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110 साल के बाद हुई शुरू हुई जवानी

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रतलाम (वार्ता) , शनिवार, 12 सितम्बर 2009 (11:32 IST)
उम्र के अंतिम पड़ाव में जवान दिखने के जतन तो खूब किए जाते हैं, लेकिन आयु का शतक लगाने के बाद अगर बाल कुदरती तौर पर काले होने शुरू हो जाएँ और पोपले मुँह में दाँत भी आने लगें तो इसे आम के आम गुठलियों के दाम ही कहा जाएगा।

नगर के जवाहर मोहल्ले में रहने वाली 110 साल की ईश्वरी देवी पर यह ईश्वर की ही कृपा हुई है। इन दिनों वे लोगों के आकर्षण का केंद्र हैं। उनके सफेद बाल काले होने लगे हैं और मुँह में दाँत आने की शुरुआत भी हो रही है। ईश्वरी देवी इस उम्र में भी अच्छी तरह देख-सुन सकती हैं।

उन्होंने दावा किया कि दस साल पहले ही सौ साल पूरे कर चुकी हैं। हालाँकि उनकी आयु की पुष्टि करने वाला कोई आधिकारिक प्रमाण मौजूद नहीं है, लेकिन परिवारवालों की मानें तो वे निस्संदेह 110 साल की हैं।

इस वयोवृद्ध महिला के पति कन्हैयालाल पवार ताँगा चलाते थे। अब वे इस संसार में नहीं हैं। ईश्वरी देवी का जीवन काफी संघर्षमय रहा है। दांपत्य सूत्र में बँधने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उन्होंने लंबे अरसे तक महिला श्रमिक के रूप में काम किया। यह सिलसिला करीब 40 साल तक चला।

उनकी 65 और 70 वर्षीय दो पुत्रियाँ अब इस संसार में नहीं हैं। एक बेटी तथा बेटा है जिनकी उम्र 60 से ऊपर है। एक पोता, एक पोती, छह नातिन तथा पाँच नाती हैं। परिवार के सभी सदस्य इस उम्र में उनके बाल काले होने तथा मुँह में दाँत आने को लेकर अचंभित हैं और इस चमत्कार से बेहद प्रसन्न भी हैं।

इस संबंध में सिविल सर्जन डॉ. केसी पाठक का कहना है कि वृद्धावस्था में परिवर्तन के वैज्ञानिक कारण तो नहीं हैं फिर भी मानव शरीर की कोशिकाओं में म्यूटेशन होता है। इसके पुनःचक्रीकरण से कुछ परिवर्तन हो सकते हैं लेकिन मेडिकल साइंस इस पर बहुत अधिक प्रकाश नहीं डाल सकता है।

दूसरी ओर आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. रत्नदीप निगम का कहना है कि आयुर्वेद में इस बात का उल्लेख है कि जिस व्यक्ति की आयु सौ वर्ष की हो जाती है उसके शरीर में पुनः युवा होने के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। हालाँकि इस संबंध में वह भी बहुत वैज्ञानिक सम्मत तर्क नहीं दे पाए।

बहरहाल इन सब तर्कों और व्याख्यायों से परे ईश्वरी देवी अपने सुदीर्घ जीवन का पूरा आनंद ले रही हैं। उनकी दृष्टि इतनी अच्छी है कि वे 25 फीट दूर से लोगों को पहचान लेती हैं। आवाज में आज भी कड़कपन है। अब तक कोई रोग उन्हें गिरफ्त में नहीं ले पाया है।

ईश्वरी देवी के पुत्र गोपाल सिंह बताते हैं कि पिताजी ताँगा चलाते थे इसलिए वे बच्चों को पढ़ा लिखा नहीं पाए लेकिन माँ ने इस बात का पूरा ख्याल रखा और मेहनत-मजदूरी करते हुए उन्हें पढ़ाया-लिखाया। इसी की बदौलत उन्होंने आईटीआई किया और नौकरी की। बाद में माँ ने खुद भी अक्षरज्ञान हासिल किया और प्रारंभिक हिसाब-किताब सीखा ताकि जमाने से धोखा न खाएँ।

कोई कुछ भी कहे लेकिन ईश्वरी देवी अपनी दुनिया में मगन हैं और इस बात से भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उनके बाल काले हो रहे हैं, लेकिन किसी पुरानी हिंदी फिल्म का यह गीत उन पर बिलकुल फिट बैठता है कि 'तुम जीओ हजारों साल और साल के दिन हों...।

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