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आईसीसी को 'हॉट स्पॉट' से इतना लगाव क्यों?

हमें फॉलो करें आईसीसी को 'हॉट स्पॉट' से इतना लगाव क्यों?
लंदन , बुधवार, 7 सितम्बर 2011 (23:13 IST)
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यूडीआरएस (अंपायर्डिसीजरिव्यसिस्टम) अंतर्गअपनारहतकनीक 'हॉस्पॉट' भारतीक्रिकेटरोलिमुसीबयहकारि भारतीय ‍बल्लेबाअंपायगलफैसलोशिकाहुहैं।‍

'हॉट स्पॉट' कतहतीसरअंपायर रिप्ले में बार-बार यह देखता है कि गेंद और बल्ले का संपर्क हुआ या नहीं। निर्णय के लिए इस अंपायर की निगाहें ठीक उसी तरह का काम करती है, जिस प्रकार डॉक्टर एक्सरे में टूटी हड्‍डी को देखता है। तीसरा अंपायर भी चंद सेकंडों तक ठीक उसी तर्ज पर कैमरे से स्क्रीन पर आई काली छवि और सफेद गेंद के संपर्क की 'चीरफाड़' करने में लग जाता है।

'हॉट स्पॉट' तकनीक का इस्तेमाल किए जाने के बाद देखने में यह आया है कि आईसीसी क्रिकेट के रोमांच का सत्यानाश करने पर तुली हुई है। आईसीसी की तकनीकी टीम में न जाने कौन-कौन से सूरमा बैठ गए हैं, जो समय-समय पर अपने दिमाग का कुछ ज्यादा ही इस्तेमाल करने की सीख दे डालते हैं।

हॉट स्पॉट इन्हीं के दिमाग की उपज है, जो दुनियाभर में आलोचना का शिकार हो रही है। यूं देखा जाए तो 'हॉट स्पॉट' तकनीक में निर्णय लगभग शत-प्रतिशत सही रहते हैं लेकिन इंग्लैंड दौरे में अंपायरों के फैसलों से यह भी गलत साबित हो रहे हैं।

यही नहीं, टीवी पर बार-बार रिप्ले आने से हॉट स्पॉट की इस तकनीक को ड्रेसिंग रूम से लेकर पूरी दुनिया देखती है और जब थर्ड अंपायर का गलत फैसला आता है तो मन मसोसकर रह जाना पड़ता है। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान उस खिलाड़ी का होता है जो बेदाग होकर भी दागदार बनकर पैवेलियन लौटता है।

इंग्लैंड के खिलाफ 'काल' बन गए राहुल द्रविड़ को तीन मर्तबा टेस्ट मैच में गलत आउट दिया गया। चेस्टर ली स्ट्रीट में खेले गए पहले वनडे में भी उन्हें इसी तरह गलत आउट देकर टांग दिया गया और इसमें भी तीसरे अंपायर ने 'हॉट स्पॉट' का सहारा लिया था।

इन तमाम फैसलों के बाद भारतीय टीम के कप्तान महेन्द्रसिंह धोनी का गुस्सा होना वाजिब है कि मैदान पर लगे 40 कैमरे क्या भाड़ झोंक रहे हैं, जिन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है।

'हॉट स्पॉट' ने दूसरे वनडे मैच (साउथेम्पटन) में भी पार्थिव पटेल को पैवेलियन का रास्ता दिखा दिया। पार्थिव इतने उत्तेजित थे कि चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे कि एंडरसन की गेंद ने उनके बल्ले के ऊपरी हिस्से को छुआ तक नहीं।

टीवी रिप्ले में भी 'हॉट स्पॉट' से पता चल रहा था कि पार्थिव नॉटऑउट थे। यह स्थिति तब थी, जब वे 28 रन के निजी स्कोर पर इंग्लिश गेंदबाजों की धुनाई कर रहे थे और टीम का स्कोर 30 था।

आईसीसी के लिए अब समय आ गया है कि वह इस तरह की यूडीआरएतकनीक के को तो बंद करे। यही नहीं आईसीसी अपने आपको पारदर्शिता वाली संस्था होने का दंभ भरती है तो वह भारत के इंग्लैंड दौरे में हॉट स्पॉट से किए गए उन सभी फैसलों के टेप्स को दोबारा से देखें, जिसमें नाटआउट बल्लेबाज को आउट करार दिया गया हो।

इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा जवाबदेह तीसरा अंपायर ही माना जाएगा क्योंकि तकनीक तो अपना काम कर रही है, निर्णय तीसरे अंपायर को ही लेना है। भारत के समूचे इंग्लैंड दौरे में एक भी प्रसंग ऐसा नहीं देखा गया कि तीसरे अंपायर ने ‍दुविधा की स्थिति में बल्लेबाज को शंका का लाभ दिया हो।

उल्लेखनीय है कि आईसीसी ने भारत और श्रीलंका की सिरीज में यूडीआरएस का सबसे पहले प्रयोग किया था और यहां भी अधिकांश फैसले भारत के खिलाफ गए थे। (वेबदुनिया न्यूज)

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