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मूत्र से तैयार होगी बिजली

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, शुक्रवार, 19 सितम्बर 2014 (11:59 IST)
दुनिया भर में रिसर्चर कोशिश कर रहे हैं कि जितना हो सके अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को इस्तेमाल किया जा सके। इस दिशा में इंग्लैंड के रिसर्चर अब मूत्र को इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं।

दक्षिण पश्चिमी इंग्लैंड में ब्रिस्टल रोबोटिक्स प्रयोगशाला 'वेट लैब' में प्रवेश करने पर शौचालय जैसी गंध आती है। इस प्रोजोक्ट पर काम कर रहे वैज्ञानिक लोआनिस लेरोपोलोस के मुताबिक यह रिसर्च में इस्तेमाल हो रहे एजेंट्स की गंध है। वैज्ञानिक इस बात को पहले से जानते हैं कि सूक्ष्म जीव विद्युत पैदा कर सकते हैं। ये सूक्ष्म जीव जब खाद्य पदार्थों का विघटन करते हैं तो इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन मुक्त होते हैं। इनकी मदद से विद्युत सर्किट में विद्युत प्रवाह संभव है।

अक्षय ऊर्जा स्रोत : पिछले एक दशक से लेरोपोलोस यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या इससे रोबोट्स को फायदा हो सकता है, लेकिन हाल ही में उन्होंने महसूस किया कि मूत्र से विद्युत निर्माण भी संभव हो सकता है। उन्होंने बताया, 'रिसर्चरों ने पिछले दस सालों में घास, घोंघे का कवच, मरे हुए कीड़ों और सड़े हुए फलों का इस्तेमाल किया। लेकिन हाल में जब उन्होंने यही प्रयोग मूत्र के साथ किया तो परिणाम चौंकाने वाले थे।'

उन्होंनो पाया कि सूक्ष्म जीवाणुओं में जब ताजा मूत्र मिलाया जाता है तो तीन गुना ज्यादा ऊर्जा का संचार होता है। उन्होंने एक आसान सा सिस्टम तैयार किया। उन्होंने यूरिनल को जीवाणुओं से गुजारते हुए यूएसबी पोर्ट से कनेक्ट किया। उन्होंने पाया कि मोबाइल फोन जैसे छोटे उपकरणों को चार्ज करने के लिए प्रयाप्त ऊर्जा का उत्पादन हो पाया।

उनकी इस खोज से खुश होकर बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने इस अविष्कार को असल दुनिया में इस्तेमाल योग्य बनाने के लिए प्रयोगशाला को आर्थिक मदद देने की मंजूरी दी। लेरोपोलोस के मुताबिक वे कोशिश कर रहे हैं कि वे इसे बड़े स्तर पर सुचारू बना सकें।

स्वच्छता पर ध्यान : गेट्स फाउंडेशन ने रिसर्चरों की टीम को भारत जाकर इस यंत्र को दिखाने के लिए भी मदद दी है। इस खोज को 'यूरीनेक्ट्रिसिटी' नाम दिया गया है। 'वॉटर एड अमेरिका' संस्था की मुख्य कार्यकारी अधिकारी सरीना प्रबासी के मुताबिक यूरीनेक्ट्रिसिटी विकासशील इलाकों में सेहत और स्वास्थ संबंधी मामलों में भी मददगार साबित हो सकती है। ग्रामीण इलाकों में मल, मूत्र और कचरे से निपटना भी बड़ी समस्या है। उनके मुताबिक इस दिशा में भी लोगों को राहत मिलेगी।

ब्रिस्टल में ही यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट इंग्लैंड के प्रोफेसर जॉन ग्रीनमैन ऐसे सूक्ष्म जीवों पर काम कर रहे हैं जो पानी को साफ कर सकें। अगर इन दो तकनीकों को मिला दिया जाए तो भविष्य के लिए 'सुपर टॉयलेट' का निर्माण हो सकता है।

ग्रीनमैन के मुताबिक मूत्र को फसल पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। लेकिन अगर इसे सूक्ष्म जीवों द्वारा की जाने वाली विघटन प्रक्रिया से गुजारा जाए तो एक तरफ तो विद्युत पैदा की जा सकती है, दूसरे इस प्रक्रिया से होकर निकलने वाला पानी काफी साफ होता है जिसे फसल के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

संभव है कि कई लोगों को यह तकनीक बहुत न भाए क्योंकि मल मूत्र के बारे में लोगों की धारणाएं अच्छी नहीं हैं। लेकिन अगर इससे पर्यावरण और मानव जाति को फायदा हो, तो हो सकता है लोगों की इस पर आपत्ति भी समय के साथ खत्म हो जाए।

रिपोर्ट: अमेरिला पॉल/एसएफ
संपादन: ईशा भाटिया

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