Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

किताबें पढ़ने के लिए नहीं होती

व्यंग्य

हमें फॉलो करें किताबें पढ़ने के लिए नहीं होती
सत सोनी
ND
पार्टी के कर्णधारों ने कहा, 'आपको पार्टी से निकाला जा रहा है क्योंकि आपने एक ऐसे शख्स पर किताब लिखी है जिसे हम देश का दुश्मन मानते हैं । लगता है कि आपने उससे साँठगाँठ कर विलेन को हीरो बनाने की कोशिश की है..'

लेखक बोला : 'वह तो साठेक साल पहले मर गया था।' पार्टी के नेताओं ने कहा : 'लड़ाई तो लड़ाई होती है और अगले सात जन्मों में भी हम उसका पीछा नहीं छोड़ेंगे। किताब लिखने वाले नेता ने एतराज किया : 'लेकिन आप लोगों ने तो मेरी पुस्तक पढ़ी ही नहीं ।

जवाब मिला : 'पुस्तकें ही पढ़नी होतीं तो हम राजनीति क्यों करते? हम नेता हैं, किताब का कवर देखकर ही जान लेते हैं कि अंदर क्या है। कुएँ का पानी मीठा है या खारा, यह जानने के लिए एक घूँट पीना ही काफी है। अँगरेजी में लिखी इस भारी भरकम पुस्तक को उस राज्य के मुख्यमंत्री ने भी नहीं पढ़ा जिसने उसकी खरीद-फरोख्त और पढ़ने पर पाबंदी लगा दी थी।

एक शहर में पार्टी के कार्यकर्ताओं ने इस किताब के पन्ने तक नहीं पलटे और लेखक को मुर्दाबाद करार देते हुए किताब को सरेआम आग लगा दी। इस पर नेताओं ने उन्हें डाँटा और समझाया कि करीब 700 रुपए की कीमत की इस किताब की जितनी प्रतियाँ जलाओगे, लेखक और प्रकाशक के घर में उतनी ही ज्यादा रोशनी होगी। कुछ करना ही है तो कबाड़ी से चूहों की चबाई कोई भी किताब दो-चार रुपए में खरीद कर उसे लपेट-लपाट कर आग की नजर कर दो।

कोई भी देखने नहीं आएगा कि आप लोग कौन-सी किताब जला रहे हैं। इस सारे घटनाक्रम का नतीजा यह हुआ है कि राजनीतिज्ञ की पुस्तक गर्मागर्म समोसों की तरह बिक रही है। सोचने की बात है कि पुस्तक पर बावेला मचानेवालों ने यदि लेखक को घास न डाली होती तो लेखक आज अपने बंगले की घास छील रहा होता ।

webdunia
ND
इतिहास गवाह है कि इंसान ने इतिहास से कुछ नहीं सीखा है और इतिहास से पता चलता है कि किसी किताब को पढ़े बिना लोगों ने अपने आप को कुर्बान कर दिया। विरोध-प्रदर्शन हुए, लूटमार हुई और पुलिस की गोली से कई जानें गईं। इसके बाद लेखक में नई जान आ गई।

केवल लेखक को पढ़ने वाले यह भूल जाते हैं कि उसे किताब की तरह बंद करके एक तरफ नहीं रखा जा सकता। लिखने वाला तो लिखेगा ही और तथ्यों को जितना तोड़-मरोड़ कर पेश करेगा, उतना ही हो-हल्ला मचेगा और उसका बैंक बैलेंस बढ़ेगा। गाँधीजी के तीन बंदरों से प्रेरणा लेकर लिखने वाला कभी सफल लेखक नहीं बन सकता। पूरा सच बहुत बोर होता है, इसलिए बाजार में उसकी माँग नहीं है।

मुफ्त में भी उसे कोई नहीं जानना चाहता। इस्राइल के इतिहास-पुरुष और रक्षामंत्री ने 60 के दशक में अपने देश से लगभग 50 गुना बड़े मिस्र और उसके मित्र देशों को कई बार धूल चटाई। एक बार उन्होंने कहा था : 'मैं समझता था कि इस्राइल की रणनीति पर पुस्तक लिखकर मैंने जीवन की सबसे बड़ी भूल की है लेकिन शुक्र है ईश्वर का कि मेरे अनपढ़ दुश्मनों ने मेरी किताब पढ़ी ही नहीं।

webdunia
ND
किसी भी पुस्तक में यह नहीं लिखा है कि हर पुस्तक को पढ़ना जरूरी है। मेरे घर में सैकड़ों किताबें हैं। दर्जनों ऐसी हैं जिन्हें लेखकों ने समय-समय पर मुझे भेंट की हैं। बाकी सभी उधार की हैं। उनके मालिकों ने मुझसे वापस माँगी नहीं और मैंने लौटाई नहीं। इतनी ईमानदारी जरूर बरती कि उन्हें आगे उधार नहीं दिया। कोई दोस्त कभी कोई किताब माँग बैठता है तो मैं उस पर जमी धूल झाड़ते हुए कह देता हूँ कि आजकल इसे पढ़ रहा हूँ।

आप पूछेंगे कि आखिर मैं खुद की किताबें उनके मालिकों को क्यों नहीं सौंप देता? इसलिए कि अब तो मुझे याद ही नहीं कि कौन-सी किताब किसकी है। चलते-चलते मशहूर अमेरिकी हास्य-कलाकार ग्रोशो मार्क्स को किसी लेखक ने अपनी किताब भेजी। उन्होंने उसे फोन किया : 'आपकी किताब मिली... मैं तो हँसते-हँसते लोटपोट हो गया। किसी दिन फुरसत मिली तो पढूँगा।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi