Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

कानपुर में 'जीरो बजट' खेती

हींग लगे न फिटकरी रंग भी आये चोखा

हमें फॉलो करें कानपुर में 'जीरो बजट' खेती
कानपुर , शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010 (19:58 IST)
ND
जीरो बजट खेती यानी ‘हींग लगे न फिटकरी रंग भी आए चोखा’। ऐसी खेती जिसमें सब कुछ प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है। कानपुर और उसके आसपास के करीब 100 एकड़ क्षेत्र में इस तरह की खेती जोर पकड़ने लगी है। किसानों में इसे काफी पसंद किया जा रहा है।

इस तरह की खेती में कीटनाशक, रासायनिक खाद और हाईब्रिड बीज किसी भी आधुनिक उपाय का इस्तेमाल नहीं होता है। यह खेती पूरी तरह प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है। इस तकनीक में किसान भरपूर फसल उगाकर लाभ कमा रहे हैं, इसीलिए इसे जीरो बजट खेती का नाम दिया गया है।

कानपुर और उसके आसपास के करीब 100 एकड़ क्षेत्र में यह खेती की जा रही है। इस जीरो बजट खेती के जनक महाराष्ट्र के सुभाष पालेकर है जिनसे कानपुर के कुछ किसानों ने इस खेती के गुण सीखें और अब इसे यहां अपना रहे है।

जिलाधिकारी मुकेश मेश्राम कानपुर के कुछ किसानों के इस जीरो बजट खेती के प्रयासों से इतने प्रसन्न हैं कि उन्होंने कानपुर मंडल के करीब 1500 किसानों को इस नई तकनीक के बारे में जानकारी देने के लिए आगामी 21 से 24 अक्टूबर तक एक शिविर का आयोजन किया है। सम्मेलन में इस खेती के जनक महाराष्ट्र के सुभाष पालेकर को बुलाया गया है ताकि वह अपने अनुभव बाकी के किसानों के साथ बांट सकें। चार दिन के प्रशिक्षण शिविर में आने वाले सभी किसानों के खाने-पीने तथा रहने का पूरा प्रबंध प्रशासन करेगा।

कानपुर और उन्नाव जिलों में कई एकड़ क्षेत्र में जीरो बजट खेती करने वाले एक किसान विवेक चतुर्वेदी ने बताया कि हम इस खेती में न तो रासायनिक खाद और न ही बाजार में बिकने वाले कीटनाशकों या फिर हाईब्रिड बीजों का इस्तेमाल करते हैं।

उन्होंने बताया रासायनिक खाद के स्थान पर वह खुद की तैयार की हुई देशी खाद बनाते हैं जिसका नाम ‘घन जीवा अमृत’ रखा है। यह खाद गाय के गोबर, गौमूत्र, चने के बेसन, गुड़, मिटटी तथा पानी से बनती है।

उन्होंने कहा वह रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर नीम, गोबर और गौमूत्र से बना ‘नीमास्त्र’ इस्तेमाल करते हैं। इससे फसल को कीड़ा नहीं लगता है। संकर प्रजाति के बीजों के स्थान पर देशी बीज डालते हैं।

चतुर्वेदी कहते हैं कि देशी बीज चूँकि हमारे खेतों की पुरानी फसल के ही होते हैं इसलिए हमें उसके लिए पैसे नहीं खर्च करने पड़ते हैं जबकि हाईब्रिड बीज हमें बाजार से खरीदने पड़ते हैं जो काफी महँगे होते हैं।

जीरो बजट खेती में खेतों की सिंचाई, मड़ाई और जुताई का सारा काम बैलो की मदद से किया जाता है। इसमें किसी भी प्रकार के डीजल या ईधन से चलने वाले संसाधनों का प्रयोग नहीं होता है जिससे काफी बचत होती है।

जिलाधिकारी मेश्राम ने बताया कि जब प्रशासन को इस 'जीरो बजट खेती' के बारे में पता चला तो कानपुर के कुछ किसानों को इसका प्रशिक्षण लेने के लिए महाराष्ट्र में सुभाष पालेकर के पास भेजा गया। परिणाम उत्साह जनक रहे। किसानों ने करके दिखाया कि कैसे बहुत कम खर्च यानी जीरो बजट में अपने ही खेतों से अधिक फसल उगाई जा सकती है।

उन्होंने बताया कि जब से इस खेती के बारे में प्रचार-प्रसार हुआ है तब से दूसरे प्रदेशों के किसान भी इसमें शामिल होने की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं और वह भी इस खेती के बारे में प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहते हैं जिसमें छत्तीसगढ़, बिहार, मध्यप्रदेश के किसान प्रमुख है।

जिलाधिकारी ने बताया कि अगले महीने बांदा जिले में अखिल भारतीय प्रशिक्षण शिविर लगाने की योजना है जिसमें पूरे देश के किसान शामिल होंगे और विदेशों से आने वाले किसानों को भी इसमें आने की अनुमति दी जाएँगी। वह कहते हैं कि जीरो बजट खेती अभी तो एक शुरुआत है धीरे-धीरे यह पूरे देश में एक क्रांति के रूप में फैल जाएँगी। (भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi