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शराब पीने और शराबी होने में फर्क

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, शनिवार, 4 जून 2016 (12:06 IST)
नशे की लत भारत में शराबबंदी धीरे धीरे एक बड़ा मुद्दा बन रही हैं। कभी कभार इंजॉय करने की जगह अब आबादी का बड़ा हिस्सा अल्कोहॉलिज्म का शिकार हो रहा है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यूपी में भी शराबबंदी का आह्वान कर शराब को सियासत के केंद्र में ला खड़ा किया है। तमिलनाडु में दोबारा मुख्यमंत्री बनीं जयललिता ने शराब पर पाबंदी लगाने की बात कह कर इसकी सियासत को और तेज कर दिया है। बिहार और केरल से शराब को हाल ही में बाहर किया गया है।
 
लक्ष्यद्वीप, मणिपुर और नागालैंड की सरकारें पहले ही अपने यहां शराब पर प्रतिबंध लगा चुकी हैं। गुजरात बहुत पहले से ड्राइ स्टेट है। हालांकि यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि शराब पर पाबंदी का फैसला जल्दी में नहीं लिया जाएगा। उत्तराखंड में शराब पर प्रतिबंध की मांग काफी अरसे से चल रही है। जाहिर है कि शराब पर पाबंदी लगाने का दबाव सरकारें झेल रही हैं। लेकिन राजस्व का लालच ऐसा है कि सरकारें शराब पर सख्ती नहीं हो पा रही हैं।
 
लालची राज्य सरकारें : अंतरराष्ट्रीय रिसर्च संस्था यूरो मॉनिटर की रिपोर्ट में बताया गया है कि शराब पर बढ़ते टैक्स ने इसकी बिक्री कम की है। लेकिन तथ्य यह भी है कि रोज शराब पीने वालों की तादाद बढ़ी है। रिपोर्ट के अनुसार व्हिस्की, रम और ब्रांडी की बिक्री में गिरावट आई है जबकि स्कॉच, वोदका और वाइन की खरीदारी बढ़ रही है। हालांकि लखनऊ शराब एसोसिएशन के महामंत्री कन्हैया लाल मौर्या इससे सहमत नहीं, उनके अनुसार समाज की 75 प्रतिशत आबादी किसी न किसी रूप में शराब का सेवन करती है। उनके मुताबिक आने वाले दिन शराब व्यवसाय के लिए बहुत अच्छे हैं क्योंकि शराब को लेकर सामाजिक मिथक और युवकों की झिझक टूट रही है।
 
यूपी में पिछले वर्ष 18,000 करोड़ रुपये की शराब बिकी और चालू वित्तीय वर्ष में 19 हजार 250 रुपये की शराब बिक्री का लक्ष्य है। सरकारी लाइसेंस लिए यूपी में 27 हजार 24 शराब की दुकानें हैं, इनमें 14,000 देसी शराब की हैं। 1994 में यूपी सरकार ने शराब की मॉडल शॉप का लाइसेंस देना शुरू किया। कन्हैया लाल मौर्या के मुताबिक इन 401 आधुनिक मयखानों से सांस्कृतिक बदलाव आया। लोग इत्मीनान से यहां पीते हैं और घर जाते हैं। सड़कों पर लहराने और नाली में गिरने की घटनाएं कम हुई हैं।
 
शराब के दुष्परिणाम : लेकिन शराब जिस्मों पर कुप्रभाव खूब तेजी से डाल रही है। नशा मुक्ति संस्था 'प्रेरणा' के अध्यक्ष एमडी पांडेय ने बताया कि उनके केंद्र में नशे की लत का इलाज कराने इनडोर पेशेंट प्रतिवर्ष 200 और आउटडोर में 400-500 पेशेंट आते हैं। बताते हैं कि इनमें से अधिकांश का लीवर खराब हो चुका होता है और नशा मुक्ति का इलाज शुरु होते ही 'विदड्राल सिंम्प्टम्स' में लूज मोशन, आंखों से पानी, जोड़ों में दर्द जैसे चीजों से इन्हें जूझना होता है।
 
प्रेरणा के अनुसार रेलवे के रनिंग स्टाफ के कैम्प में उन्हें पता चला कि करीब 50 फीसदी रेल ड्राइवर नशे की लत का शिकार हैं। उनका शरीर अल्कोहॉल का आदी हो चुका है। उनका भी मैनुअल के अनुसार प्रेस्क्राइब्ड इलाज किया गया जिनमें से कई इस लत से बाहर आ गए। और जाहिर है कि इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं लेकिन भारतीय समाज अभी इन दुष्परिणामों को सामने लाने का साहस अपने में पैदा नहीं कर पाया है। लखनऊ की किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी समेत करीब दो दर्जन से अधिक संस्थाएं शराब की लत छुड़ाने का काम कर रही हैं। लेकिन मरीज ढके छुपे ढंग से ही सामने आ रहे हैं। उनके अनुसार लखनऊ ही क्या हर जगह शराब और ड्रग्स लेने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। खासकर शराब के प्रति नवयुवक और युवतियों का आकर्षण बढ़ रहा है।
 
रिपोर्ट रिपोर्ट: सुहेल वहीद, लखनऊ

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