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फोटोगुनिया एक चीठा बुखार!

हमें फॉलो करें फोटोगुनिया एक चीठा बुखार!
- डॉ. पिलकेंद्र अरोर

यूँ तो इन दिनों हमारा प्यारा म.प्र. अज्ञात मच्छरों के आतंक के कारण चिकनगुनिया नामक मौसमी बुखार की चपेट में है। चर्चा है कि चिकनगुनिया विदेश से आयातित एक सफेदपोश मादा मच्छर के अधरों से फैल रहा है, पर जिस बुखार की चर्चा मैं पर रहा हूँ वह जरा मनोवैज्ञानिक टाइप का है। वह न तो मौसमी है और न आयातित। उस बुखार का नाम है- फोटोगुनिया।

अपना फोटो बार-बार खिंचाने और अखबार या टीवी चैनल पर अपना चेहरा ही देखने का एक भयंकर मानसिक रोग। यह कोई मौसमी बुखार नहीं। इसके वायरस वर्षभर वातावरण में रहते हैं। यह कभी भी कहीं भी किसी भी वर्ग के व्यक्ति को हो सकता है। भारत में फोटोगुनिया प्रायः राजनेता, साहित्यकार और समाजसेवी नामक प्रजातियों में बहुतायत में पाया जाता है। यह एक ऐसा संक्रामक रोग है जिसका स्थायी इलाज अभी तक किसी भी चिकित्सा पद्धति में नहीं खोजा जा सका है। आइए, इस रोग के विभिन्न पहलुओं की विस्तृत चर्चा करें :

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फोटोगुनिया रोग व्यक्ति को आत्ममुग्धता नामक मादा मच्छर के डंक मारने से होता है। जो देश और दुनिया से बेखबर अपने आप में ही लीन-तल्लीन रहते हैं उन लोगों पर इस रोग का व्यापक असर देखा जाता है। ऐसे लोग प्रायः अपनी ही झाँकी जमाने में विश्वास रखते हैं।

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फोटोगुनिया रोग दो प्रकार का होता है-पहला, प्रिन्टो फोटोगुनिया- जिसमें रोगी किसी समाचार-पत्र, पत्रिका या पेम्पलेट में अपना चेहरा देखने का आदी हो जाता है। दूसरा, इलेक्ट्रो फोटोगुनिया, जिसमें रोगी को बार-बार किसी टीवी चैनल या कम्प्यूटर स्क्रीन पर अपना चेहरा देखने की लत पड़ जाती है। अधिकतर रोगी दोनों प्रकार के रोगों से ग्रस्त रहते हैं। वैसे राजनेताओं में इलेक्ट्रो फोटोगुनिया और साहित्यकारों में प्रिन्टो फोटोगुनिया रोग के लक्षण अधिक पाए जाते हैं।

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आमतौर पर इस घातक रोग से पीड़ित व्यक्तियों में कई प्रकार की विषमताएँ पाई जाती हैं। फोटोगुनिया के रोगी हमेशा मुस्कराते रहते हैं। उनके चेहरे पर 'स्माइल प्लीज' का एक स्थायी भाव चस्पा हो जाता है। यहाँ तक कि शवयात्रा, उठावने और शोकसभा में भी मंद-मंद मुस्कान उनके चेहरे पर तैरती रहती है। रात को सोते हुए भी वे मुस्कराते ही रहते हैं। प्रायः राजनेता नामक प्रजाति के लोग इस रोग से अधिक पीड़ित रहते हैं। पिछले दिनों बाढ़ के पीड़ितों को राहत राशि देते समय कुछ नेताओं ने ऐसे हँसते हुए फोटो खिंचाए, मानो किसी फिल्म फेस्टीवल में अवॉर्ड दे रहे हों।

एक स्थानीय पार्षद ने सड़क निर्माण कार्यक्रम का श्रीगणेश करते समय चैनल के कैमरे की ओर देखते-मुस्कराते हुए ही कुदाली चला दी, जो सड़क पर न चलते हुए उनके पैर पर चल गई। राजनेताओं के अलावा इस रोग के अन्य रोगी कार्यक्रमों में हमेशा सज-सँवर के जाते हैं और दर्शकों में सबसे आगे बैठते हैं। हालाँकि कैमरामैन के आने के पहले ही इनका सिक्स्थ सेंस जागृत हो जाता है और ये पोजीशन में आने लगते हैं। कई रोगी तो अखबारों और चैनलों के फोटोग्राफरों से फिक्सिंग तक कर डालते हैं। कई रोगी तो स्वयं अपना कैमरा और कैमरामैन लेकर सभा-समारोह वगैरह में भाग लेते हैं। इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति को कई मर्तबा रातों में नींद न आने की बीमारी भी लग जाती है, क्योंकि ये रातभर करवटें बदल-बदलकर सुबह होने व सुबह के अखबार में अपनी मुस्कराती फोटो देखने का इंतजार करते रहते हैं।

फोटोगुनिया के रोगी लोकल चैनल के अलावा टीवी पर किसी अन्य चैनल का कोई कार्यक्रम देखने में विश्वास नहीं करते, क्योंकि लोकल चैनल की न्यूज में ही वे अपने मुखड़े को देख गदगद् होते हैं। दिन में जितनी बार न्यूज रिपीट होती है रोगी हर बार उसे देखने के लिए आबले-काबले बने रहते हैं। कई बार जब रोग की तीव्रता बढ़ जाती है तो ये रोगी अपने मोबाइल पर ही अपना चित्र लोड कर लेते हैं और उसे देख-देखकर ही संतोष कर लेते हैं। कुछ गंभीर किस्म के रोगी अपने पुराने कार्यक्रमों के एलबम या सीडी देख अपना गम गलत करते हैं।

प्रभा
फोटोगुनिया रोग एक संक्रामक रोग है। जब कोई रोगी किसी स्वस्थ व्यक्ति के संपर्क में आता है तो स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में भी इस रोग के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। फोटोगुनिया का रोगी स्वभाव से चिड़चिड़ा हो जाता है। सुबह-सुबह बिना नित्यकर्म किए अखबार के लिए जब वह हॉकर का इंतजार करता है तो उसका ब्लडप्रेशर बढ़ जाता है। अखबार में अपना फोटो छप जाने पर जहाँ वह पूरा मोहल्ला आसमान पर उठा लेता है वहीं फोटो न छपने पर वह पूरी दुनिया को अपना जानी-दुश्मन समझने लगता है।

कई बार तो अपना फोटो तलाशने के लिए वह अखबारों का निजी कॉलम तक देखने लगता है कि कहीं संपादकजी ने गलती से उसका फोटो मृत्यु और उठावने वाले निजी कॉलम में प्रकाशित न कर दिया हो। फोटोगुनिया के रोगी पर दूसरों के छपने वाले फोटों का बड़ा बुरा प्रभाव पड़ता है। राजनेताओं व साहित्यकारों के मामले में अपने विरोधी गुट के व्यक्ति का फोटो देख इन लोगों को रिएक्शन हो जाता है और इन्हें डबल फोटोगुनिया होने का खतरा बढ़ जाता है।

बचाव एवं सुझा
विश्व के बड़े-बड़े वैज्ञानिक फोटोगुनिया रोग के स्थायी इलाज के लिए वर्षों से खोज व अनुसंधान कर रहे हैं पर अभी तक वे इस रोग का स्थायी इलाज नहीं ढूँढ पाए हैं। कई वैज्ञानिक तो खुद इस रोग का शिकार होकर रह गए। फिर भी कई मानसिक चिकित्सकों का मत है कि फोटोगुनिया रोग असाध्य नहीं है। इस रोग से बचने के लिए रोगी को दर्पण से हमेशा दूर ही रहना चाहिए। उसके तमाम पुराने फोटो एलबम या तो नष्ट कर देना चाहिए या उसकी पहुँच से दूर रखना चाहिए।

ऐसे रोगी के घर में कम्प्यूटर, सीडी राइटर व वीडियो कैमरा कतई नहीं होना चाहिए। ऐसे लोगों को हमेशा याद दिलाते रहना चाहिए कि उनका चेहरा रामसे ब्रदर्स की फिल्म के भूतहा कलाकारों जैसा भयानक है। ऐसे रोगी को कार्यक्रम आदि में कम से कम भाग लेना चाहिए। रोगी को फौरन से पेश्तर केबल कनेक्शन कटवाकर सिर्फ दूरदर्शन ही देखने की आदत डालती चाहिए।

रोगी को कुछ दिनों के लिए ऐसे स्थान पर भेज देना चाहिए जहाँ उसे कोई पहचानता नहीं हो और जहाँ न कोई अखबार आता हो और न ही टीवी ट्रांसमीटर हो। पर इन उपायों से रोगी को एक समय विशेष के लिए उपचार मिल सकता है। रोग का स्थायी इलाज संभव नहीं। जैसे, कुछ खास शाही बीमारियों के बारे में कहा जाता है कि उसका नियंत्रण ही उसका बचाव या इलाज है वैसे फोटोगुनिया रोग का नियंत्रण ही उसका एकमात्र रामबाण इलाज है।

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