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समृद्ध संस्कृति वाले भारत में पसरता रेप 'कल्चर'

हमें फॉलो करें समृद्ध संस्कृति वाले भारत में पसरता रेप 'कल्चर'
, शनिवार, 18 जुलाई 2015 (12:40 IST)
बंगाल की टुकटुकी की तरह देश भर में बच्चियों और महिलाओं के खिलाफ हर दिन हो रहे अनगिनत अत्याचारों से भारत की संस्कृति खतरे में है। महिला विरोधी अपराधों को सांप्रदायिक या राजनीतिक रंग देने के बजाए उनसे मिलकर लड़ने की जरूरत।
पश्चिम बंगाल में एक किशोरी के अपहरण, बलात्कार और फिर मानव तस्करी का शिकार बनाए जाने की आशंकाओं के बीच भी कुछ लोग धार्मिक शत्रुता की रोटियां सेंक रहे हैं। बंगाल वही राज्य है जिसकी साझा बंगाली संस्कृति में हिंदू-मुसलमान का भेद कई दूसरे भारतीय राज्यों के मुकाबले काफी कम है। ज्यादातर लोग बंगला भाषा बोलते हैं और हर साल होने वाली दुर्गा पूजा की बंगाली परंपरा में जोर शोर से शिरकत करते हैं। यह सोच कर अफसोस और गहरा जाता है कि शक्ति रूपा मानी जाने वाली देवी दुर्गा को पूजने वाले इसी राज्य में टुकटुकी और रुमेली कार जैसी कितनी ही फूल सी बच्चियां कुचली जा रही हैं।
 
दक्षिण 24 परगना जिले का मंडल परिवार दूसरी बार अपनी बेटी के अगवा होने के बाद से दोहरे दुख में है। पहले तो बेटी की चिंता और दूसरे उन्हें लगातार मिल रही धमकियां। बीजेपी के नेताओं ने टुकटुकी मंडल के अपहरण का आरोप एक मुसलमान नेता पर जड़ा है। पुलिस की सुस्त कार्रवाई के पीछे कुछ लोग यह कारण मानते हैं कि रमजान के पवित्र माने जाने वाले महीने में एक मुसलमान नेता पर हाथ डालने से मुस्लिम समुदाय का गुस्सा भड़क सकता है। आपराधिक आरोपों पर कार्रवाई से अगर राज्य में धार्मिक कटुता की आग भड़कती है तब तो प्रशासन बेहद गंभीर स्थिति में दिखता है। ऐसे में खुद को हिंदू सम्मान की रक्षा को समर्पित बताने वाली 'हिंदू सम्हति' जैसी संस्थाएं टुकटुकी को बचाने के लिए आगे आ रही हैं, और इस प्रक्रिया में दूसरे धर्म के लोगों को निशाना बनाने और उनके खिलाफ आग उगलने का कोई मौका भी नहीं छोड़ रही हैं।
 
सोशल मीडिया में टुकटुकी को बचाने की चर्चा के जोर पकड़ने और दुनिया में कई जगहों पर मानव अधिकारों और महिला सुरक्षा मुद्दों को लेकर सक्रिय एनजीओ कार्यकर्ताओं के प्रदर्शनों के बाद कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता ने राज्य को निर्देश दिया है कि वे टुकटुकी मंडल को आजाद करा कर 27 जुलाई को पेश करें और दोषियों को गिरफ्तार करें। कोर्ट ने इस मामले में पुलिस को उनकी निष्क्रियता के लिए लताड़ा और पूरी प्रक्रिया पर गहरा असंतोष जताया।
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दिसंबर 2012 में दिल्ली के नृशंस बलात्कार और हत्याकांड ने पूरी दुनिया का ध्यान भारत में महिलाओं की असुरक्षा की ओर खींचा था। निर्भया कांड के बाद महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और पीछा करने जैसी हरकतों को अपराध की श्रेणी में लाया गया और बलात्कार के मामलों में पुलिस की तेज कार्रवाई, कोर्ट में त्वरित सुनवाई और पीड़िता के कष्ट को और ना बढ़ाने वाले तमाम उपाय लाए गए। लेकिन इससे भी बलात्कार की घटनाओं में कमी नहीं आई।
 
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निर्भया के पहले और उसके बाद कितने ही ऐसे दिल दहलाने वाले मामले सामने आ चुके हैं। यूपी के बंदायूं में पेड़ से लटकी मिली किशोरियों की लाशें हों, या हाल ही में छत्तीगढ़ के कोरबा जिले के आदिवासी छात्रावास में छात्राओं के साथ कथित यौन शोषण और दुष्कर्म की वारदात जिसमें भी टुकटुकी मामले की ही तरह
कुछ स्थानीय नेताओं और पत्रकारों का नाम उछला है।

ऋतिका राय, डॉयचे वेले

2013 में छत्तीसगढ़ के ही झलियामारी कांड में ऐसे ही एक आदिवासी छात्रावास में 11 बच्चियों के साथ महीनों तक जबर्दस्ती किए जाने का मामला सामने आया था।
 
इसी फरवरी में स्कूल से लौटते समय पहली बार अगवा हुई गरीब परिवार की 14 साल की टुकटुकी मंडल को अपराधियों ने सामूहिक बलात्कार के बाद छोड़ दिया था। 5 मई को फिर अपने घर से उठाई गई टुकटुकी अब कहां और किस हाल में है, कुछ पता नहीं। पहली वारदात के बाद अपहरणकर्ताओं की धमकी के कारण चुप रह जाने वाले परिवार के सामने इसका नतीजा दूसरी बार उससे भी भयानक रूप में सामने आया है। अपराधी हिंदू हो या मुसलमान उसके विरूद्ध कार्रवाई करने में पुलिस को निर्भीक होना चाहिए था लेकिन पुलिस को बिना डर के फर्ज निभाने का माहौल देना सरकार का भी जिम्मा है।
 
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों में महिला अत्याचारों के मामले में सबसे ऊपर बने हुए बंगाल में सत्ता की बागडोर संभाल रही महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से कहीं ज्यादा ठोस कदमों की उम्मीद है। ऐसी आपराधिक घटनाएं जिसमें छोटी बच्चियों तक को निशाना बनाया जा रहा है, हिंदू-मुसलमान द्वेष को बढ़ावा देने और राजनीतिक फायदे के लिए सांप्रदायिक मोड़ देने की नहीं बल्कि एकजुट होकर दोषियों को दबोचने की कोशिश का मौका होना चाहिए।
 
ब्लॉग: ऋतिका राय

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