विश्व भुखमरी सूचकांक में 118 देश प्रमुख हैं। उनमें भारत का स्थान 94वाँ बताया जाता है। अर्थात प्रसन्नता की बात है कि 93 देश, भारत से भी अधिक भुखमरे अभी शेष हैं। जब पूरे विश्व में निर्धन लोग बहुसंख्यक हैं तो भारत के 110 करोड़ लोगों में से 80 प्रतिशत गरीब हैं, यह जानकर भी हमें तसल्ली हुई कि 20 प्रतिशत तो भारतवासी अमीर हुए हैं। इनमें सबसे अव्वल नेता-मंत्री, अफसर, उद्योगपति हैं। अब कोई जादू की छड़ी तो है नहीं कि पूरे देश की गरीबी उड़नछू हो जाए, एक साथ।
हमारे आध्यात्मिक प्रवचनकार, साधु-संत प्रारंभ से ही गरीबी को अमीरी से उत्तम मानते आए हैं। यह बात दीगर है कि वे स्वयं प्रवचन देते-देते, गरीबी रेखा से कभी के ऊपर आ गए हैं। यह भी उनके आध्यात्मिक चमत्कार के कारण हुआ है। यदि हम भी बाबा रामदेव की तरह योग करें तो हमारी निर्धनता भी शर्तिया मिट जाएगी। किंतु हम ठहरे पक्के आलसी। अतः गरीब के गरीब बने हुए हैं तो इसमें बाबा-साधु-महात्माओं का क्या कुसूर है?
बाबाओं के आशीर्वाद से हमारे देश की गरीबी भी काफी कम हुई है। हाल में ही एक-एक फ्लेट, एक सौ करोड़ में बिक गए हैं। होटलों के एक कमरे का किराया ही एक लाख रु. हो गया है। सरकार द्वारा भी 'सेज' बनवाकर कई किसानों को गरीबी से ऊपर उठाने का प्रयत्न किया गया है। किंतु नाश हो इन कृषकों का पट्ठे, नंदीग्राम करने लगते हैं। जब वे स्वयं ही अमीर बनना नहीं चाहते तो सरकार को दोष देने से क्या लाभ?
मंत्रीजी ने भी प्रण कर लिया है कि गरीबी उन्मूलन दिवस से वे शनैः-शनैः गरीबी मिटाएँगे। प्रथम डम्पर आदि खरीद कर अपनी एवं अपने परिवार की, तत्पश्चात अपने निकट रिश्तेदारों की, इसके बाद पार्टी कार्यकर्ताओं की भी मिटाएँगे, क्योंकि चुनाव में तो वे ही काम आएँगे। तत्पश्चात निश्चित ही आम लोगों की गरीबी मिटाने के लिए वे अपने प्राणों की बाजी लगा देंगे।