गिरीश पण्ड्या
''
कितनी बार मैंने इनसे कहा है कि इतनी भारी-भरकम चीज मत उठाया करो। पर वे मानें तब ना! पहलवानी दिखाने का शौक जो ठहरा। अब तुम ही बताओ इस उमर में अपनी पोती के स्कूल बैग को उठाने की रिस्क कोई लेता है भला? तुम्हें तो पता ही है कि स्कूल बैग का वजन साल-दर-साल बढ़ता ही जा रहा है। नए-नए स्कूल खुले नहीं कि लगे प्यार जताने-'बेटी, कुछ दिन बस में जाने की जरूरत नहीं,....तुझे छोड़ने और लेने मैं ही आऊँगा।' यहाँ तक तो ठीक था पर पता नहीं क्या मति मारी गई कि पोती का वजनदार स्कूल बैग भी खुद ने उठा लिया। वजन संभला नहीं और बैग पाँव पर गिर पड़ा। अब बैठे हैं डेढ़ महीने का प्लास्टर चढ़ाकर। माना कि पुराने जमाने का घी खाया है किन्तु इसका यह मतलब तो नहीं कि आज के जमाने के स्कूल बैग उठाना शुरू कर दो। यह कोई पहले जैसे स्कूल बैग थोड़े ही हैं कि एक झोले में एक कॉपी और दो-तीन किताबें डाल लीं... कुछ ज्यादा हल्कापन लग रहा हो तो एकाध कम्पास भी पटक लिया और हो गया बस्ता तैयार। लंच बॉक्स का वजन ढोने की नौबत आती ही नहीं थी क्योंकि जब खाने की छुट्टी होती, तब घर आकर ही डटकर खाना खा लिया जाता। एडमिशन लिया ही उस स्कूल में जाता था जिसकी दूरी अपने घर से मीटर के पैमाने में सबसे कम हो। किन्तु अब तो ऐसा नहीं होता है ना! आजकल तो स्कूल बैग का वजन बच्चों से ज्यादा होता है। स्कूल बैग का आकार भी इतना बड़ा होता है कि दूर से देखने पर बच्चे की जगह स्कूल बैग ही नज़र आता है। अब यह बात समझनी चाहिए थी उन्हें! बिना सोचे-विचारे उठा लिया स्कूल बैग। अरे! इतना ही प्यार उमड़ रहा था तो पोती को ही गोद में उठा लेते और स्कूल बैग के लिए कोई ठेलागाड़ी कर लेते। मुँहमाँगा किराया देना पड़ता वही ना! इस फ्रेक्चर के चक्कर से तो बच जाते! माना कि कुछ दिनों पहले गैस की खाली टंकी सरका ली थी। किन्तु यहाँ तो मामला सीधे-सीधे भरा हुआ स्कूल बैग उठाने का बनता है। हड्डी टूटे नहीं तो और क्या हो?'' कहकर दादी माँ ने अपनी पीड़ा सहेली को सुनाई। |
''मुझे तो बेचारे बच्चों पर दया आती है। यदि स्कूल बैग का वजन यूँ ही बढ़ता रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब स्कूल के लिए बच्चों को बस में और उनके स्कूल बैग को ट्रक में भेजा जाएगा। जब स्कूल बैग को ट्रक से उतारकर क्लास रूम तक पहुँचाया जाएगा तब बच्चे... |
|
|
''तुम ठीक कहती हो, बहन। बिलकुल ऐसा का ऐसा और सेम टू सेम केस मेरे ' इनके' साथ भी हुआ था। रिटायर होने के बाद इनको अखाड़े जाने का शौक चढ़ गया था। एक दिन जब वे अखाड़े से घर आए तो ताव-ताव में पोते का स्कूल बैग उठा लिया। बस! कमर की हड्डी सरक गई। मैंने उनसे साफ-साफ कह दिया कि तुम रोज अखाड़े जाओ तो चलेगा... वहाँ जाकर भारी से भारी वजन उठाओ तो भी चलेगा... किन्तु ये स्कूल बैग की मजाक बिलकुल मत करना। तब से वे इतना डर गए कि जिस कमरे में स्कूल बैग रखा हो, वहाँ कदम ही नहीं रखते।'' सहेली भी स्कूल बैग पीड़ित रही है, ऐसा उसने बताया।
''मुझे तो बेचारे बच्चों पर दया आती है। यदि स्कूल बैग का वजन यूँ ही बढ़ता रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब स्कूल के लिए बच्चों को बस में और उनके स्कूल बैग को ट्रक में भेजा जाएगा। जब स्कूल बैग को ट्रक से उतारकर क्लास रूम तक पहुँचाया जाएगा तब बच्चे गुनगुनाते हुए नजर आएँगे, 'साथी हाथ बढ़ाना....एक अकेला थक जाए तो मिलकर बैग उठाना...।'' दोनों दादियाँ साथ में गुनगुना रही थीं।