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सरकारी कर्मचारी से खुश हैं जर्मन

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, बुधवार, 27 अगस्त 2014 (14:35 IST)
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सरकारी दफ्तरों से सबका लेना-देना होता है और कौन खुश रहता है उनसे। जर्मनी में भी सरकारी अधिकारियों की छवि अच्छी नहीं हुआ करती थी। लेकिन अब स्थिति बदल रही है और सरकारी कर्मचारियों की प्रतिष्ठा बढ़ रही है।

एक नए सर्वे से पता चला है कि करीब 75 प्रतिशत लोग सरकारी अधिकारियों को अच्छी नजरों से देखते हैं। जिम्मेदार, मददगार और भरोसेमंद, जर्मनी के बहुत से लोग सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले अधिकारियों के बारे में यही सोचते हैं। लेकिन हर दूसरे नागरिक को इनसे शिकायत भी है। नागरिकों को अकसर लगता है कि सरकारी अधिकारी बहुत जिद्दी होते हैं। हर तीसरे नागरिक ने सर्वे में बताया कि सरकारी दफ्तर के कर्मचारी घमंडी भी होते हैं।

सेवाओं की मांग : जर्मनी में रहने वाले लोग चाहते हैं कि वित्तीय संकट और प्रशासन में कमजोरी वाले इस समय में सरकारी कर्मचारी उन्हें भरोसा दें और उनका काम जल्द से जल्द हो। ऐसे में ज्यादातर नागरिक जर्मन दफ्तरों में सेवाओं से खुश हैं। सर्वे के मुताबिक जहां तक शिकायत की बात है, कर्मचारी जिद्दी तब माने जाते हैं जब वह नियमों का हवाला देकर काम को रोकते हैं।

जर्मनी का राजपत्रित अधिकारी संघ 2007 से अपने कर्मचारियों की छवि को आंकने के लिए सर्वे करा रहा है। इसके लिए करीब 2000 नागरिकों और 1000 अधिकारियों को चुना जाता है। सर्वे कराने वाली कंपनी फोरसा का कहना है कि पहले सर्वे से अब तक कर्मचारियों की छवि में काफी बदलाव देखा गया है। शिकायतें भी कम हुई हैं।

इस साल दमकल कर्मियों, नर्स और बुजुर्गों का ख्याल रखने वाले कर्मचारियों को लोगों ने सबसे अच्छा बताया। इसके बाद बारी डॉक्टरों और पुलिसवालों की आई। किंडरगार्टन में बच्चों की देखभाल करने वाली केयरटेकर भी सरकारी अधिकारियों की टॉप टेन सूची में शामिल हुई हैं।

सरकारी पर भरोसा : पिछले सालों के मुकाबले कचरा जमा करने वाले कर्मचारी और स्कूलटीचरों की छवि काफी बेहतर हुई है लेकिन बैंक मैनेजरों और सरकारी कंपनियों के प्रमुखों की रैंकिंग गिरी है। हो सकता है आर्थिक संकट की वजह से ऐसा हुआ हो।

जर्मनी में अब ज्यादातर लोग सरकारी कंपनियों को प्राइवेट बनाने के हक में नहीं है। जर्मनी में सरकारी कर्मचारियों को प्राइवेट कंपनियों के मुकाबले कम पैसे मिलते हैं एक समय था जब अच्छी सेवा के लिए सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में देने का चलन था लेकिन इस बीच फिर से सार्वजनिक कंपनियां खोली जा रही हैं। 78 प्रतिशत लोगों का मानना है कि अगर देश आर्थिक रूप से शक्तिमान हो तो आम लोग हर तरह के संकट से बचे रहेंगे। खासतौर से ऊर्जा आपूर्ति, सरकारी हाउसिंग सोसाइटी, ट्रेन और डाक सेवाओं को लोग सरकारी ही रखना चाहते हैं।

एमजी/एमजे (डीपीए)

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