय उस समय की यात्री टीम के दो सदस्यों के बीच हाथापाई हो गयी थी। इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। संपर्क एक सप्ताह तक टूटा रहा। लेकिन, गुप्त वीडियो कैमरों द्वारा नज़र रखी जाती रही। कोई अप्रिय घटना नहीं हुयी।

उड़ान का रेकॉर्ड टूटाः 14 अगस्त 2011 को, अंतरिक्ष में मनुष्य की सबसे लंबी उड़ान का सच्चा रेकॉर्ड ( 1994-95 में 437 दिन 17 घंटे और 59 मिनट) 'मार्स 500' की झूठी उड़ान से टूट गया। दूसरी ओर, उसके यात्रियों के लिए अगस्त का महीना ही सबसे नीरस और उबाऊ रहा। 22 अक्टूबर को वे उड़ान नियंत्रण केंद्र से यह सुन कर सन्न रह गये कि 4 नवंबर को 'पृथ्वी पर उतरने के बाद' उन्हें कई दिनों तक सबसे अलग-थलग रखा जायेगा, क्योंकि उनकी रोगप्रतिरक्षण प्रणाली इतनी कमज़ोर हो गयी है कि उनका शरीर किसी भी बीमारी का सामना नहीं कर सकता। कहने की आवश्यकता नहीं कि मानसिक शक्ति को आजमाने के यह सब ऐसे प्रयोग थे, जिनका 'मार्स 500' के सदस्यों को पता नहीं था, पर जो किसी वास्तविक मंगल ग्रह यात्रा की दृष्टि से उपयोगी हो सकते हैं।
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आयोजकों ने अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश की कि अभियान में भाग लेने वालों को मंगल ग्रह की यात्रा से जुड़ी सभी संभावित परिस्थितियों और चुनौतियों का सामना करना पड़े। इस समय पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ISS के अंतरिक्ष यात्रियों की ही तरह 'मार्स 500' के हर प्रतिभागी के सोने-जागने और काम करने का एक दैनिक कार्यक्रम तय कर दिया गया था। पूरी कठोरता से उसका पालन करना पड़ता था। डॉक्टर और मनोविशेषज्ञ विडियो कैमरों व अन्य तरीकों से बराबर उन पर नज़र रखते थे।

स्वादिष्ट चीज़ें पहले ख़त्मः उनके खाद्यपदार्थों की मात्रा हालांकि पहले से तय थी, पर अपनी पसंद की चीज़ खाने की छूट होने के कारण स्वादिष्ट चीज़ें पहले ही खत्म हो गयीं। बाद में उन्हें मन मार कर महीनों वे चीज़ें खानी पड़ीं, जो उन्हें पसंद नहीं थीं। पृथ्वी से मंगल ग्रह तक की दूरी के कारण रेडियो संकेतों को लगने वाले समय के अनुपात में उड़न नियंत्रण केंद्र के साथ बातचीत में 12 मिनट तक की देर और 351 कथित 'तकनीकी गड़बड़ियाँ' भी उन्हें तंग करने की साजिश नहीं, उनके धैर्य और विवेक की परीक्षा का सुनियोजित कार्यक्रम था।

दो मुख्य आपत्तियाँ : तब भी, आलोचकों का कहना है कि चार देशों के छह सहभागियों की एक टीम ने 'मार्स 500' के बंद मॉड्यूलों में, दुनिया से अलग-थलग, 520 दिन सफलतापूर्वक बिता ज़रूर लिये, पर इससे यह नहीं सिद्ध होता कि मंगल ग्रह तक की सच्ची यात्रा भी इसी तरह सफल रहेगी। उनकी दो मुख्य आपत्तियाँ हैं, जो सचमुच निर्णायक महत्व रखती हैं।

एक तो यह, कि सभी सहभागी जानते थे कि वे मंगल ग्रह पर नहीं, पृथ्वी पर ही हैं। किसी भी समय इस प्रयोग को छोड़ कर बाहर निकल सकते हैं। कोई सच्चा संकट होने पर उन्हें तुरंत बचा लिया जायेगा। दूसरी आपत्ति यह है कि सारा समय पृथ्वी पर ही रहने के कारण न तो उन्हें भारहीनता का सामना करना पड़ा और न ब्रह्मांडीय किरणों वाले उस ख़तरनाक विकिरण का, जिसकी मंगल ग्रह पर सतत बौछार होती रहती है।

यह सही है कि 'मार्स 500' के छह सहभागियों द्वारा दुनिया से अलग-थलग 520 दिन बिताने और सौ से अधिक प्रयोग आदि करने भर से मंगल ग्रह की डेढ़ साल लंबी किसी सच्ची यात्रा से जुड़े सारे प्रश्नों के उत्तर नही मिल सकते। पर यह भी सही है कि जिन प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हैं, मंगल ग्रह की भावी यात्रा को संभव बनाने के लिए उन्हें भी कभी न कभी तो ढूढना ही पड़ता।

इतनी ललक क्यों? इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि नितांत निर्जीव और प्राणघातक परिस्थितियों वाले चंद्रमा या मंगल पर जाने और वहाँ बस्तियाँ बसाने के लिए हम इतने लालायित क्यों है? ब्रह्मांड के बारे में अब तक की जानकारियों के अनुसार, स्वर्ग-समान इस पृथ्वी पर-- जहाँ सारे प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के बावजूद पूरे सौरमंडल ही नहीं, दूर-दूर तक के अंतरिक्ष की सर्वोत्तम जीवन-परिस्थितियाँ मौजूद है-- क्या हमारे लिए अब और कुछ करने को नहीं रहा? क्या वैश्विक तापमानवृद्धि पर सबसे पहले विजय पाना, चंद्रमा या मंगल ग्रह पर विजय पाने की अपेक्षा, हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं होनी चाहिये?

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