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अन्ना नहीं यह 'आंधी' है...!

जीवन के रंगमंच से

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स्मृति आदित्य

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एक ही नारा, एक ही गूंज, एक ही नाम। अन्ना। आखिर इस कमजोर कृशकाय सामान्य से दिखाई देने वाले समाजसेवी में ऐसा क्या चमत्कार देख रहे हैं युवा? सवाल बड़ा सीधा है और उत्तर सबको पता है। वास्तव में हमारी पीढ़ी ने अब तक इतिहास में ही पढ़ा है कि अंहिसा और अनशन के पावन शांतिपूर्ण रास्ते पर चलकर महात्मा गांधी ने आजादी दिलाई लेकिन आज का जोशीला युवा अब तक इस पर सहज विश्वास नहीं कर पा रहा था।

क्योंकि उसने गांधी को नहीं देखा था, गांधी के आदर्शों पर चलते हुए लाखों अनुयायियों को नहीं देखा था। जबसे उसने होश संभाला गांधी उसे कांग्रेस की 'संपत्ति' के रूप में दिखाई दिए। दूसरे, गांधी के आदर्श उस तक उन लोगों के माध्यम से पहुंचें जिनके खुद के शब्दों और चरित्र में दोहरापन था। 'गांधी' शब्द जिनके लिए सत्ता की सीढ़ी अधिक था और गांधी के आदर्श महज भाषण और पोस्टरों के लिए उपयुक्त थे।

ऐसे में आज का युवा मन सहज ही इस बात पर विश्वास नहीं कर सका कि गांधी के अनशन से अंग्रेज सरकार घबराती थी। आज जब इतने सालों बाद गांधी को आचरण में लाकर स्वयं निष्कलंक रहकर अन्ना ने क्रांति का बिगुल बजाया तो जैसे एक सुहानी लहर चल पड़ी। वह युवा जो बिखरा था, बहका था थोड़ा-थोड़ा भटका था, अचानक एक साथ एक आवाज के पीछे चल पड़ा।

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उसे लगा कि कोई तो है जो उसे मात्र भाषणों से नहीं, शब्दों से नहीं, उपदेशों से नहीं बल्कि कर्मों से समझा रहा है कि आखिर वह कहां जाए और वह जा कहां रहा था। यही तो वह चाहता भी था। वह सोच भी तो यही रहा था कि उसका देश जो मूल्यों की बात तो हर वक्त करता है लेकिन मूल्यों की स्थापना के लिए कभी जोखिम नहीं उठाता।

ऐसे में अन्ना की उजली रोशनी ने उसके मन से अंधेरे को दूर किया तो वह मतवाला हो सड़कों पर निकल पड़ा। अन्ना के आंदोलनों की भीड़ में कहीं कोई अनुशासनहीनता नहीं, कहीं कोई नागवार हरकत नहीं दिखाई पड़ी तो लगा कि नेतृत्व अगर विशुद्ध हो, तो ऐसी बातें अपने आप ही प्रतिबंधित होती है।

स्वत:प्रेरणा आपको ऐसा कोई भी काम करने से रोकती है जो सामाजिकता के विरूद्ध हो। यह भी अहसास हुआ कि नेतृत्व के कर्म और वचन में अंतर ना हो तो एक-एक शब्द दिल से निकलता है और सीधा दिल पर असर करता है।

वंदेमातरम, इंकलाब जिंदाबाद के अलावा भी अन्ना के युवा समर्थकों के नारे इतने आकर्षक हैं कि बरबस ही भावविभोर हो जाते हैं। अन्ना नहीं यह आंधी है, देश का दूसरा गांधी है। अन्ना आया झूम के, धरती मां को चूम के। ठंडा-ठंडा कूल-कूल, अन्ना इज वंडरफुल। इन नारों को पूरे जोश के साथ सुनने पर एकबारगी यह ख्याल भी आया कि 'आई हेट गांधी' जैसे अभियान चलाने वाले युवा एक बार इस 'गांधी छवि' को देखकर फिर से विचार करेंगे।

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आज अन्ना ने उसे (युवाओं को) गांधी के अनशन, अहिंसा और सत्याग्रह की ताकत का गहराई से अहसास कराया है। आज उसने मूल्यों की, चरित्र की और ईमानदारी की स्थापना होते हुए खुद देखी है। कल तक ईमानदारी 'मूर्खों' का गुण मानी जाती थी और बेईमानी 'फैशन' बन कर छाई थी।

आज चक्र पलटा है। आज 'फैशन' में ईमानदारी है और बेईमान होना 'आउट डेटेड' है। अन्ना ने युवा मन में जो पवित्रता का बीज बोया है उसकी सुनहरी फसल हम भविष्य में काटेंगे। एक आशा, एक उम्मीद, एक विश्वास फिर हम सबमें जन्मा है। यह देश फिर गर्व करने लायक बना है, बन रहा है। भ्रष्टाचारियों की 'तपती' निरंकुशता पर 'शीतल' ईमानदारी ने हाथ रखा है, जुबान पर बना रहने दीजिए युगों-युगों तक बस यही एक नाम- अन्ना, अन्ना और सिर्फ अन्ना।

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