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राजनीति में गुप्त मंत्रणा

बगैर अनुमति प्रवेश निषेध

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-रमेशचंद्र शर्मा
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माना कि प्रजातंत्र में सब कुछ पारदर्शी होता है, किसी मॉडल के झीने वस्त्रों की तरह। मगर इसका मतलब यह तो नहीं कि मंत्रणा भी खुले आम की जाए। वैसे भी नीतिज्ञों ने कहा है कि धन, भोजन, स्त्री, विशिष्ट ज्ञान और मंत्रणा गुप्त होना चाहिए।

यूँ तो उनका आवास खुला है। आदमी हो या कुत्ता इस दरवाजे से घुसे, तो उस दरवाजे से निकल जाए। मगर चुनाव के दिनों में गुप्त मंत्रणा अत्यावश्यक हो जाती है। अत: एक कमरे को गुप्त मंत्रणा कक्ष में बदल दिया जाता है। यह कक्ष इस हद तक गुप्त रहता है कि इसकी गोपनीयता की रक्षा के लिए बाहर एक तख्ती लटका दी जाती है - 'बगैर अनुमति प्रवेश वर्जित।' वर्जना का पालन इस हद तक होता है कि उनकी बीवी और बच्चों तक का प्रवेश निषेध है।

यह होना स्वाभाविक भी है, एक बार उनकी निजी पत्नी ने जब उन्हें शयनकक्ष में नहीं पाया, तो वह बगैर द्वार खटखटाए गुप्त मंत्रणा कक्ष में चली गई। उसने वहाँ जो कुछ देखा, उसकी वजह से कई दिनों तक शीतयुद्ध की स्थिति बनी रही। ये बड़ी मुश्किल से समझा पाए कि जो सार्वजनिक जीवन में होता है, उसके गुप्त मंत्रणा कक्ष में ऐसे दृश्य आमतौर से देखे जाते हैं। पत्नी समझदार थी, सो समझ गई।

चुनाव के दिनों में इनके गुप्त मंत्रणा कक्ष में कई स्तर की मंत्रणा होती है। जिनमें पहली होती है टिकट कैसे मिले? इस मंत्रणा के दौरान वे अपने खास सलाहकारों के साथ तय करते हैं कि हाईकमान और प्रादेशिक आका को कैसे साधा जाए? अपने पक्ष में जातीय, सांप्रदायिक और धनबल-बाहुबल की प्रस्तुति कैसे की जाए?

दूसरी गुप्त मंत्रणा तब होती है, जब टिकट मिल जाता है। इन्हें टिकट मिलता है, तो दो-चार बागी बगावत का झंडा लहराते हुए निर्दलीय खड़े हो जाते हैं। इनके विशेष आमंत्रण पर आए प्रदेश नेतृत्व के साथ यह गुप्त मंत्रणा कक्ष में गुप्त मंत्रणा करते हैं। मंत्रणा में तय होता है कि बागियों को दलीय अनुशासन, दल के प्रति निष्ठा की दुहाई देकर बैठा दिया जाए।

फिर भी ना माने तो कोई लालीपॉप देकर बैठा दिया जाए और ज्यादा ही कोई अकड़ फूँ करे तो पुराने पुण्यों (पाप नहीं) की फेहरिश्त बता दी जाए। जो इन सबसे भी लपेटे में नहीं आए, तो उससे उसकी कीमत पूछ ली जाए। जो ससुरा किसी तरह से न माने तो फिर भाड़ झोंककर सामना किया जाए और मंत्रणा कक्ष से मुस्कुराते हुए निकले और कहा जाए- 'घर की बात है। हममें किसी तरह का विरोध नहीं है। मुकाबला होगा मगर मैत्रीपूर्ण।'

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तीसरी गुप्त मंत्रणा तब होती है, जब उन्हें खुद को ही टिकट नहीं मिले। ऐसे में वे अपने समर्थकों सहित गुप्त मंत्रणा कक्ष में समा जाते हैं और गुप्त मंत्रणा करते हैं। इस गुप्त मंत्रणा में तय किया जाता है कि दल बदला जाए, निर्दलीय खड़ा हुआ जाए। निर्दलीय खड़ा होने पर आ रहे दबाव के चलते तय किया जाता है कि डटे रहें या कोई समझदारीपूर्ण सह‍मति बन जाए। बहरहाल गुप्त मंत्रणा कक्ष से यह क्रोधित मुद्रा में निकलते हैं, तो कहते हैं ''मुझे टिकट नहीं देकर मेरे साथ नहीं जनता के साथ अन्याय हुआ है। मैं इस अन्याय के खिलाफ लड़ूँगा। जनता का आशीर्वाद मेरे साथ है।'

गुप्त मंत्रणा कक्ष से अगर ये शांत मुद्रा में निकलते हैं तो कहते हैं ' कुछ गलतफहमियाँ थीं, जिन्हें दूर कर लिया गया है। आपस में समझदारी कायम हो गई है। मैं हाईकमान का आदेश शिरोधार्य करता हूँ। मैं पार्टी के लिए जी जान से काम करूँगा।'

चुनावी टिकट मिलने पर इनकी चौथी गुप्त मंत्रणा अपने समर्थकों, सहयोगियों और सलाहकारों से होती है, आर्थिक मुद्‍दे पर। इस मंत्रणा में तय किया जाता है कि संपत्ति की घोषणा में कितना छुपाया जाए और कितना दर्शाया जाए। धन की व्यवस्था के लिए किस अफसर, किस व्यापारी, किस उद्योगपति, किस दलाल और किस ठेकेदार की गर्दन कितनी दबाई जाए? चुनावी व्यय का विवरण कैसे प्रस्तुत किया जाए?

इस मंत्रणा के बाद वे जब गुप्त मंत्रणा कक्ष से बाहर निकलते हैं तो बड़े ही शां‍त भाव से कहते हैं,' भई, ना तो पार्टी के पास फंड है, ना मेरे पास फूटी दमड़ी। बस, ये समझो कि आप सबके सामने झोली फैला कर खड़ा हूँ। आप सबके सहयोग से ही चुनाव लड़ूँगा।'

बंद कमरे में पाँचवी गुप्त मंत्रणा होती है, जातीय और धार्मिक समीकरण को लेकर। गंभीर मंत्रणा में तय होता है कि अपनी जाति के असंतुष्ट जनों को जैसे भी संभव हो समेटो। माली, ब्राह्मण, कायस्थ, राजपूतों की भी खासी तादाद है, इनके असरदारों को साधो और समर्थन में प्रेस नोट जारी करवाओ। देखो, अल्पसंख्यक कहीं बिचक ना जाएँ। उनको भी समेटो।

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उनके धर्मस्थल पर मत्था टेकने और चादर चढ़ाने का खास ध्यान रखा जाए। सेक्रेटरी से कहो, उस वक्त के लिए सांप्रदायिक सद्‍भाव पर अच्छा सा बयान लिखकर तैयार रखे। और अंत में खास हिदायत- 'देखना भाई, कहीं कोई कमी ना रह जाए। जो जैसे सधे उसे वैसे साधो।' जिसकी जैसी हैसियत हो, वैसे लिफाफे पहुँचा दो।' फिर बाहर निकलकर मसीहाई अंदाज में - 'हमें समाज के सारे वर्गों का सहयोग मिल रहा है। यह सहयोग ही मेरी ताकत है।'

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