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मास्टर ओर जासूस

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को खाँ, पेले मास्टर जासूस हुआ करते थे। अब राजधानी के मास्टरों की खबर प्रायवेट जासूस लेंगे। राजधानी में तालीम के गिरते स्तर को ऊपर उठाने के लिए ये नया सरकारी फंडा हे। जैसे-जैसे खुफिया खबरें आती जाएँगी, तालीम का स्तर उसी तेजी से ऊपर उठता जाएगा। मुमकिन हे के जासूसी करते-करते एक दिन जासूस मास्टरी करने लगें और मास्टर जासूसी।

मियाँ पिरदेश के मास्टरों का गधा हम्माली का रियाज पुराना है। यूँ सरकारी नौकरी में मास्टर को पढ़ाने के अलावा वो सब करना पड़ता हे जो पीर-बावर्ची-भिश्ती-खर के दायरे में आता है। खाँ, पुराने जमाने में मास्टरों को पढ़ाने से फुरसत न थी। गाँव में मास्टर की इज्जत थी। उसकी हर खुफिया बात को दूसरे तवज्जो देते थे। आजादी के बाद वक्त बदला। मास्टर पढ़ाने के अलावा सब करने लगे। वक्त पड़ा तो आदमियों की गिनती की।

हुक्म हुआ तो पिरदेश में गधे-सूअरों की तादाद का मीजान लगाया। मास्टरों के काम की वेरायटी देख गधे भी हैरत में पड़ गए। मामला उससे भी आगे रिया। कभी चुनाव करवाने तो कभी मंत्री जी के ग्रोग्राम के लिए भीड़ जुटाने, कभी पोलियो ड्रॉप पिलाने तो कभी सरपंच के लड़के की शादी में डांस करने तक की ड्यूटी मास्टर ईमानदारी से निभा रिए हें। आजकल तो स्कूलों में होटलों सा माहौल है। चाक-डस्टर की जगह टीचरों के हाथ में कड़ाही-चम्मच ज्यादा नजर आते हें। कोर्स पूरा करने के बजाए खाना टाइम पे बनने की फिकर ज्यादा रेती हें।

खाँ, इत्ते काम हों तो स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का टाइम रेता कहाँ हें। लिहाजा कई मास्टर स्कूल का मुँह नहीं देख पाते। कुछ जाते हें तो हाजिरी भर के दूसरी ड्यूटी पे निकल जाते हें। बच्चे अगले साल पढ़ाई होने की उम्मीद से दर्जा-ब-दर्जा आगे खिसकते रेते हें। सरकारी तालीम की तरक्की के आँकड़े पेश करती रेती हे। रिजल्ट हर साल सुधरने के बजाए बिगड़ता रेता हे। मियाँ, इस दफा मामला कुछ अलग टाइप का लग रिया हें। स्कूलों में पढ़ाई ठीक से हो ओर रिजल्ट का परसेंटेज ज्यादा हो इसलिए वहाँ बच्चे कम जासूस ज्यादा नजर आएँगे।

मास्टर की हर हरकत की रिपोर्ट उन्हें आला अफसरों को देनी हें। टीचर ने दिन में क्या खाया-क्या पिया। दिन में किधर ड्यूटी करी, कहाँ सोया। क्या पढ़ाया-क्या सिखाया। बच्चों को कित्ता समझ में आया। उधर जासूस भी खुश हें। बरसों से जेम्स बांड टाइप काम कर-कर के खोपड़ी घिस गई थी। मास्टर ओर खास कर मास्टरनियों की जासूसी से नया एक्सपीरियंस मिलेगा। नामुमकिन नहीं के कुछ जासूस गर्ल्स स्कूलों में ही परमानेंट अपनी ड्यूटी लगवा लें। बच्चे-बच्चियाँ भी मजे में मास्टरजी का ध्यान उन पर कम जासूस पे ज्यादा रेता हे। लब्बो-लुआब ये कि हर शख्स एक दूसरे की निगरानी करेगा। नतीजे में सरकारी स्कूलों का रिजल्ट राकेट की रफ्तार से सुधरेगा।

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