Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(चतुर्दशी तिथि)
  • तिथि- वैशाख कृष्ण त्रयोदशी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तक
  • व्रत/मुहूर्त-गुरु अस्त (पश्चिम), शिव चतुर्दशी
  • राहुकाल-प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

कोरोना काल में अंतिम संस्कार की जद्दोजहद और धर्म का पालन

हमें फॉलो करें कोरोना काल में अंतिम संस्कार की जद्दोजहद और धर्म का पालन

DW

, गुरुवार, 13 मई 2021 (08:31 IST)
रिपोर्ट : आमिर अंसारी
 
दिल्ली एनसीआर में श्मशान घाटों पर भीड़ लगी है। कोविड-19 के जिन मरीजों की मौत हो जाती है उनके अंतिम संस्कार को लेकर परिवार को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। हाल यह है कि पुरोहित भी ऑनलाइन क्रियाकर्म करने में लगे हैं।
 
कई बार श्मशान घाट पर टोकन लेकर परिजनों को अपने प्रियजन के अंतिम संस्कार के इंतजार में घंटों बिताना पड़ रहा है। दिल्ली के श्मशान घाटों पर अब भी 2 से 3 घंटों का इंतजार करना पड़ता है, हालांकि 15-20 दिन पहले तक अंतिम संस्कार के लिए 5-6 घंटे की वेटिंग चल रही थी। भारत में पिछले साल के मुकाबले इस साल श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार कराना ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है।
 
पिछले साल कोरोना की वजह से मौतें कम हो रही थीं लेकिन इस साल मौतों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इस वजह से श्मशान घाटों और वहां काम करने वाले कर्मचारियों पर अत्यधिक बोझ पड़ा है। राजधानी दिल्ली की ही बात की जाए तो अलग-अलग श्मशान घाट पर नए 100 से अधिक ऐसे स्थान बनाए गए हैं जहां दाह संस्कार हो सके। इस वजह से इंतजार का समय थोड़ा कम हुआ है।
 
दिल्ली के श्मशान घाटों का मंजर यह है कि यहां दिन और रात चिताएं जल रही हैं और कई बार परिजन अंतिम दर्शन तक नहीं कर पाते हैं। कई बार तो परिवार इस खौफ में अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होते कि कहीं वे भी संक्रमित ना हो जाएं। दूसरी ओर दिल्ली में कुछ ऐसे युवा हैं जो परिवार की गैर मौजूदगी में वह काम कर रहे हैं जिसकी जिम्मेदारी परिवार के सदस्यों की होती है।
 
दिल्ली के निगमबोध घाट में आशीष कश्यप चिता की राख को बोरियों में बड़ी सावधानी के साथ इकट्ठा करने का काम कर रहे हैं। कश्यप वैसी चिताओं की राख उठाते हैं और फिर उसे गंगा में प्रवाहित करेंगे जिन पर कोई दावा नहीं करता है। हिन्दू धर्म में गंगा में अस्थियां विसर्जित करना सबसे पवित्र माना जाता है और ऐसा मानना है कि पवित्र नदी में अस्थि विसर्जन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कश्यप बताते हैं कि इस महामारी में इन पीड़ितों के रिश्तेदारों ने उन्हें छोड़ दिया है। हमारा संगठन इन लावारिस अवशेषों को सभी श्मशान घाटों से इकट्ठा करता है और हरिद्वार में गंगा में विसर्जित करता है, ताकि वे मोक्ष प्राप्त कर सकें।
 
रीति-रिवाज और परंपराएं कौन निभाए
 
कोरोना की दूसरी लहर ने मौत का जो तांडव दिखाया है उसमें आम इंसान ही नहीं बल्कि अंतिम संस्कार कराने वाले पंडित-पुरोहित भी सहम गए हैं। कई बार पुरोहित नहीं होने पर क्रियाकर्म तो श्मशान घाट के कर्मचारी ही करा देते हैं। सेवा समिति हरिद्वार के रामपाल सिंह डीडब्ल्यू से कहते हैं कि हरिद्वार में घाटों पर इस साल शवों की अंत्येष्टि पिछले साल के मुकाबले बढ़ी है। उनके मुताबिक समिति लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कराने का जिम्मा उठा रही है। रामपाल पिछले साल की कोरोना लहर को याद करते हुए कहते हैं कि उस समय रोजाना पांच से दस के बीच शव अंतिम संस्कार के लिए आते थे लेकिन आज हाल यह है कि किसी-किसी दिन 70 शव हरिद्वार में अंतिम संस्कार के लिए आ रहे हैं।
 
रामपाल कहते हैं कि इस साल हालात ज्यादा खराब है। हरिद्वार में आने वालों को हम हर तरह की मदद देने की कोशिश करते हैं। लकड़ी, पैसे तक की मदद करते हैं। समिति ने अंतिम संस्कार के लिए न्यूनतम दर तय की है, अगर किसी के पास इतने भी पैसे नहीं होते हैं तो हम उनको मजबूर नहीं करते। उन्होंने बताया कि हरिद्वार में घाटों के किनारे 11 मई को 42 (इनमें 13 कोरोना पॉजिटिव) और 10 मई को 62 अंतिम संस्कार हुए। रामपाल का कहना है कि जो शव लावारिस होता है उसका अंतिम संस्कार समिति के कर्मचारी ही कर देते हैं। जो परिवार शव का अंतिम संस्कार नहीं करना चाहता है तो उसका क्रियाकर्म समिति के कर्मचारी करते हैं।
 
ऑनलाइन हवन
 
इस साल महामारी ने अंतिम संस्कार ही नहीं बल्कि उसके बाद होने वाले हवन, गायत्री मंत्र जाप और अन्य धार्मिक आयोजनों को भी प्रभावित किया है। पीड़ित परिवार अपने पुरोहित से विचार करने के बाद सहज तरीके से धार्मिक आयोजन कर रहे हैं। दिल्ली के एक पंडित सचिन भारद्वाज कहते हैं कि उनके पास 100 ब्राह्मणों का नेटवर्क है और वे परिवारों को उनकी जरूरतों के हिसाब से अपनी सेवाएं देते हैं। वे ऑनलाइन हवन से लेकर तेरहवीं तक के धार्मिक अनुष्ठान कराने का काम करते हैं। पीड़ित परिवार से पहले तो यह पूछा जाता है कि परिवार का कोई सदस्य कोरोना पॉजिटिव तो नहीं है। अगर परिवार में कोई कोरोना संक्रमित होता है तो उन्हें ऑनलाइन हवन और गायत्री मंत्र के जाप का विकल्प दिया जाता है।
 
सचिन भारद्वाज कहते हैं कि इस साल अंतिम संस्कार करना बड़ी चुनौती है। लॉकडाउन के कारण भी कई बार हम लोग श्मशान घाट तक नहीं पहुंच पाते हैं। पहले जहां कुछ मिनटों में अंतिम संस्कार हो जाता था उसके लिए अब लाइन लग रही हैं। सचिन का कहना है कि जो क्रियाकर्म पिछले साल आसानी के साथ हो जाता था वही अब करना मुश्किलभरा काम हो गया है। ऑनलाइन हवन के बारे में सचिन कहते हैं कि परिवार के घर पर हवन की सामग्री पहुंचाई जाती है ताकि वह पंडित के निर्देश के मुताबिक हवन में शामिल हो सके। परिवार के सदस्य को वीडियो कॉल पर पुरोहित निर्देश देते हैं और सदस्य उसका पालन करता है।
 
पंडित सचिन का कहना है कि गायत्री मंत्र का जाप भी ऑनलाइन होता है और सात ब्राह्मण सात दिनों तक मंत्र का जाप करते हैं। वे कहते हैं कि कई ब्राह्मण ऑनलाइन काम करने में निपुण नहीं होते हैं लेकिन उन्हें वीडियो कॉल करना सिखाया जाता है जिससे वे परिवार को गायत्री मंत्र का जाप करते हुए नजर आ जाते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

नेपाल का कोरोना संकट: क्या भारत के इस फ़ैसले का भी है असर?