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आ जी लें एक पल में सौ जनम

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विशाल मिश्र

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शादी के 2 वर्ष बाद अनिकेत और शालिनी जब कुछ दिनों के‍ लिए छुट्‍टियाँ मनाने शिमला गए। वहाँ शाम के समय वक्त अच्छा था। ‍‍दिनभर घूमने के बाद इतनी ताकत तो नहीं बची थी कि और चलते, सोचा चलो बैडमिंटन ही खेलते हैं। यह पहला मौका था जब दोनों साथ बैडमिंटन खेल रहे थे।

शालिनी जब शॉट लगाती या झुककर शटल को उठाती तो अनिकेत का ध्यान उसकी बॉडी लैंग्वेज पर होता। मानो सिर से लेकर उसकी चाल तक पढ़ने की कोशिश कर रहा हो। मन ही मन उसे लगा वाकई शालिनी के कट्‍स इतने अच्छे हैं, जिस पर शायद उसने कभी इतना गौर नहीं किया था।

शायद उसका ध्यान विचलित होने के कारण शालिनी के आने वाले शॉट्‍स को रिटर्न नहीं कर पा रहा था। अनिकेत बोला तुम तो बहुत अच्छा बैडमिंटन खेल लेती हो। शादी के ‍पहले यह और क्रिकेट मेरे प्रिय खेल हुआ करते थे, शालिनी बोली। अनिकेत सोच में डूबा था कि क्रिकेट लेकिन उसकी वेशभूषा तो... हाँ याद आया शादी के पहले तो शालिनी अधिकांश पेंट-शर्ट ही पहना करती थी।

अनिकेत को बाहर की जानकारी थोड़ी ज्यादा थी। जबकि शालिनी और उसकी बहनों को पिताजी ने घर के बाहर आने-जाने की ज्यादा इजाजत नहीं दी थी। इसलिए वह हमेशा खुद के जीनियस होने के भ्रम में रहता था।

रजनीश 'ओशो' ने भी अपने उद्‍बोधन में कहा है 'आपका ध्यान अपनी बीवी पर कभी रहता ही कहाँ है। याद करना पड़ता है कि आखिरी बार 'बेचारी' को कब ठीक से देखा था।' इसके अलावा तो दिनभर की दौड़-भाग ऑफिस आने की जल्दी, बच्चों की फरमाइश समय बचे तो खुद के काम और फिर घर जाकर आराम। बमुश्किल फोन पर बात करने का समय निकल पाता है। कभी एक बिजी तो कभी दूसरा।

अफसोस करने के सिवाय कुछ भी नहीं
  लेकिन आज उसे शालिनी का एक नया रूप देखने को मिला और सोच रहा था कि दिनभर की दौड़-धूप से यदि इसके लिए समय नहीं निकाला तो शायद अंत में काफी कुछ हाथ से जा सकता है और अफसोस करने के सिवाय कुछ भी नहीं बचेगा।      
हाँ, कभी मंदिर चले गए या डॉक्टर के यहाँ क्यू में लगे हैं। तब तो समय काटने के लिए चर्चा हो ही जाती है। अन्यथा हाँ.. हूँ... हो जाएगा, क्यों टेंशन करती है? बीवी ने 2-3 बार ज्यादा जोर दिया कभी बेटों की पढ़ाई के बारे में तो जाकर स्कूल में मिल आए या बेटी खाँस रही है और फलाँ परेशानी भी है तो जाकर डॉक्टर के लिए समय निकाल लिया।

लेकिन आज उसे शालिनी का एक नया रूप देखने को मिला और सोच रहा था कि दिनभर की दौड़-धूप से यदि इसके लिए समय नहीं निकाला तो शायद अंत में काफी कुछ हाथ से जा सकता है और सिवाय अफसोस करने ककुछ भी नहीं बचेगामाना जॉब वगैरह सब अपनी जगह है लेकिन पर्सनल लाइफ भी तो कोई चीज है। अगर इन छोटी-छोटी चीजों को नजरअंदाज करते रहे तो‍ फिर पारिवारिक समस्याएँ खड़ी होने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। जबकि इनका भी ध्यान रखने पर छोटे-छोटे पलों में जिंदगी को कई बार जिया जा सकता है।

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