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प्यार तन का नहीं बल्कि मन का संगम है

हमें फॉलो करें प्यार तन का नहीं बल्कि मन का संगम है
रोहित श्रीवास्तव
 
‘प्यार’ बड़ा ही ‘विचित्र’ शब्द है न? इसकी विचित्रता का आभास तभी महसूस होता है जब इसके सुनते ही चलचली चंचली मनमोहनी तरंगें सम्पूर्ण शरीर एवं मस्तिष्क में एक ‘अविस्मरणीय-कंपन्न’ सा पैदा कर देती है। फलस्वरूप, सम्मोहित प्रेम का एक ‘चुम्बकीय क्षेत्र’ उत्पन्न हो जाता है जिसके आकर्षण बल के प्रभाव में नर और मादा न चाहते हुए भी ‘प्यार के समंदर’ में समाने लग जाते हैं। मनुष्य के ‘प्रेमीय चुम्बकीय क्षेत्र’  में भौतिक विज्ञान के ‘विद्युतीय चुम्बकीय क्षेत्र’ की भांति ही विपरीत लिंग वाले नर-मादा आकर्षण बल के साथ तीव्रता से एक-दूसरे को अपनी ओर खींचते हैं। 


 
प्यार ‘जुदाई’ के बाद होने वाला वह एहसास है जो आजकल के नौजवानों को कभी नहीं आता बजाए इसके उनके जीवन में प्यार जरूर ‘दूसरा’ आ जाता है। प्यार न तो तन की प्यास है ..... न ही मन की आस है अपितु यह तो एक ‘अमूर्त’ एहसास है जिसको महसूस तो किया जा सकता है पर छुआ नहीं जा सकता है। इसी में संयुक्त रूप से दो प्रेमियों के दिलों  का वास है। 
 
प्यार ‘तन का मिलन’ नहीं बल्कि ‘मन का संगम’ है। प्यार कोई ‘धुन’ नहीं जो जब चाहे बजा ली अपितु यह तो हर समय गुनगुनाने वाली एक सरगम है। प्यार किसी के शरीर को नहीं उसके ‘मन’ को जीतना है। चढ़ जाता है एक ऐसा खुमार, सुधबुध खो देता है, भुला बैठता है आदमी अपना समस्त संसार वह ‘बला’ है प्यार। रिश्तों को मजबूती देने वाली वह नींव है प्यार जिसके ऊपर ‘खुशहाल जीवन’ की ‘ज़िंदगी’ की इमारत का निर्माण होता है।
 
प्यार कोई ‘खेल’ नहीं की जब मन आया खेला, जीता या हारा, यह तो एक ऐसा ‘मेल’ है जहां ‘मेल और फ़ीमेल’ का ‘तालमेल’ बेजोड़ और अनमोल होता है। 
 
दिलो का बाज़ार है प्यार जहां दिलों को खरीदने वाले ‘खरीदार’ तो बहुत मिलते है पर बड़े मुश्किल से ही आपके दिल को सहेज के रखने वाला ‘दिलदार’ मिल पाता है। मिलता भी है तो शायद ‘उम्रदराज’ मिलता है। मुझे मालूम है आपका दिल तो बेशक जलता है पर यह सिद्ध हो जाता है कि जरूरी नहीं हमेशा सब्र का फल मीठा होता है।  

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