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भविष्य में नहीं दिखेंगे ये जानवर

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, बुधवार, 26 नवंबर 2014 (11:19 IST)
धरती पर जीवों और पेड़ पौधों की प्रजातियां लगातार कम होती जा रही हैं। 1970 की तुलना में कई जीवों की संख्या आधी हो गई है। विश्व वन्य जीव कोष के लिविंग प्लानेट इंडेक्स में यह जानकारी दी गई है।

खेती के लिए : इस इंडेक्स के मुताबिक जर्मनी अपनी जरूरतों से दुगना ज्यादा संसाधन इस्तेमाल करता है। खास तौर पर खेती के मामले में। इस कारण बहुत बड़ी मात्रा में जानवरों का चारा आयात किया जाता है।

मांस की बजाए सोया : जर्मनी दूसरे देशों की जैविक क्षमता का भी शोषण करता है। सिर्फ जर्मनी के लिए दक्षिण अमेरिका में 22 लाख हेक्टर इलाके में सोया पैदा की जाती है और अक्सर इस खेती की बलि चढ़ते हैं वर्षावन।

खतरे में गोरिल्ला : इन प्राणियों की संख्या पिछले 30 साल में 39 प्रतिशत घट गई है। वर्षावनों की कटाई और जंगलों के कम होने के कारण इनके निवास खत्म हो रहे हैं। रही सही कसर शिकारी पूरी कर देते हैं क्योंकि बंदरों का मांस खास माना जाता है।

बेघर लीमर : लीमरों की तरह दिखने वाले ये बंदर मेडागास्कर में पाए जाते हैं और इस बीच विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके हैं। वर्षावन इनके घर हैं जो लगातार कम हो रहे हैं। इसलिए 94 फीसदी लीमर खत्म होने का खतरा झेल रहे हैं। इसकी 22 प्रजातियां विलुप्त होने की स्थिति में हैं।

जंग से ओकापी को खतरा : जिराफ जैसे ये प्राणी कांगो में रहते हैं। इनकी कितनी संख्या बची है इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। 1990 के आंकड़ों के मुताबिक पश्चिमोत्तर कांगो में वन्यजीव अभयारण्य में 4,400 ओकापी रहते थे। दस साल बाद इनकी संख्या आधी हो गई। कांगो में जारी लड़ाई के कारण ये जीव खतरे में हैं।

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घटते एशियाई हाथी : एशियाई हाथियों की संख्या 40,000 से 50,000 के बीच आंकी गई है। ये विशालकाय जीव भी खतरे में हैं। पिछली तीन पीढ़ियों से उनकी संख्या लगातार कम हो रही है। एशियाई हाथी बांग्लादेश, भूटान, भारत, चीन और इंडोनेशिया में पाए जाते हैं।

समुद्री जीव 40 प्रतिशत घटे : सालों से इंसान मांस, अंडो और कवच के लिए समुद्री कछुओं का शिकार कर रहा है। स्थिति यहां तक आ गई है कि वह विलुप्ति की कगार पर आ पहुंचे हैं। समंदर की प्रजातियां पिछले 30 साल में 39 फीसदी कम हो गई है।

नदियों और झीलों में मरते जीव : मीठे पानी में रहने वाले जीव भी माहौल में बदलाव का शिकार हो रहे हैं। नदी की घाटी में बदलाव और नदियों के बहाव में बदलाव के कारण उनके जीवन पर असर पड़ रहा है। साथ ही नदियों और झीलों का प्रदूषण भी कई प्रजातियों को खत्म कर रहा है।

प्रोटीन की जरूरत : मछलियों और झींगा से इंसानी भोजन में प्रोटीन की 15 फीसदी जरूरत पूरी होती है। अफ्रीका और एशिया के कई देशों में ये खाने में आधे से ज्यादा प्रोटीन देते हैं।

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