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कहां गुम हैं भारत के ब्लॉगर?

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, बुधवार, 13 मई 2015 (14:53 IST)
दुनिया के कई कोनों में ब्लॉगर मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। कहीं सरकारें उन्हें दबा रही हैं, तो कहीं कट्टरपंथी उन्हें निशाना बना रहे हैं। लेकिन भारत के ब्लॉगर आराम फरमा रहे हैं, कहना है ईशा भाटिया का।

बांग्लादेश में तीन महीनों में तीन ब्लॉगरों को मौत के घाट उतारा जा चुका है। जो लोग निशाने पर हैं, उनकी सूची लंबी है। ऐसे में आने वाले दिनों में शायद ऐसी खबरें और भी मिलें। आज जिस ब्लॉगर की हत्या हुई उनका नाम था अनंत बिजोय दास। पेशे से दास बैंकर थे। किसी अन्य बैंक मुलाजिम की तरह वे भी सुबह तैयार हो कर काम पर निकलते और शाम को घर लौट आते। बस एक फर्क था। काम के बाद के समय को वे लिखने के लिए इस्तेमाल करते और यही उनकी मौत का कारण बन गया। दास का कुसूर यह था कि वे नास्तिक थे। उनका विश्वास धर्म में नहीं, विज्ञान में था। इसी पर वे लिखते भी थे। वे तर्क के पक्ष में और कट्टरपंथ के खिलाफ लिखते थे।
 
 
जबसे इंटरनेट में ब्लॉगिंग साइटें शुरू हुई हैं, अपने विचार दूसरों तक पहुंचाना आसान हो गया है। अब दो सौ पन्नों वाली किताब लिख कर प्रकाशक ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ती। बस दो पन्नों में अपने विचार लिख दो और ब्लॉग के जरिए पूरी दुनिया तक पहुंचा दो। प्रकाशक का काम ब्लॉग कर देता है और पब्लिसिटी का फेसबुक और ट्विटर। पिछले कम से कम दस साल से भारत में भी ब्लॉगिंग का चलन चल रहा है और वक्त के साथ यह और लोकप्रिय भी होता चला जा रहा है। लेकिन बांग्लादेश की तरह भारत के ब्लॉगरों को किसी तरह का खतरा नहीं है। क्या इसलिए कि भारत में आलोचना करने वालों को बेहद सुरक्षा और सहयोग मिलता है या फिर इसलिए कि आलोचकों की ही कमी है?
 
पैसे के पीछे भागता युवा!
गूगल में अगर 'टॉप इंडियन ब्लॉग' की सूची खोजेंगे तो एक से एक ब्लॉग मिलेंगे। लेकिन मेरे लिए हैरान करने वाली बात यह है कि 'टॉप ब्लॉग' की सूची में शायद ही कोई ऐसा है जो सामाजिक समस्याओं का जिक्र करता है। सबसे लोकप्रिय ब्लॉग वे हैं, जो तकनीक से जुड़ी बातें करते हैं या फिर स्टार्ट अप शुरू करने के और जल्द रईस बनने के नुस्खे सिखाते हैं। इनके बाद नंबर आता है पैसे को खर्च कैसे करना है, यह सिखाने वाली वेबसाइटों का। इनमें ट्रैवलॉग यानि घूमने फिरने के टिप्स देने वाली वेबसाइटें सबसे आगे हैं और उनके बाद हैं खाने पीने से जुड़े ब्लॉग।
 
भारत में ब्लॉगिंग के इस ट्रेंड को देख कर तो लगता है जैसे देश में कोई समस्याएं हैं ही नहीं। देश में कुल आबादी का करीब बीस फीसदी हिस्सा इंटरनेट इस्तेमाल करता है। चीन और अमेरिका के बाद हम दुनिया में तीसरे नंबर पर हैं और अधिकतर इंटरनेट यूजर युवा हैं, यानि इंटरनेट उनके हाथ में है जो देश का भविष्य निर्धारित करने की क्षमता रखते हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन्हें देश की समस्याएं नजर ही नहीं आतीं। तो क्या यह कहना ठीक होगा कि देश का युवा पैसे के पीछे भागने में इतना मसरूफ है कि ना उसे आत्महत्या करते किसान नजर आते हैं और ना ही गरीबी और अभाव में जीवन बिताते बच्चे।
 
चुनिंदा लोगों के हाथ में इंटरनेट : 
हां, पिछले कुछ वक्त से एक नया चलन जरूर चला है। लड़कियां सोशल नेट्वर्किंग साइटों पर अपने हक के लिए खुल कर बोलने लगी हैं। लेकिन फेसबुक स्टेटस अपडेट से ज्यादा इस दिशा में भी कुछ खास नहीं हो रहा। महिला अधिकारों पर भी गिने चुने ब्लॉग ही मिल पाएंगे। और जो मिलेंगे, वे अंग्रेजी में क्योंकि इन्हें अधिकतर कॉलेज जाने वाली लड़कियां चलाती हैं। तो क्या गांवों में रहने वाली और अंग्रेजी ना बोलने वाली लड़कियों की आवाजें अहम नहीं हैं या फिर उन्हें जागरूकता की जरूरत नहीं है?
 
भारत में महज दस प्रतिशत लोग ही अंग्रेजी में बोलचाल कर पाते हैं। बाकी 90 फीसदी के साथ जुड़ाव या तो हिन्दी में और या स्थानीय भाषाओं में ही मुमकिन है। कुछ लोग यह कोशिश कर भी रहे हैं लेकिन ये हाशिए पर हैं। बांग्लादेश के जिन ब्लॉगरों को निशाना बनाया जा रहा है, वे सब पढ़े लिखे अंग्रेजी जानने वाले लोग हैं। लेकिन फिर भी वे बांग्ला में ही लिखते हैं ताकि देश के हर कोने तक अपनी आवाज पहुंचा सकें। इसके विपरीत भारत एलीट और देहात के बीच बंट गया है। कुछ चुनिंदा लोग इंटरनेट को चला रहे हैं। और अफसोस कि ये देश की समस्याओं को उजागर नहीं कर पा रहे हैं।
 
रिपोर्ट ईशा भाटिया

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