भैयाजी की पेशानी पर चिंता की लकीरें थीं, जिन्हें देखकर उनके दोनों चमचे हैरत में थे। भैयाजी अपनी चीटी उँगली कान में डालकर खुजा रहे थे। यह हरकत इस बात की द्योतक थी कि वे किसी गहन परेशानी में हैं। पहले वे माचिस की सींक का उपयोग करते थे, पर फिर कान के डॉक्टर ने आगाह किया कि छोटी-मोटी चिंता में कान में सींक फँसाना बंद नहीं करोगे तो किसी दिन कर्णपटल छिद्र के रूप में बड़ी आपदा का आगमन हो सकता है। दोनों चमचे उनकी परेशानी देख रहे थे और वे कनखियों से फोन की तरफ देख रहे थे। आखिर में उन्होंने एक दीर्घ निःश्वास ली और बोले, 'अभी तक नहीं आया।' '
क्या?' दोनों चमचों के मुँह से एक साथ निकला। '
फोन और क्या?' उन्होंने उनकी अक्ल पर तरस खाकर घुड़की भरे अंदाज में बोला और वापस चिंतित हो गए। '
किसका?' दोनों एक साथ फिर मिमियाए। '
ओबामा का और किसका? दो दिन हो गए राष्ट्रपति बने, १५ देशों के राष्ट्राध्यक्षों को फोन लगा दिया। अभी तक दिल्ली फोन नहीं आया। समस्त शिखर नेतृत्व चिंतित है। न तीन में न तेरह में तो सुना था यहाँ तो पंद्रह में से पत्ता साफ है। हमसे का भूल हुई जो ये सजा हमको मिली?' वे फिर एकदम चिंतातुर हो गए। दोनों चमचे रिलेक्स हो गए। एक ने दूसरे से कहा, 'नेटवर्क पिराबलम भी हो सकती है?' दूसरे ने सिर खुजाल कर सोचा और बोला कि इतनी इंटरनेशनल कॉल लगाई थी, हो सकता है पूरा बैलेंस ही साफ हो गया और फिर अपनी जेब से निकालकर भैयाजी द्वारा प्रदत्त मोबाइल में स्टार दबाकर बैलेंस चेक करने लगा। 'कितना है?' दूसरे ने पूछा। वह कुछ नहीं बोला। बैलेंस बताकर वह भैयाजी की आर्थिक दुश्वारियाँ बढ़ाना नहीं चाहता था। पहले ही वैश्विक मंदी के प्रति भैयाजी की चिंता उसे कुछ-कुछ समझ में आने लगी थी। '
भैयाजी सोच रहे थे, 'आखिर क्या कारण हो सकता है?' चमचे ने कहा, 'हो सकता है मिस कॉल दी हो। अमेरिका में भी तो आर्थिक मंदी है।' चमचे अब कयास लगा रहे थे। 'कोड लगाना तो नहीं भूल गया?' एक ने भैयाजी की तरफ देखते हुए अपने ज्ञान का प्रदर्शन किया। |
दोनों चमचे रिलेक्स हो गए। एक ने दूसरे से कहा, 'नेटवर्क पिराबलम भी हो सकती है?' दूसरे ने सिर खुजाल कर सोचा और बोला कि इतनी इंटरनेशनल कॉल लगाई थी, हो सकता है पूरा बैलेंस ही साफ हो गया .... |
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'चुप रहो', भैयाजी ने उनकी अनर्गल बातों से ध्यान हटाना चाहा। फिर भी आखिर क्या कारण हो सकता है ओबामा की बेरुखी का? भारतीय मीडिया ने तो हमेशा ही उनकी विजय की भविष्यवाणी की थी। किस एनआरआई ने उनके लिए केम्पेनिंग की, यह भी हमारे समाचार-पत्रों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया था। कौन है, कहाँ का है, यह सब आज भारत का हर व्यक्ति जानता है। अब कोई गला काटकर तो हाथ में दे नहीं सकते! फिर किस बात का बुरा लग गया, जो अभी तक फोन नहीं लगाया?
भैयाजी की सोच अब चिंतन में तब्दील हो गई। आखिर क्यों इंतजार कर रहे हैं कि वे फोन लगाएँ?' जो किसी के साथ आशा करता है वह अपने साथ प्रवंचना करता है। इतने विशाल जनतंत्र को इतनी-सी आशा शोभा नहीं देती। क्या कभी हमसे काम नहीं पड़ेगा? भैयाजी के चेहरे पर अचानक मुस्कान खेलने लगी। उनको लगा जैसे वे फूल-से हल्के हो गए हों। उन्होंने हवा में जुमला उछाला, 'लगाएँ तो लगाएँ, नहीं तो जहाँ मर्जी हो वहाँ जाएँ।' चेले भी भैयाजी को अपने पूर्वरूप में देखकर प्रफुल्लित हो गए।