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आतंकी संगठनों में लगी है अपराध की होड़

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, शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016 (11:57 IST)
कट्टरपंथी इस्लामी संगठन बोको हराम ने उत्तरी नाइजीरिया के एक गांव में वीकएंड में दर्जनों लोगों की हत्या कर दी। डॉयचे वेले के ग्रैहम लूकस का कहना है कि यह हमला दिखाता है कि बोको हराम के कमजोर होने की खबरें सही नहीं हैं।
बोको हराम ने पिछले छह महीनों में उत्तरी नाइजीरिया और पड़ोसी देशों में अपने तथाकथित इस्लामी विद्रोह के तहत 20,000 से ज्यादा लोगों की हत्या की है।
 
नाइजीरिया में हाल में हुए राष्ट्रपति चुनावों और सेना के हाथों कई हारों के बाद उम्मीदें बढ़ गई थीं कि यह संगठन कमजोर हो रहा है। यह भी सोचा जा रहा था कि दो साल पहले बोको हराम द्वारा बंधक बनाई गयी स्कूली लड़कियां जल्द ही रिहा हो जाएंगी।
 
लेकिन वे अभी भी बंधक हैं और उन पर हिंसा जारी है। ऐसा लगता है कि माली में अल कायदा के हाल के हमलों से बोको हराम का हौसला बढ़ा है। अब दोनों ही संगठन अतिवादी इस्लाम की अपनी विचारधारा के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं।
 
वीकएंड में बोको हराम का हमला दिखाता है आतंकी कार्रवाइयां सीरिया और इराक में इस्लामिक स्टेट द्वारा मानवता के खिलाफ अपराधों जैसी हैं। इसने यह भी दिखाया है कि अल कायदा जो पश्चिमी अफ्रीका में कर सकता है वह बोको हराम भी कर सकता है।
 
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दोनों जघन्य अपराध करने में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। बोको हराम के लड़ाकों और तीन महिला आत्मघाती हमलावरों ने कम से कम 86 लोगों की जान ली है। हमले का शिकार होने वालों में बहुत से बच्चे थे। बहुत से लोग पूर्वोत्तर नाइजीरिया के सबसे बड़े शहर माइदूगुरी के करीब हुई बोको हराम की बमबारी में जल कर मर गए।
 
इस हमले पर हुई प्रतिक्रिया दिखाती है कि नाइजीरिया की सेना अतिवादी हत्यारों का मुकाबला करने में सक्षम नहीं है। सैनिक टुकड़ियां मौके पर हमला शुरू होने के चार घंटे बाद पहुंची और आतंकवादियों के पास उनकी तुलना में बेहतर हथियार थे। सेना की विशेष टुकड़ी के आने के बाद ही आतंकवादी पीछे हटे। यह तथ्य कि सेना की छावनी घटनास्थल से ज्यादा दूर नहीं है, दिखाता है कि नई सरकार में भी बोको हराम से लड़ने की राजनीतिक इच्छा का अभाव है।
 
हाल के हमले यह भी दिखाते हैं कि वैचारिक अंतरों के बावजूद बोको हराम, इस्लामिक स्टेट और अल कायदा की ही तरह कमजोर लक्ष्यों पर हमला कर रहा है। ये अफ्रीका के शहरों और गांवों के अलावा वे होटल हैं जहां अंतरराष्ट्रीय पर्यटक रहते हैं। लोगों को बंधक बनाना भी उनके एजेंडा पर है। यूरोप में इसका मतलब है कि शहरों पर खतरा बढ़ गया है।
 
उग्रपंथियों का मकसद आतंक फैलाना और उन्हें मारना है जो उनका समर्थन नहीं करते। यदि सरकारें युवा दिमागों में जहर घोलने के खिलाफ कोई कारगर उपाय नहीं खोज पाती हैं, तो यह खतरा हमारे साथ, यूरोप में ही नहीं बल्कि अफ्रीका और एशिया में लंबे समय तक रहने वाला है। यह ऐसा अभिशाप है जिसकी उस धर्म में कोई जगह नहीं है, जिसके प्रतिनिधित्व का दावा चरमपंथी करते हैं।
 
रिपोर्ट: ग्रैहम लूकस

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