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प्रेम पत्र

जीवन के रंगमंच से

हमें फॉलो करें प्रेम पत्र

शैफाली शर्मा

ND
मुझे याद नहीं कि मुझे कभी यह कहने की जरुरत पड़ी हो कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। इसलिए शायद जब भी तुमने कुछ पूछा, उसके जवाब में मैंने हमेशा एक पत्र लिखकर दिया है। मैं जानता था तुमने मेरी बातों से अपने जीवन की किताब को भर लिया था। जहाँ और किसी के कहे शब्दों के समाने की जगह ही नहीं छोड़ी थी।

हमारे जीवन में एक जैसे किस्से जुड़ने लगे थे। बहुत खुश थे उस दिन तक जब तक मेरे अतीत की आखिरी कहानी तुमने पढ़ ली थी। उसके बाद शब्दों की दौड़ में खामोशी ने भाग ले लिया था। बहुत कुछ लिख देने के बाद उस किताब के कुछ पन्ने खाली छोड़ना थे।

उन खाली पन्नों में हमें अपने किस्सों को लिखने की इजाजत नहीं थी, ना ही एक-दूसरे को बताने की। एक-दूसरे की खामोशी को हमें अकेले जीना था। बहुत मुश्किल था क्योंकि हम दोनों जानते थे कि गलती इतनी बड़ी नहीं थी, जितनी बड़ी सजा मिल रही है। मेरे बार-बार आखिरी-आखिरी कह देने पर तुमको विश्वास नहीं था। सबकुछ देने के बाद भी तुम मुझसे इतना कह देने का हक ना ले सकी कि अपने अतीत को फाड़कर फेंक दूँ।
  मुझे याद नहीं कि मुझे कभी यह कहने की जरुरत पड़ी हो कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। इसलिए शायद जब भी तुमने कुछ पूछा, उसके जवाब में मैंने हमेशा एक पत्र लिखकर दिया है। मैं जानता था तुमने मेरी बातों से अपने जीवन की किताब को भर लिया था।      


तुम जानती थी मैंने अपने जीवन के हर किस्से को तुम्हारे साथ बाँटा है। हमारी पहली कहानी की शुरुआत मेरे अतीत की आखिरी कहानी की निरंतता में थी। फिर भी तुम्हें मनाना मेरे लिए मुश्किल था। किसी के लिए भी मुश्किल होता। बस एक आसान-से रास्ते की तलाश में मैंने तुम्हारी दूर हो जाने की शर्त को मंजूर कर लिया। हम चल पड़े उस खामोशी की राह जहाँ एक इंतजार, एक तन्हाई, एक उम्मीद के अलावा कुछ कोरे पन्ने भी थे, जिस पर हमें कुछ लिखने की इजाजत नहीं थी, ना ही एक दूसरे को कुछ बताने की।

बहुत दिनों तक अपने हाथों में उन कोरे पन्नों को लेकर हम एकदूसरे से दूर रहें। लेकिन हमें पता नहीं था हमारी नजरें चुराकर समय उन कोरे कागज पर बहुत कुछ लिख रहा था। मुझे आज भी याद है वो खामोशी के दिन, वो दूरियाँ, और उसके बाद हुई मुलाकात.......ताश के पत्तों की तरह हम एक-एक पन्ना एकदूसरे के सामने रखते गए, और देखा कि अब भी हमारी कहानी में एक जैसे किस्से थे।

वही बच्चों-सी जिद, वही सूफियों-सी सीख, वही झूठमूठ के किस्से, और दिल की सच्ची कहानी, वही तुम्हारी मुस्कुराहट को देखना, और देख लेने पर नजरों को चुरा लेना, वही बहते हुए आँसू, और सूनी-सी आँखों में उम्मीद की तलाश................सबकुछ एक जैसा था। एक बात को छोड़कर उस दिन पहली बार तुमने मुझे आई लव यू कहा

लेकिन तुम्हारे कहने से पहले ही मैं जान चुका था कि प्यार को किसी शब्दावली की जरुरत नहीं होती, खामोशी की अपनी जुबां होती है, जो समय और किस्मत से जुड़कर कई बार ऐसे किस्से गढ़ लेती है, जो बड़ी-बड़ी बातें और आई लव यू जैसे शब्द नहीं गढ़ पाते।

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