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बाबाओं की होली बालाओं के संग

ज्योतिर्मय

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NDSUNDAY MAGAZINE
बाबा नामदेव आर्यसमाजी हैं और स्वामी दयानंद के उपदेशों के अनुसार होम करके ही होली मनाने में यकीन करते हैं तो क्या हुआ। उनका कोई कसूर या बाबा के शब्दों में दोष भी नहीं है। वे तो रोज की तरह यज्ञ करके ही उठे थे। योग शिविर में आई कंगना उनसे पहले ही होलिका दहन कर चुकी थी। साथ में होली की भस्म और उसमें पक्के रंग भी मिला कर लाई थी। शिविर पूरा होते ही वह बाबा के पास गई, प्रणाम की मुद्रा में झुकी। बाबा भी अपने स्टाइल में समान डिग्री का कोण बनाते हुए झुके। कंगना स्प्रिंग लगी गुड़िया की स्पीड से उछली और होली है कह कर तपाक से हाथ में छुप कर रंग मिली भस्म बाबा के नरम नरम गालों पर रगड़ दिया। साथ ही होली है, बुरा न मानों होली है... चिल्लाते हुए नाचने सी लगी । उस नजारे को शिविर में लगे वाई फाई सिस्टम से योग के साधकों ने को देखा ही, लाइव प्रसारण देख रहे बाबाजी के भक्तों ने भी देखा और वे भी इसे योग का हिस्सा मानकर होलियाना मूड बनाने लगे।

सब कुछ इतना अकस्मात हुआ था कि बाबा नामदेव को बचाव करने या रोकने का मौका ही नहीं मिला लेकिन अगले ही पल बाबा ने हवा में हाथ लहराया और पुट्टपरी के बाबा के अंदाज में हथेली में रंग प्रकट कर कंगना के मुँह पर रंग लगा दिया। फिर बोले बुरा मानने का तो कोई सवाल ही नहीं है। आज के दिन सारी अभद्रताएँ माफ। इसके बाद शिविर में जिस तरह का हो-हल्ला मचा उसमें लगा कि शिविरार्थियों को अपने पास रंग-गुलाल न होने की स्थिति खल रही थी।

इस बीच हुरियाए बाबा की पुकार सुनाई दी योग साध चुके सभी सत्पुरुषों और सन्नारियों को इसी उत्साह से होली मनाना चाहिए। यह शिविर गुजरात की राजधानी के पास हो रहा था। हजारों लोग शिविर में हिस्सा ले रहे थे और होली का मजा शिविर स्थल पर बिखरी धूल-मिट्टी के साथ भोग रहे थे।

उसी शहर में संत उम्मीद बापू के आम में होली की तैयारियाँ पूरी हो चुकी थीं। आम का अपना अलग ही स्टाइल है लेकिन योग शिविर में होली की खबर हवा की तरह वहाँ पहुँची तो कार्यक्रम हाथोंहाथ बदला गया। अभी तक बाबा छत पर चढ़कर भक्तों को रंग से सराबोर करते थे, माखन मिश्री फेंकते थे और भक्तजन प्रसाद मानकर उन सबका आनंद लेते थे। बाबा इस बार छत से उतरकर भक्तों के बीच आकर और नाचने-गाने लगे। वैसे भक्तों ने सत्संग शिविरों में ही उनका मंच पर नाचना-गाना देखा था और उसे दिव्य लीला मानकर आनंदित होते रहे थे लेकिन यहाँ अपने बीच नाचते-गाते देखकर उनके होली उन्माद का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने भी ठुमके लगाना शुरू कर दिया। किसी ने पूछा कि इस आयोजन में आम की और आम के बाहर की गोपियाँ भी शामिल हों तो मजा कई गुना बढ़ जाए।

उम्मीद बाबा ने अपने चिरंजीव कन्हैया स्वामी से कान में कहा तुमने दिल्ली, भोपाल, इंदौर वगैरह में जो गोपियाँ छुपा रखी हैं उन्हें बुला लेते तो कितना अच्छा रहता। कन्हैया स्वामी ने कहा कि वे अपनी तरह से वहाँ होली मना रही हैं। बाबा ने कहा इस कंप्टीशन में नामदेव मात न दे जाए । मात देने के मामले में वृंदावन के दुशालु बाबा पहले ही बाजी मार चुके थे। वे शिष्य और शिष्याओं पर समान रूप से कृपा करते हैं।

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शिष्याओं पर थोड़ा अधिक क्योंकि उनमें भक्ति भाव ज्यादा होता है और फिर वे राधा का रूप भी होती हैं। उन्हें जैसे बाबा नामदेव के कार्यक्रम की भनक लग गई हो हालाँकि नामदेव की कंगना होली अचानक थी। फिर भी दुशालु बाबा ने तैयारी इस तरह की जैसे वे सबको मात देने पर तुले हुए हों। अपने आम में हो रहे 1600 ग्वाल बालों और गोपियों की व्यवस्था की। होली एक सप्ताह पहले से ही शुरू हो गई। पहले दिन बरसाने के अंदाज में गोपियों ने पिचकारी मार होली खेली।

यह लठमार होली का ही संशोधित रूप है। दोपहर तक चली इस होली को बाबा क्लोज सर्किट टीवी से देखते रहे । शाम को उन्होंने आठ गोप बालाओं को आमंत्रित किया और उनके साथ सायँकालीन होली का आयोजन। इससे आगे का बयान करना मुश्किल है क्योंकि राधा-कृष्ण की लीलाओं के नाम पर जो कुछ होता है वह होली से बहुत आगे की बात है। तैयारी इस बात की हो रही है कि कंगना के मुकाबले बाबा रंगपंचमी पर शिल्पा शैट्टी से लेकर सोनम और असीन आदि को इकठ्ठा करने की जुगत लगा रहे हैं।

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