प्रिये को खाँ, माफ करना डीयर, यह पत्र तो तुम्हें बसंत पंचमी पे लिखना चाह रिया था। क्योंकि रति-कामदेव का रोमांस अपन को खूब सूट करता हे। लेकिन वेलेंटाइन-डे की तैयारियों की वजह से टाइम नहीं मिल पाया। लठ-पूजा का इंतजाम जो करना था। तुम इस चिट्ठी के कागज का रंग देख के भ्रमित मत होना। वासंती कलर ओर भगवा रंग में इत्ता तो फरक हमेशा रेगा।
डार्लिंग, मुझे पता हे कि तुम वेलेंटाइन-डे के बहकावे में नई आओगी। हम आज तक नहीं आए। प्रेम करना था, खूब किया। हद से आगे बढ़ के किया, लेकिन कभी उसका इजहार नई होने दिया। अगर किसी ने करा तो उसके सर पे लठ दे मारा। कोई दूसरा प्यार करेगा तो हम वार करेगा। अपनी संस्कृति ऐसे ही बचेगी। संस्कृति की रक्षा में हमने चारों तरफ लाठियों की दीवार खड़ी कर दी हे। यकीन न हो तो वेलेंटाइन-डे पे देख लेना।
कोई घर से रोमांटिक मूड में निकल तो ले भला। हम संस्कृति सेवकों की नजर से कतई नहीं बचेगा। आखिर ऐसे लोगों को ठीक करना हमारी राष्ट्रीय जिम्मेदारी हे। हम यह दायित्व पूरी निष्ठा से निभा रिए हें। निभाते रेंगे।
मेरी जान, तुम विश्वास रखो के में कभी प्रेम के खिलाफ नहीं रहा। वरना तुम्हें चार साल से गुपचुप प्रेम-पत्र क्यों लिखता। में प्रेम के नई, प्यार के खिलाफ हूँ। क्योंकि प्यार उर्दू का शब्द हे ओर अँगरेजी में किया जाता हे। इतना विदेशी संस्कार हमारे देश में अलाउड नहीं होसकता। पिछले साल भी हमने शहर का हर गली-कोना छान मारा था। कहीं किसी को प्यार-व्यार जेसी गंदी हरकत नहीं करने दी। इस बार थोड़ी दिक्कत हे।
कुछ सेक्युलर टाइप की ओरतें हमें चेलेंज कर रही हें। बोलीं के तुम लठ चलाओगे तो हम लाठी घुमाएँगी। प्रेमियों को बचाएँगी। चट्टानों की आड़ में, पेड़ों की छाँव में, किसी रेस्टॉरेंट में, या किसी एकांत में। उनकी लाठियाँ हमारे लठ से दो-दो हाथ करेंगीं। दिक्कत ये हे के ये महिलाएँ भारतीय संस्कृति को समझती नई हें। अलबत्ता अपनी पुलिस कुछ-कुछ समझने लगी हे। इसलिए वेलेंटाइन-डे तो क्या,वो सालभर इन प्रेमियों के पीछे पड़ी रेती हे। पुलिस को तो इसमें इतना इंटरेस्ट आ गया हे के कई हवलदार-सिपाही थाने छोड़ के प्रेमियों के पीछे सुनसान इलाकों में अपनी ड्यूटियाँ लगवाने लगे हें।
मगर, तुम फिकर न करना। काम से बड़ा ध्येय होता हे। हम संस्कृति सुधार मिशन में लगे हें। आने वाले समय में सब ठीक होगा। हमारी लठ-पूजा देख के ये न समझना के इस भगवा चोले में कोई दिल नई धड़कता। आखिर पूजा एक भारतीय संस्कार हे। ओर हर पूजा के बादआत्माओं का मिलन जरूरी हे। इसलिए मेने भी तय कर लिया हे के इस बार सारे बिगड़े प्रेमियों को सुधारने के बाद वेलेंटाइन-डे पर तुम्हारी माँग भरूँगा। यही हे भारतीय संस्कृति का परम सत्य।
तुम्हारा संस्कृति सेवक
- बतोलेबाज (बकलम- अजय बोकील)